फोटो क्रिकेट नेक्स्ट से साभार


भारत में क्रिकेट कभी राजा-महाराजाओं , नवाबों या बडे व्यवसाइयों तक सीमित था । आम आदमी के पास न तो इतने साधन थे और न ही इतना समय कि वह क्रिकेट खेलने की सोच सके । उस समय भारत में हॉकी शीर्ष पर था । लेकिन पिछले कुछ वर्षों से क्रिकेट इतना लोकप्रिय हो गया है कि आम आदमी तो आम आदमी शहर-शहर , गाँव-गाँव तक में धूम मच गयी है । आज आप किसी भी गली-कूचे से निकल जाइये , आपको हर जगह भावी सचिन , सौरभ, धोनी , सहवाग , कुम्बले आदि क्रिकेट खेलते हुए मिल जायेंगे । असली विकेट नही तो ईंट ही सही , लैदर बॉल नही तो टेनिस की ही सही , लेकिन खेलेंगे जरूर । आज टीम इंडिया के अधिकांश सदस्य मध्यम वर्ग के हैं , जिन्होंने इस खेल पर राजे-राजवाडों का एकाधिकार समाप्त कर दिया है । यह भारत का सबसे अधिक खेला जाने वाला खेल बन चुका है । यदि यह कहा जाये कि भारत में अब क्रिकेट दीवानगी की हद तक पहुंच चुका है तो शायद न तो शक की गुंजाइश ही रहेगी और न कोई अतिश्योक्ति हीं ।


पिछले दिनों सिडनी टेस्ट के दौरान अपने कुकृत्य से ऑस्ट्रेलिया ने जो क्रिकेट में काला अध्याय जोड़कर क्रिकेट को ही शर्मसार कर दिया था और नस्लवाद के घोर विरोधी देश के नागरिक यानी हरभजन पर नस्लीय टिप्पणी का मनगढ़ंत आरोप लगाते हुए हतोत्साहित करने की कोशिश की उसे हमारे खिलाडियों ने फ़िर एक वार पर्थ में उनके विजय अभियान को रोककर यह सिद्ध कर दिया कि भारत अपने स्वाभिमान पर चोट पहुंचाने वाले को कभी नही बख्सता । इतिहास गवाह है कि हमने ही सिकंदर महान के विजय अभियान को रोका था । हममें अगर प्यार से चूमने की कला है तो चटकन लगाने की भी , हम प्यार करते हैं किसी से तो डूबकर करते हैं और नफ़रत भी करते हैं तो डूबकर करते हैं । इसके पहले भी बहुत साल पहले ऑस्ट्रेलिया के विजय अभियान को ईडेन गार्डेन में हमने ही रोका था और आज उनके ही देश में उनके विजय अभियान को लगातार सोलहवीं जीत के बाद हमने ही रोका है ! हमारे लिए हमारा स्वाभिमान बहुत मायने रखता है । हमने अगर अंग्रेजों के गोरे-गोरे गालों पर मक्खन लगाए तो जरूरत महसूस होने पर तमाचा भी मारा , प्रचंड प्रहार भी किया ।

जब पर्थ में भारतीयों ने जीत का परचम फहराया तो मेरे एक भोजपुरिया मित्र की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी थी - " रवीन्द्र भाई, देखो हमने बदला ले लिया सिडनी में हुए अपमान का , हमने दिखा दिया कि हम सोझिया खातिर सोझ हईं और लुचन खातिर लुच्चा , हम चुम्मों लेबे के जानिला आउर चटकनों लगावे के ।भारतीय क्रिकेट और भारतीय खिलाडियों को मेरा सलाम ! "

4 comments:

  1. लेख शीर्षक को चरितार्थ कर रहा है। सुंदर और सटीक लेख। आभार।

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  2. अभी अभी अपने एक मित्र से फोन पर बात करके नेट पर आई । वह क्रिकेट कोच है व हरभजन का कोच रह चुका है । उसके अनुसार जो गाली उसे अंग्रेजी में दी गई थी उस ही को उसने पंजाबी में दे डाला था । सो मामला बराबर था । परन्तु यह एक विचारधारा बन चुकी थी कि सफेद चमड़ी वाले के सौ खून माफ और भूरी चमड़ी वाले की एक गाली भी माफ नहीं , उस परम्परा को हरभजन ने तोड़ दिया है । गाली चाहे किसी भी रंग वाले ने दी हो टीम तो सफेद थी ।
    यह जानकर प्रसन्नता हुई कि अब हमारी नई पीढ़ी में इतना आत्मविश्वास है कि वे ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते हैं । और इतने सब तमाशे के बाद जीत भी सकते हैं । सब जानते हैं कि दूसरे मैच में अंपाइर्स के निर्णय सही नहीं थे । उन सबके बावजूद भारत की टीम ने मिलकर एक इतिहास बना दिया । सबसे अधिक खुशी अनिल कुम्बले जैसे सज्जन व्यक्ति के लिए है । उसका खुद का रिकॉरड और यह भारतीय जीत उसके व हम सबके लिए एक सुखद एहसास है ।
    घुघूती बासूती

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  3. बिल्कुक सही फ़रमाया आपने बहुत सटीक टिपण्णी की है आपने ! ईंट का जबाब पत्थर से देने का इससे और वेहतर विकल्प हो ही नही सकता !

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  4. शीर्षक से लगा जाने क्या लिखा है...लग तो रहा है जैसे दो शूरवीर-महावीर टकरा रहे है...:)
    अच्छा लगा पढ़कर...इंडिया जीत तो गई थी...मगर आस्ट्रेलिया के दो खिलाड़ी खेले भी नही थे...:)

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