११/२६ : एक शब्द चित्र

बारूदों के बीच जलते हुए अपने परिवार को
चीखते हुए अपने पिता/ कराहती हुयी अपनी माँ को
जब देखा होगा वह मासूम मोशे
तो सोचा होगा , कि कल जब बड़ा होगा वह
उसे भी झोंक दिया जायेगा आग में
औपचारिकताएं पूरी करने के लिए आतंक वाद की ...!

तब उसके भी लब्ज दब कर रह जायेंगे
और आँखे एक टक निहारती रहेंगी ममता को
सैनिकों के आने तक...!

उसे नही मालूम कि क्या है आतंक वाद

उसे केवल इतना पता है कि एक माँ थी
और एक पिता था उसका
जिसकी जरूरत पड़ती थी हर पल उसे
और उन्ही जरूरतों के बीच
वह सीख रहा था जीवन का ककहारा ....!

जीवन के फूलों में खुशबू का वास अगर नही कर सकते , तो -
किसी नौनिहाल की भावनाओं के साथ खेलना
किसी निर्दोष का कत्ल करना , कैसी मानवता है ?
ये कैसा आतंक है , कैसी मानसिकता है ?

कहीं ऐसा न हो , कि घायल स्वाभिमान और अपमान से -
उपजा आक्रोश लील जाए पूरी दुनिया को एकबारगी
फ़िर न आप होंगे और न हम
न यह नन्हा मोशे .....और न यह आतंकवाद ....!

6 comments:

  1. "कहीं ऐसा न हो , कि घायल स्वाभिमान और अपमान से -
    उपजा आक्रोश लील जाए पूरी दुनिया को एकबारगी
    फ़िर न आप होंगे और न हम
    न यह नन्हा मोशे .....और न यह आतंकवाद ....!"

    सही चित्रण है!

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  2. कविता वही जिसे पढ़कर आह निकल जाए , क्या बात है ...!

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  3. कहीं ऐसा न हो , कि घायल स्वाभिमान और अपमान से -
    उपजा आक्रोश लील जाए पूरी दुनिया को एकबारगी
    फ़िर न आप होंगे और न हम
    न यह नन्हा मोशे .....और न यह आतंकवाद ....!
    shayad aisa hi hoga aage,bahut sahi satik kavita,bahut achhi lagi.

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  4. खैर, मोशे एक ऐसे राष्ट का बच्चा है जो उसका लालन पालन राष्ट्र के बच्चे की तरह करेगा। भारत में संवेदना तो साबुन के बुलबुले की तरह होती है।

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  5. bhaavpoorn sarthak abhivyakti...

    kya kahen is durbhagyapoorn paristhiti par.

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  6. इतना सोच लेते तो आतंकवादी क्यों होते।
    अच्छी कविता।

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