आम जन के दिनांक २३.०६.२००९ के अपने पोस्ट नक्सली कौन? में संदीप द्विवेदी कहते हैं

सरकार सुनती नही - अमल करती नही और आम जन पिसती जा रही है कदम -दर-कदम मंहगाई में । क्या करे बेचारा सच बोलेगा तो सरकारी चक्रव्यूह में फंस कर दम तोड़ देगा , नही बोलेगा तो जब तक हिम्मत होगी ख़ुद को व्यवस्थित करेगा और जिस दिन व्यवस्थित कराने कि स्थिति में नही होगा .....उपरवाले के सामने आत्म समर्पण कर देगा यह कहते हुए कि शायद विधाता को यही मंजूर है ....!

आईये अब चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जहाँ होती है प्राचीन सभ्यताओं की वकालत ।


इसमें यह भी उल्लेख है कि -"व्यक्ति से लेकर समष्टि तक एक समाज-जीवन खड़ा करने में भारत के गणतंत्र के प्रयोग संसार को दिशा दे सकते हैं। कुटुंब की नींव पर खड़ा मानवता का जीवन शायद 'वसुधैव कुटुंबकम्' को चरितार्थ कर सके।"
प्राचीन सभ्यताओं कि वकालत के बाद आईये चलते है सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यवहारों - लोकाचारों में निभाती-टूटती मानवीय मर्यादाओं पर वेबाक टिपण्णी करने वाले और कानूनी जानकारियाँ देने वाले दो महत्वपूर्ण ब्लॉग पर । एक है तीसरा खंबा और दूसरा अदालत ।

ऐसा ही एक आलेख उनके ब्लॉग पर मेरी नजरों से दिनांक ३१.०५.२००९ को गुजरा । आलेख का शीर्षक था आरक्षण : देश गृहयुद्ध की आग में जलने न लगे । इसमें एक सच्चे भारतीय कि आत्मिक पीड़ा प्रतिविंबित हो रही है । उन्होंने लिखा है , कि "यह एक दुखद लेकिन गंभीर है, यहाँ तक कि एक खतरनाक स्थिति है। एक राज्य में दो लड़ाका जातियाँ हथियार लिए आमने सामने खड़ी हैं, और राजनीति उन के बीच अपराधी की भांति सिर झुकाए खड़ी है। इन घटनाओं ने आरक्षण आधारित सामाजिक न्याय के पूरे कार्यक्रम और उस के औचित्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। राजनीति में आज भले ही न सोचा जा रहा हो, लेकिन आरक्षण की इस व्यवस्था को किसी अन्य विकल्प से प्रतिस्थापित करने की स्थिति नहीं लायी गई, तो यह हो सकता है कि कुछ ही वर्षों मे देश गृहयुद्ध की आग में जल रहा हो।" इस तरह के अनेको चिंतन से सजा हुआ है यह ब्लॉग ।
सच तो यह है कि अपने उदभव से आज तक यह ब्लॉग अनेक सारगर्भित पोस्ट देये हैं , किंतु वर्ष-२००९ में यह कुछ ज्यादा मुखर दिखा ।

मुकद्दमे में रूचि दिखाने बालों के लिए यह ब्लॉग अत्यन्त ही कारगर है , क्योंकि यह सम सामयिक निर्णयों से हमें लगातार रूबरू कराता है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि भिलाई छतीसगढ़ के लोकेश के इस ब्लॉग में दिनेशराय द्विवेदी जी की भी सहभागिता है , यानि सोने पे सुहागा !
आज बस इतना ही मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद...!
श्रखला बढ़िया चल रही

जवाब देंहटाएंअदालत जैसे प्रयास को सम्मान देने हेतु आपका आभार
एक निवेदन, नाम ठीक करे लें
निलेश नहीं, लोकेश है
आज इस पोस्ट पर अपने तीसरा खंबा और अदालत की चर्चा देख कर मन प्रसन्न हुआ। आप ने जिक्र करने के लिए जिस पोस्ट को चुना मैं अनुमान ही कर सकता हूँ कि वह कितना श्रम साध्य रहा होगा। इस श्रम के लिए आप का बहुत बहुत आभार। दो बातें और आप को बताना चाहूँगा। एक तो यह कि इन दोनों ब्लागों पर सर्च से आने वालों की संख्या एग्रीगेटर्स के मुकाबले आठ से दस गुना है। दूसरा यह कि तीसरा खंबा पर कानूनी सलाह के लिए जो प्रश्न आ रहे हैं उन में ब्लागरों की संख्या नगण्य है। उन्हें सामान्य नेट उपयोगकर्ता भेज रहे हैं। वे मुझे रोमन हिंदी, देवनागरी और अंग्रेजी तीनों में प्राप्त होती हैं। इस से पता लगता है कि ब्लागर समुदाय के अलावा भी इन दोनों ब्लागों पर पाठक है और वे ब्लाग के साथ अंतर्क्रिया में भी संलग्न हैं।
जवाब देंहटाएंआप के द्वारा किया गया तीसरा खंबा का यह उल्लेख मेरे लिए किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है।
बहुत उपयोगी लिंक्स मिले .. ब्लाग जगत के समुद्र में से मोती निकालने का काम आप कर रहे हैं .. आपकी मेहनत की दाद देनी होगी !!
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी ब्लॉग लिंक्स मिले है , इस श्रम के लिए आप का बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंमेरी नजरों से श्रृंखला बढ़िया चल रही हैं ...मेरी कलम से,आम जन,तीसरा खंबा और अदालत उपयोगी ब्लॉग है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है जी,यानि सोने पे सुहागा !
जवाब देंहटाएंएक और चमत्कारिक विश्लेषण रविन्द्र जी...खासकर "आमजन" से परिचय करवाने का बहुत-बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही यह भी ..रोचक लगे कई लिंक्स ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआपको लेख पसन्द आ रहे हैं - इसका शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंपिछली कई कडि़यों को भी देखा।
जवाब देंहटाएंसम्भव हो तो कुछ प्रशंसित नये चिट्ठों व चिट्ठाकारों का उल्लेख भी कर दें ?