ग़ज़ल


हो गयी नंगी व्यवस्था , सादगी तलाश करो !
पत्थरों के शहर में एक आदमी तलाश करो !!


पर्यावरण के नाम पर कर दिए लाखों खरच-
खो गयी है गाँव से आई नदी तलाश करो !!


औरतों को मुख्यधारा दो मगर ये दोस्त पहले-
झुग्गियों में बिक रही नन्ही कली तलाश करो !!


एक-दो दशकों की कोशिश से नहीं होगा असर-
हर कोई मिलकरके इक नई सदी तलाश करो !!


आज के माहौल में सब व्यर्थ है जलसे-जुलूस -
मातमी धुन पर थिरकती हुई खुशी तलाश करो !!


दिन के हिस्से का उजाला पी न जाए यों प्रभात-
मैसमों के बीच फिर से रोशनी तलाश करो !!


() रवीन्द्र प्रभात

9 comments:

  1. बहुत अच्छी ग़ज़ल,शुभकामनाएँ !

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  2. एक-दो दशकों की कोशिश से नहीं होगा असर-
    हर कोई मिलकरके इक नई सदी तलाश करो !!

    सच कह रहे हैं । 8 या 10% से कुछ होने वाला नहीं, बुराइयों के प्रति असहिष्णुता शतप्रतिशत हो ।

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  3. प्रभात जी पहले तो मतले पर बहुत देर रुकी हूँ कमाल है और फिर गज़ल का एक एक शेर कई बार पढ गयी इस उस्तादाना गज़ल पर क्या कहूँ मै तो अभी इस मामले मे पहला कदम ही रखा है। पूरी गज़ल कोट करना चाहती हूँ क्यों कि हर शेर बहुत कुछ ऐसा कहता है जो शायद कहीं नही कहा गया
    लाजवाब गज़ल के लिये बधाई और शुभकामनायें

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  4. हो गयी नंगी व्यवस्था , सादगी तलाश करो !
    पत्थरों के शहर में एक आदमी तलाश करो !!

    बहुत सही कहा आपने। एक शे’र याद आ गया

    ख़ुदा तो मिलता है, इंसान ही नहीं मिलता,
    ये चीज़ वो है, जो देखी कहीं कहीं मैंने।

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  5. आपकी ग़ज़ल का हर शेर सोचने पर विवश कर रहा है , खासकर यह शेर कहीं ज्यादा-
    "एक-दो दशकों की कोशिश से नहीं होगा असर-
    हर कोई मिलकरके इक नई सदी तलाश करो !!"
    बहुत ही सार्थक और प्रासंगिक है यह ग़ज़ल , बार-बार पढ़ने को जी चाह रहा है !

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  6. ग़ज़ल की भावाभिव्यक्ति बहुत ही मार्मिक है जनाब ! लगता है डूबकर लिखा है आपने ?

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  7. शायद तलाश करें तो मिल ही जाये...खोई हुई नदी कोई,थिरकती हुई ख़ुशी कोई..

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  8. aadaab bhai jaan ,
    kaise hain... khubsurat baat kahi hai aapne gazal ke jariye.... behad samayeek gazal ... puri daad dil se kubul karen...

    ho gayee nangee byavasthaa sadagee talaash lo ...


    arsh

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