कुछ ही दिन पूर्व एक विद्वान् लेखक का शोधपूर्ण तकनीकी लेख पढ़ा. “बहुत कठिन है डगर पनघट की”. इस लेख में पाँच तकनीकी बाधाओं का उल्लेख करते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया था कि इन समस्याओं का हल निकाले बिना हिंदी को इंटरनेट पर लाने के अब तक के तमाम प्रयासों समेत भविष्य के भी प्रयास प्रभावकारी नहीं हो   सकेंगे . निश्चय ही यह स्थिति कुछ वर्ष पूर्व सही थी, लेकिन अब कंप्यूटर, इंटरनेट और ई-मेल के क्षेत्र में होने वाली नित नई खोज से ऐसा लगने लगा है कि अब कठिन नहीं रही डगर हिंदी इंटरनेट की........

() यह जानकारी दे रहे हैं श्री विजय के मह्लोत्रा ......यहाँ किलिक करें


आज सातवें दिन की संपन्नता की ओर बढ़ते हुए आज हम अमर शहीद  भगत सिंह की सहादत के ७५ वर्ष पूरे होने पर एक दस्तावेज प्रकाशित कर रहे हैं......यहाँ किलिक करें

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इसी के साथ आज का कर्यक्रम संपन्न, कल उत्सव के लिए अवकाश का दिन है ...इसलिए हम अब दिनांक ३०.०४.२०१० को पुन: उपस्थित होंगे प्रात: ११ बजे परिकल्पना पर ....लेकर 20 वीं शताब्दी के आठवें दशक में अपने पहले ही कविता संग्रह 'रास्ते के बीच' से चर्चित हो जाने वाले आज के सुपरिचित हिंदी कवि दिविक रमेश का साक्षात्कार . साथ ही श्रीमती सरस्वती प्रसाद,रवि रतलामी, निर्मला कपिला, रश्मि रविजा आदि की कहानियाँ .....इसके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ !
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3 comments:

  1. आपके विचारों की 'परिकल्‍पना' के द्वारा की गयी ब्‍लोगोत्‍सव 2010 की परिकल्‍पना सुदर यथार्थ में बदलती जा रही है .. पहले दिन से ही मैं इसका आनंद लेती जा रही हूं .. आज के सफलतापूर्ण संपन्‍नता पर आपको ढेरो बधाई .. आगे भी इंटरनेट के हिंदी पाठकों के लिए यह कुशलतापूर्वक ज्ञान , कला और साहित्‍य का भंडार लेकर उपस्थित होती रहेगी .. इसके लिए शुभकामनाएं !!

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  2. परिकल्पना वजूद में आयी ही नहीं ,शिखर छू रही है

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