मैं समय हूँ !

मैंने देखा है बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध जो छायावादी कवियों का उत्थान का काल था ...उसी समय अल्मोड़ा निवासी सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रवर्तक के रूप में हिन्दी साहित्य में अभिहित हुये।

मैंने देखा है -कविवर पंत का श्रेष्ठ प्रकृति चित्रण -झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भंवरा गुंजन, उषा किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से उनके काव्य के उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था, गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, उंची नाजुक कवि का प्रतीक समा शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था।

आज कविवर पन्त हमारे बीच नहीं हैं , किन्तु एक व्यक्तित्व है हमारे बीच -

नाम है श्री मती सरस्वती प्रसाद जो कविवर पन्त की मानस पुत्री हैं

उपस्थित हुई हैं अपने संस्मरण के साथ ब्लोगोत्सव में .......

यह उत्सव न जाने क्या -क्या दस्ताबेज हमारे सामने प्रस्तुत कर रहा है और मैं -

अपने पन्नों में उसे निरंतर दर्ज करता जा रहा हूँ .....!

चलिए चलते हैं कविवर पन्त की मानस पुत्री सरस्वती जी के पास उनसे सुनने उनका संस्मरण-

यहाँ किलिक करें

जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

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