आप सभी का पुन: स्वागत है परिकल्पना पर . ब्रेक से पहले आप नीता और प्रीति के विचार से रूबरू हुए ....इसी क्रम में मैं अब आपको ले चलती हूँ श्री एच० पी० शर्मा और श्री आलोक श्रीवास्तव जी के पास और उनसे वही प्रश्न दुहराती हूँ कि क्या आप आज के लाईफ स्टाईल से संतुष्ट हैं ?


एच० पी० शर्मा/ कवि

मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की !

प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,
जय बोल बेईमान की !

महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेस
पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,
जय बोल बेईमान की !

डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम,
कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम।
धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की,
जय बोलो बेईमान की !

दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर,
डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर।
नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की,
जय बोलो बेईमान की !

चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,
आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।
बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,
जय बोलो बईमान की !

वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश,
छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस।
मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की,
जय बोलो बईमान की !

आलोक श्रीवास्तव
coolaries26@gmail.com

वर्तमान समय मे जिस लाइफ स्टाइल को आज का युवा वर्ग आत्मसात किये हुए है, वह कही से भी लम्बी दूरी के सोच के अनुकूल नहीं है.आज का जीवन स्तर पूरी तरह से मै पर निर्भर है, केवल अपनी आवश्यकता और उसके समाधान तक की सोच है, आज के समय मे लोगो की उपभोक्तावाद इस कदर हावी है की लोग अब उधार की ज़िन्दगी मे ज्यादा विश्वास करते है, और अपना मानसिक सकूं खो देते है उस उधार को पूरा करने के जद्दोजहद मे
उन्हें हर वह चीज़ चाहिए जिसे वो दुसरे के पास देखते है, भले ही वह उनके लिए आवश्यक हो अथवा ना हो पर चाहिए ही चाहिए आज के समय मे वस्तु इंसान से ज्यादा महत्वपूर्ण है वस्तु से प्यार है लोगो को इंसान से नहीं
सुबह से लेकर रात तक भागता रहता है इंसान, और देर रात जब थक कर इंटो की चाहरदीवारी(घर तो रहा ही नहीं अब) के भीतर पहुँचता है, तो उसके पास स्वयं तक के लिए समय नहीं बचा होता और फिर कल के लिए सोचते हुए सो जाता है अगले दिन पुनः वही दिनचर्या. पिपासा है की शांत होने का नाम ही नहीं लेती और उसको शांत करने के फेर मे इंसान सबकुछ भूल कर लगा पड़ा है. एक समय मे जो संतोषम परम सुखं की बाते करता था आज लालच मे अँधा हुआ पड़ा है .
बड़े होने के दो तरीके है :
एक आप खुद को बड़ा बनाओ और दूसरा बाकी लोगो को छोटा कर दो
आज के समय मे दूसरा वाला रास्ता ही ज्यादा प्रचलन मे है-
दुसरो को गिरा के, नीचा दिखा के, हतोत्साहित करके, ज्यादा सुख की अनुभूति होती है

आगे बढ़ने की लालसा इतनी तीव्र है, की उसके लिए कोन से रास्ते का चुनाव किया है इसका कोई महत्त्व नहीं है
सबकी नज़रे केवल अंतिम परिणाम पर टिकी रहती है, कोई ये नहीं जानना चाहता की यह परिणाम कैसे और क्यूँकर प्राप्त किया गया है . हमें तो नहीं लगता की आज के लाइफ स्टाइल से कोई भी संतुस्ट है ...सभी की अपनी अपनी भौतिक लाल्साये है और वह उन्हें पूरा करने के लिए लगा पड़ा है....इस धरती के वासियों की कर्म प्रधान सोच अब परिणाम प्रधान हो गयी है .

अब इस क्रम को मैं आगे बढाऊंगी एक अल्प विराम के बाद .....आईये मैं आपको पुन: ले चलती हूँ कार्यक्रम स्थल जहा व्यंग्य के साथ उपस्थित हैं रायपुर छतीसगढ़ से श्री ललित शर्मा अपने चुटीले व्यंग्य के साथ.....यहाँ किलिक करें

बने रहिये परिकल्पना के साथ , मिलती हूँ एक अल्प विराम के बाद

2 comments:

  1. वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश,
    छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस।
    मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की,
    जय बोलो बईमान की !

    हा बहोत कडवा सत्य है ये..पर हम भी तो ये सब कायर बनके देखते रहेते है न..करोड़ रुपैये का जो मजदुर फ्लेट बनाता है उसके पास जिन्दगी भर खुद का छपरा नहीं होता है किसी बिल्डुर ने अभी तक किसी मजदुर को एक कमरा नहीं दिया इतने पत्थर दिल इन्सान हो गए है..

    सुबह से लेकर रात तक भागता रहता है इंसान, और देर रात जब थक कर इंटो की चाहरदीवारी(घर तो रहा ही नहीं अब) के भीतर पहुँचता है, तो उसके पास स्वयं तक के लिए समय नहीं बचा होता..

    बात सही है पर इंसान खुद ही ये रास्ता चुनता है क्योकि उसे सब कुछ चाहिए ..

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