आज परिचर्चा का दसवां दिन है, कल मैंने कई महत्वपूर्ण चिट्ठाकारों के विचार से रूबरू हुए थे ......इसी कड़ी में आज के दिन की शुरुआत हम करने जा रहे हैं हिंदी के वहुचर्चित युवा चिट्ठाकार श्री सलीम खान से !
तो आईये उनसे पूछते हैं क्या है उनके लिए आज़ादी के मायने ?


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हम बात अगर देश की आज़ादी की करें तो बस मन में टीस के अलावा कुछ नहीं होती है. भई ! हम तो अब भी स्वतंत्र नहीं है और तब भी नहीं थे. पहले फिरंगियों के ग़ुलाम थे और अब इन कमीने नेताओं के! चारो ओर ज़रा आँखें बन्द करके नज़र दौड़ाईये, खोल के नहीं! आप पाएंगे कि भारत में अधिकतम सिर्फ़ 5% लोग ही आज़ादी ख़ास कर आर्थिक और सामजिक आज़ादी का फायेदा उठा रहे हैं, उनमें है हमारे नेता, बॉलीवुड सितारे और धर्म की आर्थिक दुकाने चलाने वाले ! बाक़ी सब दर्शक की भांति उन्हें टीवी पर देखते हैं और अपना सब कुछ में से बहुत कुछ गंवा कर उन जैसा बनने की कोशिश करते हैं या फ़िर बाक़ी सब की हालत सिर्फ़ क़व्वाली गाने वाले के पीछे बैठे ताली बजाने वालों से बढ़कर कुछ नहीं होती है!!!

जब मैं आज़ादी के बारे में सोचता हूँ तो मैं पूरी सृष्टि के हर-एक मानव कि आज़ादी के बारे में सोचता हूँ, मानव ही क्या पूरी सृष्टि में हर-एक के लिए! यहाँ हम विस्तार में आगे जाने से पहले कुछ व्यक्तिगत विचार आप तक पहुँचाना चाहूँगा. कुल मिला कर एक वाक्य में कहें तो पूरी मानवजाति की में जब एकता हो तो यह वास्तविक आज़ादी होगी! परन्तु अगले ही क्षण एक सवाल मन में आता है कि क्या यह संभव है?

आज़ादी तो तब ही होगी जब हम देश के, समाज के ग़लत तत्वों के उत्पीडन से आज़ाद न हो जाएँ, आज़ादी तो तब ही होगी जब अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी हो (अभिव्यक्ति का मतलब यह नहीं किसी को गाली देने का मन हो तो बक दिया, अपनी सार्थक और सत्य बातें कहने की आज़ादी अभिव्यक्ति की असल आज़ादी कहलाती है), आज़ादी तो तब ही होगी जब हिंसा का दुरुपयोग न होगा, आज़ादी तो तब ही होगी जब देश के हर एक व्यक्ति की सेहत की सुरक्षा के लिए एक आम और सशक्त योजना हो और उस पर इमानदारी से कार्यान्वयन हो, आज़ादी तो तब ही होगी जब अपनी शक्तियों का ग़लत इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति का खात्मा होगा।

क्या हम दूसरों की मदद के लिए आज़ाद हैं? आपका जवाब होगा "हाँ" मेरा इसके विलोम जवाब है "नहीं". आईये देखे कैसे? एक साइकिल सवार को एक चार पहिया वाहन रौंद कर चल देता है और वह तल्पने लगता है! इमानदारी से जवाब दीजियेगा... क्या आप उसकी मदद के लिए आगे बढ़ेंगे? क्या आप उसकी मदद के लिए आगे बढ़ने से पहले ये नहीं सोचते कि जाने दो भाई कौन कानूनी पछडे में पड़ेगा, कौन पुलिस वुलिस के चक्कर में पड़ेगा? अब आपका जवाब क्या है??? ये कैसा क़ानून ये कैसी आज़ादी कि अगर हम किसी की दिल से अंतर्मन से मदद करना चाहें तो भी न कर सकें !

मैं तो उसी दिन आज़ादी का असल मायने बता पाने में सक्षम हो सकूँगा जब इस देश बल्कि पूरी दुनियाँ में अमीर-ग़रीब का फासला ख़त्म होगा, उसी दिन आज़ादी का असल मायने बता पाने में सक्षम हो सकूँगा जब गोरे-काले का ज़मीनी स्तर पर, दिल के स्तर पर फासला खात्मा होगा, उसी दिन आज़ादी का असल मायने बता पाने में सक्षम हो सकूँगा जब ऊँच ज़ात-नीच ज़ात का वाहियात तंत्र ख़त्म होगा, उसी दिन आज़ादी का असल मायने बता पाने में सक्षम हो सकूँगा जब एक बलात्कारी को मौत की सज़ा देने का प्रावधान न हो सके!

अब बताईये क्या हम वाक़ई सक्षम है आज़ादी के मायने अपनी ज़िंदगी में बताने के लिए !!!???

() सलीम खान
(वर्ष के चर्चित युवा ब्लोगर )
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जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक अल्प विराम के बाद......

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