"हुजुर सल्लाहो अलैहे वसल्लम,
कहते हैं बांटो खुशियाँ औरों का लेके गम !
रमजान का महीना ये याद दिलाता है-
इस्लामे हर सिपाही का ईमान और करम !!
अश्क लेके खुशी देके हसीं काम कीजिये
और मादरे वतन को ये पयाम दीजिये ....!"

पवित्र रमजान माह शबाब पर हैं। बाजारों में चहल-पहल शुरू हो गई है। इस माह की खास नमाज 'तरावीह' के लिए मस्जिदों में तैयारी की गई है।घड़ी की सुइयाँ जैसे ही तड़के 3.45 बजे के वक्त को छूती हैं शहर में अस्सलाम अलैकुम... गूँज उठता है। क्या बच्चे, क्या औरतें और क्या बुजुर्ग तकरीबन सभी इबादत में डूबे हैं।

अलविदा के नमाज़ की तैयारी चल रही है , फिर ईद मुबारक का दौर चलेगा ....! ऐसा मानना है कि "रमजान का यह पाक महीना अल्लाह के बताये मार्ग पर चलने का संकल्प है और मालिक द्वारा बनाए गए इज्जत,अदब, पेश करने के तरीकों पर अमल करने की सिख देता है ..रोजे का मकसद भूखा रहना नहीं बल्कि बुराइयों से बचना व नेकियों पर चलना है। यह एक माह की ट्रेनिंग है कि बाकी जिंदगी भी ऐसे ही नेकियों पर चलते हुए गुजारी जाए।"


मैंने बचपन के कुछ वर्ष बिहार और नेपाल की सीमा पर अवस्थित कस्बा बेला-परिहार में बिताएं हैं जहां मेरे पिताजी की पहली पोस्टिंग हुई थी तब मैं बहुत बच्चा था । मेरे पड़ोस में रहते थे रमजान अली , मेरे पिताजी के बड़े अच्छे मित्र । मेरे घर उनका अक्सर आना जाना बना रहता था । सच तो यह है कि उनकी गोद में खेलकर ही मैंने ककहरा सिखा । उन्हें हम रमजानी चाचा कहकर पुकारते थे । मैंने उनसे एक बार पूछा कि आपका नाम रमजानी क्यों पडा तो उन्होंने कहा कि मैं रमजान में पैदा हुआ था इसीलिए हमारे वालिद साहेब ने मेरा नाम रमजान रख दिया ।

मैंने बहुत सारी बातें उनसे सीखी है , जिसमें से एक है इस्लाम के बारे में सूक्ष्म जानकारियाँ ! रामाजानी चाचा कहते थे , कि रमजान इसलाम में उपवास या रोजों का पवित्र महीना माना गया है, जो मुस्लिम वर्ष का नौवां महीना होता है । इसी महीने में "कुरआन" को लोगों के मार्गदर्शन के लिए धरती पर भेजा गया था । धार्मिक क्रिया की दृष्टि से यह महीना यहूदी योम किपुर से मिलता-जुलता है , क्योंकि दोनों ही प्रायश्चित काल है , लेकिन रमजान को प्रायश्चित कम और अल्लाह के आदेश का पालन अधिक माना जाता है । मुस्लिम धर्माविधि में व्यवस्था है,कि भोजन,पेय और यौन संपर्क से इस पूरे महीने भर भोर से संध्या तक विरत रहा जाए। रमजान के प्रारंभ और अंत की घोषणा तब होती है , जब एक विश्वसनीय प्रेक्षक , अधिकारी वर्ग के सामने यह पक्की सूचना देता है कि नवचंद्र दिखाई दिया है । आसमान में बादल छाने की स्थिति में रोजों में देरी हो सकती है या वे आगे बढ़ सकते हैं ।

कुरआन में रमजान माह में रोजों का विकास , जो इसलाम के पांच स्तंभों या आधारभूत व्यवस्थाओं में से एक है , 'आशूरा' या मुहर्रम के दसवें दिन उपवाश रखने के आदेश में पाया जा सकता है । यह शायद कभी यहूदियों के 'पश्चाताप के दिन' के सामान ही था । यही आदेश बदलकर रमजान माह में रोजा रखने के आदेश से प्रतिस्थापित कर दिया गया । ऐसा कहते थे हमारे रमजानी चाचा । आज रमजानी चाचा इस दुनिया में नहीं हैं मगर जब भी रमजान या ईद का महीना आता है याद आ जाते हैं रमजानी चाचा और जेहन की कोख से फूटकर बाहर निकालने लगती है उनकी कही गयी बातें ....!

5 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया संस्मरण प्रस्तुत किया है आपने , रमजान के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुयी !

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  2. बहुत ख़ूब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अच्छा लगा...........

    पवित्र रमज़ान मुबारक हो भाई !

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  3. "कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्!"
    --
    योगीराज श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई!

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  4. पवित्र रमज़ान मुबारक हो !श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की बधाई!

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