ग़ज़ल

ज़िंदगी के श्वेत पन्नों को न काला कीजिये
आस्तिनों में संभलकर सांप पाला कीजिये।

चंद शोहरत के लिए ईमान अपना बेचकर -
हादसों के साथ खुद को मत उछाला कीजिये।

रोशनी परछाईयों में क़ैद हो जाये अगर -
आत्मा के द्वार से खुद ही उजाला कीजिये।

खोट दिल में हर किसी के यार है थोडी-बहुत
दूसरों के सर नही इल्ज़ाम डाला कीजिये ।

ताकती मासूम आँखें सर्द चूल्हों की तरफ ,
सो न जाये तब तलक पानी उबाला कीजिये।

जब तलक प्रभात जी है घर की कुछ मजबूरियाँ ,
शायरी की बात तब तक आप टाला कीजिये ।

() रवीन्द्र प्रभात

14 comments:

  1. बेहतरीन ....एक एक शेर करीने से पिरोया है
    माशाअल्लाह ...कमाल है
    ब्रह्माण्ड

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  2. इसे तो धुन में होना चाहिए ताकि सबकी जुबां पे हो

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  3. ताकती मासूम आँखें सर्द चूल्हों की तरफ ,
    सो न जाये तब तलक पानी उबाला कीजिये।
    वाह रवीन्द्र जी बहुत अच्छी गज़ल कही है। बधाई।

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  4. चंद शोहरत के लिए ईमान अपना बेचकर -
    हादसों के साथ खुद को मत उछाला कीजिये।

    गज़ल का हर शेर बहुत कुछ सीख देता हुआ ...

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  5. आस्तिनों में संभलकर सांप पाला कीजिये।nice

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  6. बहुत अच्छी ग़ज़ल है , इसके सभी शेर लाजबाब है !

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  7. रोशनी परछाईयों में क़ैद हो जाये अगर -
    आत्मा के द्वार से खुद ही उजाला कीजिये।

    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  8. रोशनी परछाईयों में क़ैद हो जाये अगर -
    आत्मा के द्वार से खुद ही उजाला कीजिये।
    .....
    .....
    लाजवाब ग़ज़ल है
    एक-एक शेर बेहतरीन
    ग़ज़ल में भरपूर ताजगी है

    बहुत-बहुत बधाई
    आभार

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  9. बहुत ही शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई.

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  10. prabhat ji
    bahut sundar rachana aur bahut sundar bhavabhivyakti, BADHAI

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  11. PRABHAT JI
    BAHUT SUNDAR RACHANA AUR USASE BHEE SUNDAR BHAVABHIVYAKTI,BADHAI

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