जब -
बीमार अस्पताल की
बीमार खाट पर पडी

मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा

तब महसूस रहा था मैं
कि, कैसे -
मौत से जूझती है एक आम औरत ।


कल की हीं तो बात है
जब लिपटते हुये माँ से
मैंने कहा था , कि -
माँ, घबराओ नही ठीक हो जाएगा ..... ।

सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी
बहने लगे लोर बेतरतीब
सन्न हों गया माथा
और, माँ के थरथराते होंठों से
फूट पडे ये शब्द -
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........?
() रवीन्द्र प्रभात

10 comments:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति....वाकई....कुछ ठीक होने वाला नहीं...ये दुनिया है ऐसे ही चलेगी
    http://veenakesur.blogspot.com/

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  3. विना जी,
    यही सच है कि हमारे देश में सब कुछ राम-भरोसे ही चल रहा है , शासन-प्रशासन अथवा अस्पताल ही क्यों न हो ?

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  4. सचमुच मार्मिक है यह अभिव्यक्ति !

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  5. अज के हालात को देख कर तो यही लगता है कि ये दर्द और बढेगा
    बहुत गहरे भाव लिये रचना के लिये धन्यवाद।

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  6. बहुत ही गहराई लिये प्रत्‍येक शब्‍द, सुन्‍दर रचना ।

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  7. बहुत गहरे भाव लिये अभिव्यक्ति के लिये धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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