ग़ज़ल :
किसी दरिया,किसी मझदार से नफरत नहीं करता
सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता ।

यक़ीनन शायरी का इल्म जिसके पास होता वह -
किसी नुक्कड़,किसी किरदार से नफरत नहीं करता।

परिन्दों की तरह जिसने गुजारी जिन्दगी अपनी -
गुलाबों के सफ़र में खार से नफरत नहीं करता ।

चलो अच्छा हुआ तूने बहारों को नहीं समझा -
नहीं तो इस क़दर पतझार से नफरत नहीं करता।

हिम्मत बुलंद अज्म का पैकर जो होता है वही -
किसी के धर्म व त्यौहार से नफ़रत नहीं करता ।

फटे कपड़ों से तेरी आबरू ग़र झांकती होती-
मियाँ "प्रभात" तू बीमार से नफरत नहीं करता ।

* रवीन्द्र प्रभात

13 comments:

  1. चलो अच्छा हुआ तूने बहारों को नहीं समझा -
    नहीं तो इस क़दर पतझार से नफरत नहीं करता।

    अच्छी पंक्तिया लिखी है ........

    यहाँ भी आये और अपनी बात कहे :-
    क्यों बाँट रहे है ये छोटे शब्द समाज को ...?

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  2. परिन्दों की तरह जिसने गुजारी जिन्दगी अपनी -
    गुलाबों के सफ़र में खार से नफरत नहीं करता ।

    बहुत अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति. आभार.

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  3. हिम्मत बुलंद अज्म का पैकर जो होता है वही -
    किसी के धर्म व त्यौहार से नफ़रत नहीं करता ।

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  4. अर्थपूर्ण सुन्‍दर अभिव्यक्ति. आभार !

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  5. बेहतरीन ग़ज़ल , हर एक शेर उम्दा और प्रासंगिक भी !

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  6. यक़ीनन शायरी की इल्म जिसके पास होती वह -
    किसी नुक्कड़,किसी किरदार से नफरत नहीं करता।
    sahi hai

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  7. आपकी ग़ज़ल के शब्दों ने सार्थक अभिव्यक्ति दी है ... सुंदर रचना।

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