चौबे जी की चौपाल

  
ऊपर सब टांके- टांका है और अन्दर से सरक गया समूचा तंत्र
  
                                             
आज चौबे जी बहुत परेशान हैं, कह रहे हैं कि हमको भी ठग दिया ससुरा, छ: महीना पाहिले जूता ख़रीदे थे साहू सिनेमा के पास वाली गली में , सोंचे कि साल-दुई साल तो चल ही जाएगा मगर हाई री बेईमानी, सरकारी दफ्तर की तरह तल्ला के ऊपर सब टांके- टांका है और अन्दर से सरक गया समूचा तंत्र . जब हम इसको खरीदे थे तो भ्रष्ट बाबू की तरह दांत निपोर के बोला था रामबदनवा कि चच्चा इसको लेई लो, चमकाए के रक्खो बस पानी से बचाना, खूब  चलेगा ....बताओ राम भरोसे ई सरासर धोखा है कि नाही ?
  
जूते की का गारंटी महाराज ?...जब पहनेंगे तो मचरै मचर करबे करेगा ...तल्ला है तो घिसबे करेगा और पहिन के नाचेंगे तो बगली से फटेगा नहीं का ? हर जूता की गारंटी अलग-अलग होती है ...जहां तक हमरे जानकारी में है जूता कई प्रकार का होता है , एक होता है चट्टी-चमरौधा दूसरे चमड़े वाली चटपटिया,एक होता है पंप जूता और एक बूट, एक मलेटरी वाला जूता भी होता है अऊर एक होता है जनाना जूती, लईकन के कपडहवा जूता की वेराईटी अलग होती है अऊर सेंडिल की वेराईटी अलग मगर जो मजा चांदी के जूते में है वह किसी जूते में नहीं , आज  पूरा का पूरा देश छुछमाछर होके एक दूसरे को चाँदी के जूते मार रहे है और जूता खाने वाला फुलि के कुप्पा हो रहा है  अईसे में  रामबदनवा अगर बहती गंगा में हाथ  धो ही लिया तो कवन गुनाह कर दिया महाराज.....? बोला राम भरोसे !
  
चांदी के जूते इतने पवित्र माने गए हैं का ? तपाक से पूछा धनेसरा
  
अरे बहुत पवित्र धनेसर ....बहुत पवित्र....सुन ई संबंध में एगो प्राचीन कहानी सुनाते हैं तुमको ....एक बार एक साहूकार का पुत्र  व्यापार करने  के लिए गांव से नगर  जाने लगा। जाने से पहले  वह अपने पिता  के पास आशीर्वाद के लिए गया। पिता ने पुत्र  को अपने कलेजे से लगाया और खटिया  के नीचे रक्खे बक्से  का ताला खोलकर एगो जूता निकाल कर दिया। जूता ईसा- वईसा नहीं चांदी का था। पिता ने कहा-बेटा! ई  रख लेयो । तुम्हरे  काम आएगा। तुम जब किसी परेशानी में पड़ो, तब इस चांदी के जूते का इस्तेमाल करना। तुम्हारे ही तरह जब हम्म  भी जब नगर जाने लगे थे तो हमरे बाबूजी ने ई जूता हमको दिया था । हमने तो  इसका भरपूर इस्तेमाल किया है और इस चांदी के जूते की मेहरबानी से मेरा काम कभी नहीं अटका बेटा, क्योंकि नगर के लोग  सिर्फ चांदी की चरण पादुका की जुबान ही समझते हैं। साहूकार की बात सुन उसके बेटे ने चांदी का जूता लिया और नगर के लिए प्रस्थान कर गया । नगर तक पहुंचते-पहुंचते उसे सांझ हो गई। नगर प्रहरियों ने नगर द्वार बंद कर दिए। साहूकार पुत्र का सारा कारवां बाहर ही रह गया। अब पुत्र को चोर-डाकुओं का डर सताने लगा। तभी उसे अपने पिता के दिए चांदी के जूते का खयाल आया। उसने अपने थैले से चांदी का जूता निकाला और सरकारी प्रहरियों को दिखा कर हवा में लहराया। साहूकार-पुत्र को अंदाज ही नहीं था कि चांदी का जूता ऎसा करिश्मा करेगा। प्रहरियों ने तुरन्त द्वार खोल दिए और साहूकार का कारवां नगर में प्रवेश कर गया। उस जमाने की परम्परा आज तक चली आ रही है। वही चांदी का जूता सात पीढियों से साहूकार के वंशजों के पास है। चांदी का जूता राजकाज में ही नहीं, राजनीति में भी खुबई चल रहा है आजकल, आज जेकरे पास है चांदी का जूता वोकरे पास  पद, पईसा, प्रतिष्ठा,प्रशंसा, कार, मोटर, कुर्सी सब..यानी ई बहुतई कारगर अस्त्र है, का समझे ?
  
एक दम्मै सही कह रहे हो बरखुरदार, चांदी के जूते की खनक से अच्छे-अच्छे हिल जाते हैं, जिसे चांदी के जूते खाने की आदत पड़ जाती है, उसे बढ़िया से बढ़िया पकवान भी नहीं भाता ...अब देखो न अपना ललूआ रबडी  भी खाता है तो  चारा में मिलाकर, राजा ने तो देश का बैंड ही बजा डाला चांदी के जूते खाने के चक्कर में, पवार की बात छोडिये उसके पास तो खाने के लाईसेंस मिले हुए हैं अऊर कलमाडी को तो चांदी के जूते खाने का ऐसा चस्का लग गया है भईया कि का कहें,अब तो उसी खेल-खेल में भी चाहिए चूँ-चूँ का मुरब्बा, कपिल सिब्बल के मंत्रालय में ही भांग घुली है ..पूरा मंत्रालय ही नशे में है ... चांदी के जूते के चक्कर में अन्ना के साथ-साथ पूरे देश को टोपी पहना रहे हैं आजकल .....अपनी दाढ़ी सहलाते हुए बोला रमजानी !
  
यह सब सुनकर चौबे जी से रहा नहीं गया, बोलै कि वो तो ठीक है रमजानी मियाँ की चांदी के जूते में बहुत पावर है मगर जब ओवरडोज हो जाता है तो फाक्काकसी निकल जाती है झटके में.....! अब देखो न sss चांदी के जूते खाने के चक्कर में मधु कोड़ा  की हालत अपने खलील मियाँ की तरह हो गयी है, वो ज़माना  लद गया जब खलील मियाँ फ़ाक्ता उड़ाया करते थे ...! का गलत कहत हाई रमजानी ?
एक दम्म सही s  s  s  s  s  s .......!
ई त s सही कहत हौ चौबे जी, मगर ई बताओ कि अपने देश में जूते खाने की लत पहिले नेता को पडी कि अफसर को ? गजोधर ने पूछा
नेता को ...!
ऊ कईसे ?
देख हम सबको चाहिए एकता अऊर नेतवन को चाहिए अनेकता .....हम सबको चाहिए रोटी अऊर नेतवन को चाहिए बोटी .....हम सबको चाहिए लत्ता अऊर नेतवन को चाहिए सत्ता .....हम सबको चाहिए मकान अऊर नेतवन को चाहिए आन-बान-शान........हमको चाहिए रोजगार अऊर नेतवन को चाहिए मौज-बहार ....इसी लिए हम छले जाते हैं अऊर नेतवन के  सर पे अफसर आसानी से चांदी के जूते मले  जाते हैं....नेता मान गए तो अफसर की भी चांदी ....भले ही देश की हो जाए बरबादी ....इसलिए गजोधर हमारा मानना है कि जूता खाने की लत पहिले नेतवन को पडी फिर अफसर को, क्योंकि पानी हमेशा ऊपर से नीचे की ओर गिरता है भईया .....यानी बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रुपईया .....का समझे गजोधर ?
  
समझ गया चौबे बाबा ......जय हो भ्रष्टाचारी छुटभईये की....दिल खोलकर चांदी के जूते खाओ और चोर-चोर एक हो जाओ फिर तेरा कुछ भी नहीं बिगार पायेगा अन्ना, क्योंकि ८० प्रतिशत ईमानदार के पास नहीं है पावर.......अऊर २० प्रतिशत भ्रष्ट बना हुआ है सुपर पावर हमरे देश मा.....! गजोधर ने कहा
  
 इसी चर्चा के साथ चौबे जी ने चौपाल को अगले ईतबार तक के लिए स्थगित कर दिया ....!
 
रवीन्द्र प्रभात

8 comments:

  1. जो अभी भी मानते हैं कि ब्लागों पर अनर्गल लिखा जाता है... उन्हें यहां आना चाहिये

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  2. चाँदी के जूते की महिमा अपरम्पार है ,चौबे जी यह महिमा बिलकुल चौधरी के तरह है, जिसको मिल जाय वह बार-बार पाना चाहता है ,जीतनी बार पता है कहता है ये दिल मांगे मोर ! हा..हा..हा..हा.......

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  3. चौपाल आजकल चकाचक है , चौबे जी महराज की जय हो !

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  4. यही एक मात्र जूता है जिसकी मार खाने से लोगों को मज़ा आता है, बिल्कुल इस आलेख की तरह।

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  5. शब्दों का ऐसा जूता चलाया, ऐसा चलाया कि जैसे आज कलमाडी को कोर्ट जाते वक्त किसी ने सच मे जूता मारा। लाजवाब कटाक्ष। शुभकामनायें।

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