कल  दस दिनों बाद कश्मीर की यात्रा से सपरिवार लौटा, सफ़र की थकान थी बस कुछ मेल ही पढ़ पाया , आज ब्लॉग जगत की सैर करने निकला तो विगत ३० अप्रैल को हुए हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान समारोह की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं से रू-ब-रू हुआ, कईयों ने सुझाव भी दिए, निंदा भी की और कईयों ने आलोचनाएँ भी, किन्तु जिस प्रतिक्रिया से मैं स्तब्ध रह गया वह थी : 

खुशदीप सहगल,देशनामा,भड़ास 4 मिडिया 



खुशदीप भाई, शायद आपकी कुछ मजबूरियाँ रही होगी जो ऐसा कहा आपने, मेरे ख्याल से आपको ही नहीं आमंत्रित हर प्रतिभागी को यह मालूम था , क्योंकि आमंत्रण पत्र में स्पष्ट लिखा था क़ि सम्मान प्रथम सत्र में ही प्रदान किये जायेंगे और प्रथम सत्र का उदघाटन मुख्य मंत्री निशंक को ही करना था ....!


सतीश जी....जैसे जैसे मैं कहता जाऊं, तुम्हें बस वैसे करते जाना है...बस एक बात का ध्यान रखना, अपना दिमाग़ कहीं नहीं लगाना है...मैंने कहा... भाई जी मुझे करना क्या है, पहले ये बताओगे या भूमिका ही बांधे जाओगे...सतीश जी को लगा कि मैं कहीं हत्थे से न उखड़ जाऊं, सीधा काम की बात पर आ गए...मुझे हिदायत देते हुए कहा...आज तुम समारोह में सम्मान नहीं लोगे और साथ ही हिंदी ब्लॉगिंग को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ने का ऐलान करोगे...
खुशदीप सहगल, देशनामा

जनाब, जब आपने राज फाश कर ही दिया तो हम क्या कहें ?



जबकि यशवंत सिंह ने क्रिया और प्रतिक्रिया में संतुलन बनाए रखा, अच्छा लगा पढ़कर :

30 को सम्‍मानित होंगे ब्‍लॉगर, तीन किताबों का लोकार्पण भी
यशवंत सिंह, भड़ास 4 मिडिया
यशवंत सिंह, भड़ास 4 मिडिया

यशवंत सिंह, भड़ास 4 मिडिया





अक्सर देखा गया है कि लोगों की फितरत होती है किसी के लिये भी चाहे-अनचाहे जी हजूरी करने की या कहें कि हीही फीफी करते समय बिताने की । यह फितरत कई बार इतना ज्यादा उनके व्यवहार में घुल मिल जाती है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वह कोई ऐसी वैसी हरकत कर रहे हैं जिसे अमूमन जी-हजूरी की संज्ञा दी जाती है। मुसीबत ये कि लोगों की इसी फितरत को पहचान जुगाडु प्रवृत्ति के लोग अपनी सामाजिक पैठ बनाने में उनका इस्तेमाल करना चाहते हैं और बखूबी इस्तेमाल करते भी हैं।
सतीश पंचम, सफ़ेद घर

सतीश पंचम जी,आपकी भाषा शैली निश्चित रूप से आकर्षित करती है, आपको पढ़ना अच्छा   लगता है  मगर शब्द के टकराव में आग्रह कम दुराग्रह ज्यादा दीखता है...... इस अवसर पर एक शेर अर्ज़ है : "चलो अच्छा  हुआ तुमने बहारों को नहीं समझा,नहीं तो इस कदर पतझार से नफ़रत नहीं करता !"



हालांकि कोई भी काम संपन्न करवाना मुश्किल है और उसकी आलोचना करना आसान. ... पर इस निमित कुछ सुंझाव मांगे जा सकते थे..... आर्थिक सरोकार भी देखे जा सकते थे.... यानि जहाँ चाह - वहां राह निकल ही आती है. अपना अलग प्लेटफोर्म होता....... तो ब्लॉगजगत में इसकी भव्यता कुछ और होती.
कौशल किशोर मिश्र, पूरबिया


अब आपसे मैं क्या कहूं मिसिर जी,वैसे आपके विचारों पर दी गयी यह टिपण्णी मुझे ज्यादा प्रासंगिक लग रही है

प्रतिउत्तर : राजीव तनेजा said...
उम्मीद पे दुनिया को कायम रखिये..ऐसा दिन ज़रूर आएगा :-)

और अब उन मित्रों का आभार जिन्होनें कार्यक्रम पर अपनी संतुलित टिपण्णी दी है :


अब तक कल के आयोजन पर इतना कुछ कहा सुना पढा जा चुका है कि कोई गुंजाईश बची नहीं है , लेकिन फ़िर भी एक ब्लॉगर होने के नाते , उस कार्यक्रम मे शिरकत करने के नाते और अब तक उस आयोजन में मुझे दिखी सकारात्मक बातों को ( हां बहुत ही अफ़सोस के साथ लिखना पड रहा है कि हिंदी ब्लॉगिंग में नकारात्मकता को जितनी तेज़ी से लोकप्रियता हासिल हो जाती है उसकी आधी गति से भी सकारात्मकता को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता ) इस पोस्ट के जरिए यहां रख सकूं ।
अजय झा,कुछ भी कभी भी


सतीश जी की यह धमकी सुनकर अविनाश जी डर गए, यहाँ तक कि अपना झोला भी लेकर नहीं आये. फिर क्या था, यह सूचना मिलते ही सतीश सक्सेना ने भी समारोह में आने का फैसला बदल डाला. शायद उन्हें लगा होगा कि अविनाश वाचस्पति ने धमकी से डर कर न्यू मीडिया के बीच जाने का फैसला ना कर लिया हो, उन्हें क्या पता कि अविनाश जी ने तो डर के मारे यह बात रवीन्द्र  प्रभात को भी नहीं बताई थी.

शाहनवाज़ सिद्दीकी. प्रेम रस.कॉम

 

हिन्‍दी भाषा का हो रहा अपमान : निशंक
लोकसत्य हिंदी दैनिक, ०२ मई २०११

समाचार 4 मीडिया

दैनिक भास्कर, ०३ मई





हिंदी भाषा चाहूं और थपेड़े खा रही
हरिभूमि,०२ मई २०११




हां, सोचती हैं उंगलियां : रामदरश मिश्र
स्वाभिमान टाइम्स, ०२ मई २०११






ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम : निशंक 
पंजाब केसरी,०३ मई  












यमुना नगर के ब्लॉगर्स छाये रहे समाचार पत्रों में






मीडिया खबर से :




 
 
 
 
 
 












छत्तीसगढ़ के ब्लोगर्स को समाचार पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया












                   

पत्रिका छत्तीसगढ़ में












दैनिक छत्तीसढ़ में

और  अब:



उद्यमी ठाला नहीं बैठता

My Photoजैसे ही मंच से बोलने वाले वक्ता ने अपना वक्तव्य पूरा किया, मुझे बुलाया गया। मैं ने मंच पर पहुँच कर इतना ही बोला कि "समाज में बोलने और लिखने के कानून हैं। यदि उन को हम तोड़ते हैं तो अपराध होता है, जिस के लिए सजा हो सकती है, दीवानी दायित्व भी आ सकता है। वे सभी कानून ब्लागरी पर भी लागू होते हैं, कोई अलग से कानून नहीं है। इसलिए ब्लागरों को चाहिए कि वे सभी सावधानियाँ जो समाज में उन्हें बरतनी चाहिए ब्लागरी में भी बरतें।"  
दिनेश राय द्विवेदी, अनवरत

दिनेश जी, लोकसंघर्ष अंतरजाल पर मनाये गए कार्यक्रम का प्रायोजक था और हिंदी साहित्य निकेतन मंच पर किये गए कार्यक्रम का प्रायोजक मात्र था, नेता किसी भी दल का हो उसके आ जाने से व्यक्ति या समूह की विचारधारा नहीं बदल जाती ये शायद आप भी भलीभांति जानते हैं .....रही मतभेद की बात तो सुमन जी या खुशदीप जी से मेरे कोई मतभेद नहीं है ....दोनों मेरे अन्तरंग मित्र  हैं .....कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट हेतु  आपका आभार, आपने कार्यक्रम के दौरान मंच से अत्यंत सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये , अच्छा लगा सुनकर 


आइये कुछ और मित्रों की रिपोर्ताज से रूबरू   होते हैं :

इस कार्यक्रम के लिए परिकल्पना और ब्लागोत्सव जैसी कल्पनाओं को मूर्त रूप देकर 'अनेक ब्लॉग नेक हृदय' की बात कहने वाले लखनऊ शहर के ब्लागर रवीन्द्र प्रभात और नुक्कड़ सहित तमाम ब्लॉगों के कर्ता-धर्ता अविनाश वाचस्पति और हिंदी साहित्य निकेतन के मालिक और 'शोध-दिशा' पत्रिका के संपादक डा. गिरिजा शरण अग्रवाल सहित उनकी पूरी टीम को साधुवाद ! आशा की जानी चाहिए कि इस तरह के कार्यक्रम/सम्मलेन भविष्य में भी होते रहेंगें और हिंदी ब्लागिंग को नए आयामों के साथ नई दिशा भी दिखाएंगें !!
आकांक्षा यादव, शब्द शिखर

लुप्त प्रायः हिंदी साहित्य में प्राण संचार करते हुए परिकल्पना समूह के महारथियों ने 30 अप्रैल 2011 को दिगम्बर मार्ग स्थित हिंदी भवन में एक इतिहास रचा . पुरस्कार समारोह का संचालन करती हुई डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की बड़ी सुपुत्री गीतिका गोयल ने एक सम्मोहन बिखेरा अपनी प्रस्तुति का .... रश्मि प्रभा, वटवृक्ष

संजीव तिवारी, आरंभ
गिरीश बिल्लोरे मुकुल,मिसफिट सीधी बात
 
 
 
 
 
तो, यदि आप हिंदी ब्लॉगिंग में हैं, तो इस किताब को बाई, बोरो ऑर स्टील के तर्ज पर कहीं से भी हासिल कर पढ़ना ही चाहिए, और न सिर्फ पढ़ना चाहिए, एक अदद किताब रेफरेंस मटेरियल के तौर पर रखना चाहिए. कौन जाने कब किस संदर्भ सामग्री की जरूरत पड़ जाए!



चलिए कुछ और मित्रों की राय जानते हैं :
 
 
 
 
 
 
 
 इस वृहद् विवेचन हेतु आभार व्यक्त करता हूँ दैनिक जनसंदेश टाइम्स के मुख्य संपादक डा. सुभाष राय जी, फीचर संपादक श्री हरे प्रकाश उपाध्याय और रिपोर्टर सुषमा जी का ....! 


 
 
 
 
 
और भी कुछ मित्रों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पक्ष या विपक्ष में चर्चा अवश्य की होगी,उन सभी को मेरा विनम्र आभार !



और अंत में :
कार्यक्रम विलंब से शुरू होने के कारण पुण्य प्रसून जी को हुई असुविधा के लिए मुझे खेद है !

वैसे इस सन्दर्भ में अविनाश जी की भी टिपण्णी आ चुकी है और अजय झा ने भी विस्तार से लिखा है :

चलते-चलते : एक पत्र



रवीन्द्र भाई ,
ब्लोगरों के हित में आपका प्रयास स्तुत्य है..आपने ब्लोगरों को एक मंच दिया, पहचान दी..अच्छे कार्यो की आलोचना भी होती है.. आप विचलित नहीं हो ...आपने जो किया वह ब्लोगिंग इतिहास में मील का पत्थर है, इसकी अनुगूँज वर्षों तक सुनाई देगी...

भाई, आपके सद्कार्यों को पुन: नमन है ! दैनिक हिन्दुस्तान एवं प्रभात खबर में प्रकाशित खबर संलग्न कर रहा हूँ ..

आपका भाई ,
अरविन्द श्रीवास्तव




काजल जी, आभार ........आपका जबाब नहीं

12 comments:

  1. आपकी यही विनम्रता आपके व्यक्तित्व को बड़ा बनाती है, आपको नमन !

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  2. इतने बड़े आयोजन में कुछ न कुछ कमी रह ही जायेगी. हमें देखना है उद्देश्य...यहाँ उद्देश्यपवित्र है. रविद्र प्रभात का और अविनाश भाई का. किसी न किसी को साथ में तो लेना ही था. उस कारन कुछ अव्यवस्था हुई हो शायद. कुल मिला कर कार्यक्रमसफल रहा. इतिहास तो बन ही गयाहै. भविष्य में इसी तरह के आयोजन और हों, यही है शुभकामना. मैं उपस्थित न हो सका, इसका दुख्ग है. समान तो बहुत-से मिलते रहते हैं, मेरा मन था, ब्लॉगर-म्त्रों से भेंट होगी, लेकिन यह न हो सका. कभी लखनऊ में कार्यक्रम हुआ और बुलाया गया तो देखेंगे. मिलाना-जुलना होता है यही सार्थकता है. बाकी बातों पर ध्यान नहीं देनाचाहिये. इक बार फिर रविन्द्र प्रभात भाई,आपको दिल से साधुवाद की आप के करना-केवल आपके कारण यह कार्यक्रम संभव हो सका.

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  3. यह आपके अथक परिश्रम का ही नतीजा है की हिंदी ब्लॉग्गिंग आज निरंतर प्रगति के और अग्रसर है.... आप जैसे सच्चे, कर्मठ, जुझारू ब्लोगर्स के प्रोत्साहन पाकर ही हम भी कुछ लिखने के हिम्मत कर पाते हैं ....इन्टरनेट के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार में आपके इस अमूल्य योगदान के लिए हम आभारी हैं ...
    सादर

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  4. हम श्री रवीन्द्र प्रभात जी और अविनाश वाचस्पति जी से यह कहना चाहेंगे कि आदमी ग़लतियों से ही सीखता है। किसी की आलोचना और असहयोग के कारण आप अपना मनोबल मत गंवा बैठिएगा। आपने एक आयोजन किया, चाहे उसमें कुछ भूल-चूक हुईं लेकिन आपने बहुत से लोगों को आपस में एक जगह तो किया।
    आप बहरहाल बधाई के पात्र हैं।

    http://commentsgarden.blogspot.com/2011/05/blog-fixing.html

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  5. मैं दुर्भाग्य वश आयोजन पर उपस्थित नहीं थी.परन्तु जितना सुना यही जाना कि यह एक भव्य और सफल आयोजन था.और ब्लॉग जगत का प्रथम व सराहनीय प्रयास था.
    हाँ हो सकता है कुछ कमोयाँ रह गई हों जो कि इतने बड़े आयोजन में स्वाभाविक ही हैं तो हम गलतियों से ही सीखते हैं.मुझे पूरी उम्मीद है अगली बार इससे भी भव्य आयोजन होगा.
    समस्त शुभकामनायें आयोजन कर्ताओं को.

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  6. वाह समग्र संकलित प्रस्तुति !

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  7. पहले भी सम्मेलन से जुड़े कई लेख पढ़ चुके हैं...सहज नम्र भाव से लिखी गई आपकी पोस्ट प्रभावित करती है...सम्मेलन के बारे में इतना ही कहूँगी कि अच्छा सुन लिया और बुरे को नज़रअन्दाज़ कर दिया...

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  8. कमी निकलने वाले खुदा को नहीं छोड़ते ... आप और हम तो खुदा के बन्दे है ... अपना काम करते रहिये ... बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

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  9. रंविन्द्र जी, परिकल्पना दवारा आयोजित कार्यक्रम ब्लॉग जगत के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. उपस्थित सभी ब्लोगर आपस में मिले और संवाद हुआ. इससे बड़ी उपलब्धि नहीं सकती है. परिकल्पना ब्लोगोत्सव एवं हिंदी साहित्य निकेतन को हार्दिक शुभकामनायें.

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  10. रविन्द्र जी,

    जहाँ तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री निशंक द्वारा ब्लोगर बंधुओं को सम्मान दिए जाने की बात थी, तब मुझे स्वयं यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ था... हालाँकि पता था कि वह मुख्य अतिथि थे, लेकिन हमने तो यही सोचा था, कि वह केवल कुछ देर के लिए आयेंगे और ब्लोगर बंधुओं से दो बातें कहकर चले जाएँगे. लेकिन उन्होंने पुरे 2-3 घंटे निकाले इसके लिए उनका बहुत-बहत आभार. जहाँ तक बात दुसरे सत्र के मुख्य अतिथि श्री पुन्य प्रसून वाजपेयी की है तो मेरा यह मानना है कि उन्हें पूरा सम्मान मिलना चाहिए था. वह एक मुख्य अतिथि होते हुए भी बाहर 15-20 मिनट बाहर खड़े रहे और इसपर उन्होंने केवल इतना कहा कि बड़े आयोजन में समय का ठीक तरह से प्रबंधन किया जाना चाहिए. हमने उन्हें 6.30 का समय दिया इसलिए किसी न किसी को यह कार्यभार दिया जाना चाहिए था कि उनके आने के समय से पहले ही उन्हें स्थिति से अवगत कराया जाए और उनके आने के समय पर कोई न कोई मुख्य द्वार पर मौजूद हो. इस मामले में हमसे कमी हुई और यह पढ़कर अच्छा लगा कि आपने इस बात को माना भी. बेशक कमियों को स्वीकार करने की जगह दुसरे की कमी बताना या मज़ाक उड़ाना कोई गंभीर कदम नहीं माना जा सकता है. बड़प्पन तो इसी को कहते हैं कि अपनी कमियों को स्वीकार किया जाए और आगे से ना दोहराए जाने का प्रण किया जाए.

    बात अगर आयोजन की सफलता के बारे में की जाए, तो यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह आयोजन कई मायनो में सफल था, बल्कि उम्मीद से ज्यादा सफल था... एक नई शुरुआत हुई, भव्य आयोजन हुआ, पहली ही बार मुख्यमंत्री स्तर के व्यक्ति ने सम्मान बाटें और सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह रहा कि इस बहाने कितने ही ऐसे ब्लोगर बंधुओं से रु-बरु होने का मौका मिला जिनका आजतक केवल ब्लॉग ही पढ़ पाएं थे या फिर केवल फ़ोन पर ही बातचीत हुई थी....

    अजय भाई की पोस्ट पर दी गयी अपनी टिपण्णी यहाँ फिर से दोहराना चाहूँगा...

    ऐसा तो कोई आयोजन हो ही नहीं सकता है जिसमें कमियां ना हो. इसलिए बुराइयाँ ढूँढने की जगह अच्छाइयों की बात होनी चाहिए... गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ना ही सफलता का मन्त्र कहलाता है.

    यहाँ एक बात और कहना चाहूँगा... ब्लॉग जगत में हर किसी को अपने हिसाब से सोचने और लिखने का हक है और यही इसकी ताकत है. इसलिए हर किसी को अपने अनुभव लिखने का भी हक है और मुझे तो उनको पढ़कर भी कोई परेशानी नहीं हुई. रही बात अविनाश जी और रविन्द्र प्रभात जी की मेहनत को तो कोई माने ना माने, वह तो उन्होंने ज़बरदस्त की, मानता हूँ कि थोड़ी कमियां रह गई, लेकिन वह कहाँ नहीं होती? उम्मीद है आगे से उन्हें भी ठीक कर लिया जाएगा.

    लेकिन कम से कम इस बहाने एक बेहतरीन शुरुआत तो हुई...

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  11. शाहनवाज़ भाई,
    मैंने जिम्मेदारी के अंतर्गत खेद व्यक्त कर लिया है, इसलिए अब किसी भी प्रकार की कैफियत की कोई आवश्यकता नहीं है, फिर भी जब आपने पूछ ही लिया तो आपसे केवल दो बातें ही शेयर करनी है , पहली ये कि बिना किसी संज्ञान के मुख्य अतिथि अथवा विशिष्ट अतिथि के बारे में यह निष्कर्ष निकाल लेना कि वे पांच-छ: मिनट के बाद चले जायेंगे , ये बात मेरी समझ से परे है क्योंकि पहला सत्र दो घंटे का था और निशंक जी पांच मिनट में कैसे चले जायेंगे ?
    दूसरी बात यह है कि आप और खुशदीप जी दोनों लगातार मेरे संपर्क में थे, फिर बिना मेरे संज्ञान में दिए पुण्य प्रसून जी को देर से आने के लिए क्यों कहा गया और जब उन्हें सन्देश भेज ही दिया गया तो उनके आने के नियत समय की जानकारी आयोजकों को क्यों नहीं दी गयी ?
    खैर बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई ....इन बातों को लेकर ज्यादा माथापच्ची उचित नहीं है, मैंने पुण्य जी को आमंत्रित किया था और इसमें खुशदीप भाई की भूमिका थी, मैं उनकी पीड़ा समझ रहा हूँ और उनकी पीड़ा से व्यथित भी हूँ !

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  12. परिकल्पना से जुड़े सभी लोगों का मेरे ब्लॉग www.pradip13m.blogspot.com में सादर आमंत्रण है । कविता के क्षेत्र में मैं आपलोगो की तरह बहुत मँजा हुआ नहीं हूँ । पर आप सबसे आग्रह है कि मेरी रचनाओं को पढ़कर शुभकामनाएँ, प्रोत्साहन और सही मार्गदर्शन करें ।

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