चौबे जी की चौपाल
 
सब पैसा-पैसा करते हैं, पर रब से क्यों नहीं डरते हैं !
 
आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में, यह वही मडई हैं जिसमें बड़हन-बड़हन नेता चुनाव जीतने  से पहिले दांत निपोर के दंडवत करते हैं अऊर जीतने के बाद आने की हिम्मत नहीं करते । सबदिन -बारहोंमास चलती रहती है इस मडई में बतकही की धार, कभी-कभार चुहुल भी होती है तो कभी-कभार संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा भी । अछैबर,सजिबना अऊर न जाने केतना लोग ई मडई के आशीर्वाद से बड़हन-बड़हन नेता बन गए,सपरेटा से प्रणेता बन गए । रामभरोसे आंख गड़ाके,हाँथ से काम भी करते अऊर मुंह से बतियाते भी रहते हैं । जवन ज़माना में तारबेतार की सुविधा नहीं थी ऊ समय में भी राम भरोसे मडई में बईठे-बईठे पूरी दुनिया घूमते थे अऊर अपनी बतकही की धार से सबको  घुमाते थे । कहते हैं राम भरोसे कि "अब न ऊ समय रहा,न देवता न पित्तर, बदल गया  हैं ससुरा सबका चरितर । अब सबको चाहिए पैसा,सब आजकल पैसा के लिए छटपिटाके छुछमाछर हैं, चाहे कलमाडी हो चाहे राजा, चाहे मधु कोड़ा हो चाहे कनिमोझी सबको चाहिए पैसा । सब पैसा-पैसा करते हैं, पर रब से क्यों नहीं डरते हैं ?"
 
का करोगे राम भरोसे, राजनीति मथुरा  का पेंडा है, आगरा का पेठा, लखनऊ की रबडी है, मनेर का खाजा  । राजनीति है हीं ससुरी ऐसी मिठाई कि जो चख लेता है  ऊ ससुरा चोर हो जाता है ।  अऊर त अऊर राजनीति में चोरी-चमारी करने से इज्जत बढ़ती है न कि घटती है  । बोले चौबे जी
 
इतना सुनते हीं बटेसर ने कहा कि " महाराज ! ई बताईये कि अंकुरहा होई गये जौ पूरा देश चरत हैं तौ का उनका न चराई का चाहीं ? देखी-देखा लगे रोग -मतलब भर का करै भोग ।  आखिर नेता भी त मनईन मा गिना जात है कवनो देवता तौ हउवैं ना  ।  टुटपुंजिहा नेता सफारी से चलै अऊर मंत्री जी साईकल से, ई कईसे हो सकत है? सबको अपना-अपना रुतबा भी तो बचाना है महाराज  । रुतबा नाही बचा तो हनक अऊर भौकाल कैसे दिखैहें  ? जहां तक जेल जाने का प्रश्न है नेतवन खातिर जेल तीर्थाटन है महाराज, वहां जाने से क्या डरना  । कृष्ण की जन्मभूमि है, गांधी की सृजन भूमि है, वहां बिना मथ्था टेके केहू असली नेता बन सकता है का ?"
 
सही कह रहे हो बटेसर भईया, पहिले त लूटै में मजा आवत है, फिर स्विस बैंक मा डाल-डाल के पचाई लेत हैं....अभाव मा हवाला से मंगाई लेत हैं ...... मगर लूटै का मजा जब सजा मा बदलत हैं तौ पता चालत हैं फाइनल रिपोर्ट का मतलब  ।  तौ जांच कै नाम पर दुबराये में देर नाही लागत, फिर तो कनिमोझी हो या राजा......सबका बजता है बारी-बारी से बैंड बाजा , अऊर जेल मा करबट बदल -बदल के जिए का मतलब का होत है समझ मा आई जात है  ।  आशिक  मुहब्बत में करबटें  बदलते हैं,देश की भूखी जनता अभाव मा करबटें बदलती है अऊर हमरे नेता जी पैसा के ओवर डोज हो जाने से रात-रात भर करबटें बदलते रहते हैं  ।  सबका अपना-अपना गम है बटेसर भईया ........बोला गुलटेनवा  ।
 
एक दम्म सही बात कहै हो बरखुरदार, सबके जड़ में ई मुआ पैसा है, कहीं पैसे के अभाव मा बलचनवा की जबान बिटिया बिन व्याहे मर जात है तौ कहीं पकडे जाने के डर से भ्रष्ट अधिकारी नोटों के बण्डल को बेहयाई के साथ जलाई देत हैं  । आजकल नेता-अफसर के बात छोड़ द  दफ्तरन  के चपरासी भी करोड़ंन  मा खेलै लागे,सटहे-सटहे परधान बुलेरो खरीद लिहिन अरे बुलेरो तौ जाय दीयौ हवाई जहाज खरीदे के औकात है परधानन में.....बहुत सोर्स है पैसा का बस कमाए के हुनर चाहि बाकिर अपने-आप बरसत हैं पैसा .....रमजानी मियाँ ने अपनी दाढ़ी सहलाते हुए कहा  ।
 
देखो रमजानी मियाँ हम्म तोहरे बात से इत्तेफाक नाही रख सकत, पैसे के लिए ईमान बेचना कोई अच्छी बात है का ? राशन की दुकान में लाइन लगा के जे खडा रहत  है,वोहू के जिए खातिर  पैसा चाही ..... रेलवे के पुल के नीचे जे सोवत  है, वोहू के जिए खातिर  पैसा चाही....शक्कर में पानी डालकर जे वजनदार बनाकर बचत है, वोहू के चाही पैसा......मनुष्य को ब्रह्म की तरफ ले  जाने वाले बाबाओं के भी चाही पैसा और जे ठाठ से रहत  हैं वोहू के चाहीं पैसा, यानी पैसा सभी को चाहिए रमजानी मियाँ  मगर बईमानी का नहीं ईमानदारी का.......तभी यह देश फिर से सोनचिरई कहलायेगा,का समझे ? इसलिए हमने फैसला लिया है कि हम्म पैसाखोरों के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे, बिना भय-भ्रम-भ्रान्ति के बोलेंगे अऊर देश के एक सच्चे नागरिक का कर्त्तव्य निभायेंगे फिर कोई नहीं करेगा पईसा-पईसा....यानी पईसा-पईसा कहने से पहिले एक बार रब से जरूर डरेगा, ई हमारा वादा है रमजानी मियाँ ! .....गुस्से में आग-बबूला होते हुए बोले चौबे जी  ।
 
चौबे जी की इस लड़ाई में साथ देने की सबने सहमति जताई और आगे की योजनाओं पर चिंतन-मनन के लिए चौबे जी ने चौपाल अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया  ।
  • रवीन्द्र प्रभात
(दैनिक जनसंदेश टाइम्स /१२.०६.२०११ )

6 comments:

  1. आज कल तो साधू संत पैसे की खोज मे रहते हैं। बहुत अच्छा व्यंग। धन्यवाद।

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  2. जो रब से डरते हैं, वो पैसा-पैसा नहीं करते:) जो पैसा पैसा करते हैं उन्हें स्विज़ बैंक से निकालने के पहले ही रब उन्हें उठा लेता है:):)

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  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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