एक वक़्त था अतीत का, जब मैं वर्तमान समय हौज़ ख़ास K-25 में था ... हूँ तो आज भी , पर वह इमरोज़ अपनी अमृता के संग वहाँ नहीं . नहीं आता वह सुबह शाम छत पर ....... पर यादों के हस्ताक्षर आज भी हैं , उसी तरह - जैसे अमृता इमरोज़ के साथ हैं . घर बदल जाए , कमरे बदल जाएँ , पता बदल जाए .... पहचान नहीं बदलती , प्यार नहीं बदलता .... एक अनोखी मुस्कान जो इमरोज़ के चेहरे पर होती है , वह कभी नहीं बदलेगी , वह आवाज़ जो खुद में एक नज़्म होती है , वह आस पास रहेगी हर चाहनेवालों की . एक अनोखा रंग प्यार का अमृता को हमेशा खुद पे इतराने देगा और एक ख्वाहिश इमरोज़ की दुआ में उठे हाथों में हमेशा होगी .
'प्यार' अगर सच्चा हो तो वाकई - न भूख लगती है, न धूप, नहीं चुभते नुकीले पत्थर पैरों में ... नहीं आता कोई अहम् बीच में , नहीं लगता डर दुनिया से - झूठ की गुंजाइश नहीं होती , समय का अभाव नहीं होता . लोगों ने आपस में कहा - 'इस खूबसूरत शख्स ने अपनी उम्र गँवा दी' पर इमरोज़ ने इतनी शिद्दत से चाहा कि अमृता की उम्र से आगे निकल गए .
इमरोज़ ने प्यार के अनुभवों में रब को पाया , तभी तो कहा -
'सोये हुए बन्दे सोये हुए रब को जगा नहीं सकते
पर कभी कभी कोई एक खुद जागकर
रब को भी जगा लेता है ...
पूछते हैं सब मन के गूंजते खंहर से - ' क्या रिश्ता था इमरोज़ का !' प्रतिध्वनि बन उनके सवाल उन्हें शर्मिंदा कर जाते हैं , इमरोज़ कहते हैं -
'रिश्ता बनना और बनाना एक कला है
कानून मौका देता है, रिश्ता नहीं ..'
क़ानूनी मुहर से परे -
'बेनाम रिश्ते का एक धागा
मेरे हाथ में भी आ गया और उसके हाथ में भी
..........
ये धागा अपनेआप में
ना कमज़ोर होता है और ना मजबूत
हमारी कमजोरी से कमज़ोर होता है
और हमारी मजबूती से मजबूत ....'

सच तो है बिना किसी नाम के , बिना किसी प्राप्य के इमरोज़ ने इमरोज़ को गरिमामय बना दिया , पीठ पीछे होनेवाले प्रलाप भी उनके आगे मौन हो जाते हैं . कितनी सरलता से वे कहते हैं -
'जो अच्छा लगता है
उसे अपना आप तक दे देना भी
अच्छा लगता है ....'
जब हिसाब किताब हो ही जाए तो कैसा प्यार ! कुछ देते समय हाथ या मन कांप जाए तो कैसा प्यार !
प्यार हो तो मन इमरोज़ सा कहता है-
'मेरे पास कोई घड़ा भी न था
न कच्चा न पक्का
ना ही कोई पंख ...
पर अपनी परवाज़ के साथ
पानी का दरिया
और अपनी नींद का दरिया
मैंने पार कर लिया
सामने सूरज उग रहा है ....

इसी उगते सूरज के आगे अपने नज़्मों की पाण्डुलिपि , अपनी ज़िन्दगी के अनकहे पल इमरोज़ मुझे दे गया और खुद हौज़ ख़ास से ग्रेटर कैलाश .... मैं वहाँ भी हूँ . रश्मि ने पूछा था एक दिन कबूतरों के बारे में .... कमाल हैं इमरोज़ , दंग हूँ मैं ... कहा हंसकर, 'यदि मन चाह ले तो कबूतर कहीं भी आ जाते हैं !' इस चाह में कितनी आँखें हैं न .
अपना पता रश्मि को इमरोज़ ने यूँ दिया -

उसके साथ मिलकर
ईंट ईंट कमा कर
ईंट ईंट लगा कर
एक मकान बनाया था
और सांस सांस जीकर
एक साथ भी ...

साथ और साथ का एहसास भी
एक मकान होता है
ये मुझे उसके जाने के बाद
पता लगा है...

अब सामान तो मेरा
कल के मकान में है
और मैंने शिफ्ट कर लिया है
साथ के मकान में ...

मेरा नया पता
मकान नम्बर गली नम्बर
इलाका और शहर मैं ही हूँ
अपने आप का पता
और कोई नहीं हो सकता
अपना आप ही होता है .... इमरोज़




आइये अब रंजना भाटिया से कुछ सुनें अमृता इमरोज़ के बारे में -

अमृता इमरोज़ के प्यार का ताजमहल उनका ख़ूबसूरत घर.......(हौज़ ख़ास ) - (अब ग्रेटर कैलाश )

उनका घर बिल्कुल ही साधारण ..हरयाली से सज़ा हुआ और अमृता इमरोज़ से जुड़े उनके वजूद का अनोखा संगम लगा ....एक ख़ुश्बू सी वहाँ थी या मेरे ज़ेहन में जिस को मैने बचपन से पढ़ा था आज मैं उसके घर पर थी ....हाय ओ रब्बा यह सच था या सपना .....उनके घर की जब डोर बेल्ल बजाई तो दिल एक अजब से अंदाज़ से धड़क रहा था ...उनको देखने की जहाँ उत्सुकता थी वहाँ दिमाग़ में अमृता की लिखी कई नज्में घूम रही थीं ...दरवाज़ा खुला ..समाने अमृता के बड़े बेटे थे कहा की इमरोज़ अभी बाज़ार तक गये हैं आप लोग अंदर आ जाओ . इमरोज़.अभी आ जाएँगे ... ...ड्राइंग रूम में अंदर आते ही ...कई छोटी छोटी पेंटिंग्स थी एक बड़ा सा ड्राइंग रूम ..ठीक मेरे बाए हाथ की तरफ़ एक दिलीप कुमार की हाथ से बनाई पेंटिंग लगी थी ...उनके ख़ामोश लब और बोलती आँखे जैसे अपनी ही कोई बात कर रहे थे हमसे ...
थोड़ी देर हम उन्ही पेटिंग्स में गुम थे की पता चला की इमरोज़ आ गये हैं ...और उनसे मिलने फर्स्ट फ्लोर पर जाना होगा ....रास्ते में सीढ़ियों पर पेंटिग्स ..एक सुंदर सी छोटी सी मटकी पेंट की हुई और अंदर दरवाज़े पर अमृता की किसी पंजाबी नज़्म की कुछ पंक्तियाँ लाल रंग से लिखी हुई थी बहुत ही साधारण सा घर जहाँ अंदर आते ही दो महान हस्तियाँ अपनी अपनी तरह से अपने होने का एहसास करवा रही थी...सामने की दीवार पर इमरोज़ के रंगो में सजी अमृता की पंटिंग्स और साथ में लिखी हुई उनकी नज्में .एक रोमांच सा दिल में पैदा कर रहे थे ....एक छोटी सी मेज़ जहाँ अब अक्सर इमरोज़ कविता या नज़्म लिखते हैं ...उसके ठीक पीछे कुछ मुस्कराते से पौधे ... सामने की तरफ़ रसोईघर ....जहाँ कभी अमृता अपना खाना ख़ुद बनाती थी और इमरोज़ साथ रह कर वहीँ पर उनकी मदद करते थे..उनके लिए चाय बना देते थे ....यहाँ सब सामान शीशे का यानी पारदर्शी जार में है कभी कोई समान ख़त्म होने पर ..इमरोज़ उस ख्त्म हुए समान को फिर से ला कर भर दे ....और अमृता को कोई किसी चीज की कमी या कोई परेशानी ना हो ....यही बताते हुए इमरोज़ ने एक बहुत ही सुंदर बात कही कि काश इंसान भी पारदर्शी शीशी की तरह होते ..जिस के अंदर झाँक के हम देख सकते ....कितनी सजहता से इमरोज़ कितनी गहरी बात कह गये !

एक असाधारण व्यक्तिव इमरोज़ ..

वापस वही रसोई घर के सामने रखी मेज़ पर आ कर और उस इंसान को देख रही थी जिसका ज़िक्र अमृता की नज़मो में होता है ...एक सपना वो अक्सर देखा करती थी कि एक लंबा सा आदमी सफ़ेद कुर्ते पायजामे में ..कैनवस पर रंगो से कुछ पेंट कर रहा है ..यह सपना वह कई साल देखती रही ..इमरोज़ ने बताया कि मुझसे मिलने के बाद वह सपना आना काम हो गया ...सच में इतना प्यार कोई करे और उसके जाने के बाद भी अपनी बातों से अपने एहसासों से उस औरत को ज़िंदा रखे ....किसी औरत के लिए इस से ज़्यादा ख़ुशनसीबी क्या होगी ......हमारे लिए वो अपने हाथो से कोक ले के आए ..बहुत शर्म सी महसूस हुई कि इतनी बड़े शख्स पर कोई भी अहंकार नहीं कितना साधारण..दिल को छू गया उनका यह प्यारा सा मुस्कराना .और बहुत प्यार से बातें करना मैने पूछा कि आप को अमृता की याद नही आती ...नहीं वो मेरे साथ ही है उसकी याद कैसे आएगी ..इसके बाद जितनी भी बात हुई उन्होने उसके लिए एक बार भी थी लफ़ज़ का इस्तेमाल नहीं किया ..मैंने पूछा भी था उनसे कि आपने हर बात में है कहा अमृता को ..थी नहीं ..

प्यार का एक नाम इमरोज़ ....

मैंने कहा मैं अमृता जी से मिलना चाहती थी ..तो बोले कि मिली क्यूँ नही ..वह सबसे मिलती थी यह दरवाज़ा हमेशा खुला ही रहता था ..कोई भी उस से आ कर मिल सकता था ..तुमने बहुत देर कर दी आने में .....सच में बहुत अफ़सोस हुआ ...कि काश उनके जीते जी उनसे मिलने आ पाती ... सामने जो मेरे शख्स था वो आज भी पूरी तरह से अमृता के प्यार में डूबा हुआ ,,वहाँ की हवा में रंग था नज़्म थी और प्यार ही प्यार था ....कोई किसी को इतना प्यार कैसे कर सकता है ....पर एक सच सामने था ....एक अत्यंत साधारण सा आदमी ...भूरे रंग के कुर्ते में सफ़ेद पाजामे में ..आँखो में चमक ...और चहरे पर एक नूर ..शायद अमृता के प्यार का...सब एक सम्मोहन ..सा जादू सा बिखेर रहे थे .मैने जब उनसे पूछा कि क्या मैं अमृता का रूम देख सकती हूँ ..जहाँ वह लिखा करती थी ..तो उन्होने मुझे पूरा घर दिखा दिया ..यह पहले ड्राइंग रूम हुआ करता था ..अब वहाँ इमरोज़ की पंटिंग्स और अमृता की नज़्मों का संगम बिखरा हुआ था. एक शीशे की मेज़- जिस पर एक टहनी थी जिसकी परछाई अपना ही जादू बिखेर रही थी इस से बेहतर ..कोई ड्राइंग रूम और क्या हो सकता है ....अमृता का कमरा वैसे ही है जैसा उनके होते हुए था .और बिस्तर पर पड़ी सलवटे जैसे कह रही हो कि अभी यही हैं अमृता ..बस उठ कर शायद रसोईघर तक गयी हो ..फिर से वापस आ के कोई नज़्म लिखेगी ..... इमरोज़ का कमरा रंगो में घिरा था ...और हर क़मरे की आईने में कोई ना कोई नज़्म पंजाबी में लाल रंग से लिखी हुई थी ...एक और कमरे में बड़े बड़े बुक शेल्फ़ .जिस में कई किताबे ..सजी थी ...अमृता की और कई अन्य देश विदेश के लेखको की ....वह सब कुछ जो देखा वो समेट लिया अपने दिल में और वहाँ फैली हवा में उन तमाम चीज़ो के वजूद को महसूस किया ..जो साथ साथ अपना एहसास करवा रहे थे ...

.प्यार के लिए लफ़्ज़ो की ज़रूरत नहीं ...

उन्होंने बताया कि चालीस साल में कभी भी अमृता और मैंने एक दूसरे को I LOVE U नहीं कहा ..क्यूंकि कभी हमें इस लफ्ज़ की ज़रूरत ही नही पड़ी ..वैसे भी प्यार तो महसूस करने की चीज़ है उसको लफ़्ज़ो में ढाला भी कैसे जा सकता है ......बस हम दोनो ने एक दूसरे की ज़रूरत को समझा ....वो रात को 2 बजे उठ कर लिखती थी उस वक़्त उस को चाय चाहिए होती थी ...हमारे कमरे अलग अलग थे क्यूँकि उसको रात को लिखने की आदत थी और मुझे अपने तरीक़े से पेंटिंग करनी होती थी .हमने कभी एक दूसरे के काम में डिस्टर्ब नहीं किया ...बस उठता था उसकी चाय बना के चुपचाप उसके पास रख आता था ..वह मेरी तरफ़ देखती भी नहीं पर उसको एहसास है कि मैं चाय रख गया हूँ .....सच कितना प्यारा सा रिश्ता है दोनों के बीच ....उसको सिगरेट की आदत है मैं नहीं पीता पर उसको ख़ुद ला के देता ..मैने पूछा कि क्या आपने कभी उनको बदलने की कोशिश नहीं की ....उन्होंने कहा - नहीं , वो ख़ुद जानती थी कि इसको पीने में क्या बुराई है तो मैं उसको क्या समझा सकता हूँ बहुत अच्छा लगा .यही तो प्रेम की प्रकाष्ठा है ..इस से उपर प्रेम और हो भी क्या सकता है ...एक एक लफ्ज़ में प्यार था उनका अमृता के लिए

अमृता इमरोज़ का मिलना ......

मैंने पूछा कि आप मिले कैसे थे ..अमृता को अपनी किताब के लिए कवर पेज बनवाना था ...और इमरोज़ से उसी सिलसिले में मुलाक़ात हुई .....फिर कब यह ख़ूबसूरत रिश्ते में ढल गयी .पता ही नहीं चला ...अमृता इमरोज़ से 7 साल बढ़ी थी ..तब उस वक़्त बिना किसी समाज की परवाह किए बिना ..उन्होंने साथ रहना शुरू किया ...इमरोज़ ने बताया कि तब कई लोगों ने कहा कि यह तो बूढ़ी हो जाएगी ..तुम अभी जवान हो या अमृता को भी बहुत कुछ कहा गया ..पर कुछ नहीं सुना ..मैने उस वक़्त जब वो 40 साल की भी नही थी उसकी पेंटिंग बनाई की 80 साल की हो के वो कैसी लगेगी .उसके बाल सफ़ेद किए ..चेहरे पर झुरियाँ बनाई ..और जब उसके 80 साल के होने पर मैने उसको उसकी पंटिंग से मिलाया तो वो उस पैंटिंग से ज्यादा ख़ूबसूरत थी .....भला नक़ली रंग असली सुंदरता से कैसे मुक़ाबला कर पाते ...यह प्यार कितना प्यारा था जो करे वही समझे

कुछ यादें कुछ बातें.....

कुछ बातें आज की राजनीति पर हुई .कुछ आज कल के बच्चो जो बुढ़ापा आते ही अपने माँ बाप को ओल्ड एज होम छोड़ आते हैं ...पर उनकी हर बात का अंत सिर्फ़ अमृता पर हुआ ...उनकी लिखी कविताओ में उन्होंने कहा कि कोई दुख का साया या कुछ खोने का डर नहीं दिखेगा ...क्यूंकि मेरे पास तो खोने के लिए कुछ है ही नहीं जो ज़्यादातर कविता या नज़्मों में होता है क्यूँकि मेरा जो भी कुछ है वो मेरे पास ही दिखता है ...सच ही तो कहा उन्होंने अमृता जी वहाँ हर रंग में हर भाव में इमरोज़ के रंगो में ढली हुई थी उन्हीं के लफ़्ज़ो में

लोग कह रहे हैं उसके जाने के बाद
तू उदास और अकेला रह गया होगा

मुझे कभी वक़्त ही नहीं मिला
ना उदास होने का ना अकेले होने का ..

. वह अब भी मिलती है सुबह बन कर शाम बन कर
और अक्सर नज्में बन कर
हम कितनी देर एक दूजे को देखते रहे हैं
और मिलकर अपनी अपनी नज्में ज़िंदगी को सुनाते रहे हैं[इमरोज़]

कभी नही भूलेंगे मुझे यह ख़ूबसूरत पल ..

.यह छोटी सी मुलाक़ात मेरी ज़िंदगी के सबसे अनमोल यादगार पलो में से एक है ...उनके कहे अनुसार जल्दी ही उनसे मिलूंगी ..क्यूँकि उनके कहे लफ्ज़ तो अभी मेरे साथ हैं की जैसे अमृता को मिलने में देर कर दी .,.मुझे दुबारा मिलने में देर मत करना ..क्यूँकि मैं भी बूढ़ा हो चुका हूँ ..क्या पता कब चल दूं ... नही इमरोज़ जी आप अभी जीयें और स्वस्थ रहें यही मेरी दिल से दुआ है .....

रंजना [रंजू]

=====================================================================
अमृता-इमरोज के प्रणय संवंधों का विवेचन करती रंजना रंजू भाटिया के इस सृजन के बाद आईये चलते हैं उत्सव के प्रथम  चरण में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की ओर :


try-2

जा, उड़ जा रे पंछी (2)



……..गतांक से आगे (एक माँ का अपनी दूर रहनेवाली बिटिया से किया मूक संभाषण) मेरी लाडली, तुझे पता...
intalectual-1111

बैठे-बिठाए हो जाना बुद्धिजीवी



व्यंग्य विचार का भुर्ता बनाए सो बुद्धिजीवी। जो विचार से निकले ज्ञान को सामने वाले पर दे मारे।...
manmohan_singh_cartoon

मजबूरी का नाम मनमोहन सिंह



चौबे जी की चौपाल मंत्रिमंडल विस्तार में उत्तरप्रदेश की कम भागीदारी सुनि के रामभरोसे एकदम से...
mere marane pe jashn mat roko     shabdswarrang.blogspot.com

निसार भाई नहीं रहे … … … !


स्मृति शेष 28 जून 2011 को सुबह 10-11 बजे मोबाइल देखा तो एक sms आया हुआ था , जो लघुकथाकार भाई नदीम अहमद ‘नदीम’...
Nisaar Ahmad Bains ANJAAN Bikaneri #

निसार अहमद बैंस ‘अनजान’ बीकानेरी की चार रचनाएं



स्मृति शेष १ आज उनको सलाम कर आए ज़िंदगी को तमाम कर आए चंद ख़ुशियां जो पास थीं अपने आज वो उनके नाम...

कहीं जाईयेगा मत, हम उपस्थित होंगे एक अल्प विराम के बाद 

12 comments:

  1. इस बेहतरीन प्रस्‍तु‍ति के लिये ...परिकल्‍पना को बहुत-बहुत बधाई के साथ शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढि़या विवेचन किया है रंजना जी ने अमृता-इमरोज के बारे में। पढ़कर अच्‍छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. रंजना जी के माध्यम से इमरोज़ ज़ी से एक बार फिर मिलना बेहद सुखद लगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढि़या विवेचन,पढ़कर अच्‍छा लगा !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर और चिंतन से भरपूर पोस्ट , बधाईयाँ !

    जवाब देंहटाएं
  6. रंजना जी,
    आपका बहुत - बहुत आभार की आपके ज़रिये हम इमरोज जी से मिल सके, उनसे जुडी तमाम यादें ताज़ा हुईं...उनकी खैरियत भी मालूम हुई...ईश्वर उन्हें लम्बी उम्र और अच्छी सेहत दे, इसी शुभकामना के साथ...

    जवाब देंहटाएं
  7. साथ और साथ का एहसास भी
    एक मकान होता है
    ये मुझे उसके जाने के बाद
    पता लगा है...

    इमरोज जी के बारे में पढ़ना, जानना बहुत अच्छा लगा...
    उन्हें सादर नमस्कार...
    परिकल्पना का सादर आभार....

    जवाब देंहटाएं
  8. Imroz ji ke beete lamhon ko yaad karte hue unhen ham tak prerak roop mein prastut karne ke liye bahut bahut aabhar!

    जवाब देंहटाएं
  9. रंजना जी बहुत अच्छा लगा आपके द्वारा इमरोज़ जी से मिलना ..आभार आपका .

    जवाब देंहटाएं
  10. ्रंजना-- रश्मि--- इमरोज़ ---- बहुत शानदार प्रस्तुति रही ये। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  11. रश्मिजी और रंजना की क़लम से जन्मे भाव हमेशा ही मन मोह लेते हैं...

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top