(फोटो गूगल से साभार )
वो स्त्री ! अरे हाँ ! वही जो आज के समय में पुरुषों के कंधें से कन्धा मिला कर चलने वाली ! अरे ! हाँ वही! जो आज किसी भी मायने में पुरुषों से काम नही ! अब कोई ज्ञान-विज्ञान या यूँ कहूँ कुछ भी अछूता नही रहा जहाँ तक स्त्री का वर्चस्व ना हो ! परन्तु हमारा समाज , हमारे संस्कार हमारे रीति-रिवाज उन्हें बार बार आभास करते है कि वह एक स्त्री है ! मतलब हमारी सीमाएं ! वो कंधें से कन्धा तो मिलाकर चलती तो है पर यहाँ भी उनकी सीमाएं ! जिनका उल्लंघन करे तो वह असभ्य , लज्जाहीन और ना जाने क्या क्या ! वो ज्यादा बोले तो चंचल ! चुप रहकर सब सहे तो अबला बेचारी वह नारी ! अलग अलग समाज में अलग अलग नज़रिए से देखी जाने वाली या यूँ कहूँ कि उनके लिए कोई वस्तु ! कभी नारी बेचारी तो कभी वो अबला ! कभी मोहनी तो कभी कपिला ! कभी सावित्री तो कभी सीता ! कभी झाँसी कि रानी तो कभी दुर्गा भवानी ! अब किया क्या जाये जैसी नीयत वैसी सोच ! इसलिए जो जिस नज़रिए से देखता है उसमे उसका वही रूप नज़र आने लगता है !


वो एक बेटी है जो अपने ही माँ-बाप का अपना नही पराया धन, उनकी इज्ज़त उनका सम्मान ! बचपन से ही ये नसीहत दे दी जाती है , कि उन्हें  एक दायरे में ही रहना है ! कुछ यूँ कहते है अक्सर हर माँ-बाप अपनी बेटिओं से !
तू बेटी मेरे आँगन की तू एक पराया धन है, कल होके विदा जाना किसी और के घर है ! 
अक्सर ये बातें चुभती है पर करे क्या आज समाज बेटा-बेटी में फर्क नही करता तो क्यों बचपन से जिस घर पर पली वो एक पल में ही पराया हो जाता है ! क्यूँ समाज में ऐसी रीति बेटों के लिए नही बनायीं !

वो एक बहू है जिसको उसके सांस ससुर ने उसके ही माँ-बाप पर एहसान करके अपने बेटे के मोल से लाये है ! फिर चाहे वो कितनी ही मूल्यवान हो ! बार बार उनके माँ-बाप पर बेटी पैदा करने का मोल लिया जाता है ! परन्तु जो मोल उनके माँ-बाप द्वारा लगाया गया उसका कोई भी मोल नही ! डर है कहीं यह मोल उनकी चिता का कारण ना बन जाये ! पर हमारा समाज तब इसे परंपरा का रूप कह देती है ! इसलिए परम्परा का निर्वाह भी तो स्त्रियों को करना है ना पुरुषों को ! 

आज स्वतंत्र ऊँचे आसमा को छूती ! परन्तु उससे शायद ही अधिकार मिला हो कि वह स्वयं अपना जीवन साथी चुन सके ! उसे किसी से प्रेम करने  का भी अधिकार नही ! समझ नही आता हमारा यह समाज तब कहाँ चला जाता है जब किसी स्त्री का पति रात को शराब के नशे में उसको मरता पिटता है ! कहाँ रहता है हमारा समाज? जब एक बहू दहेज़ के लिए जला दी जाती है ! या फंसी से लटका दी जाती है !  कहाँ रहता है तब यह समाज? जब सरेआम उसको कोई गुंडा मवाली छेड़ता है ! वह शक्ति स्वरूप परन्तु लाचार बेबस तब जब किसी दरिय्न्दे के हाथों कुचली जाती है ! कहाँ रहता है तब हमारा समाज ? अगर ऐसा नही ! तो क्यूँ अख़बार में आये दिन ऐसी घटनाओं का जिक्र मिल जाता है ! एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बात करते है तो दूसरी और उसकी शक्तियों को एक सीमा में बांध देता है हमारा यह समाज !

विधू यादव 

मै विधू यादव , लखनऊ के एक कस्बे अर्जुनगंज में रहती हूँ ! मै लखनऊ यूनिवर्सिटी से  जनसंचार एवं पत्रकारिता से M.Sc.कर रही हूँ ! साथ ही आंचलिक विज्ञान नगरी में science communicator हूँ ! मेरा ब्लॉग है http://haoslonkiudaan.blogspot.in/
इसके अलावा लेखन में मेरी काफी रूचि है ! इसलिए script writing  भी करती हूँ !

7 comments:

  1. नारी सशक्तिकरण पर एक वेहतर विमर्श, बधाईयाँ !

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  2. तू बेटी मेरे आँगन की तू एक पराया धन है, कल होके विदा जाना किसी और के घर है !

    गहन विचारणीय प्रश्न,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  3. एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बात करते है तो दूसरी और उसकी शक्तियों को एक सीमा में बांध देता है हमारा यह समाज !

    ek dam sahii

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  4. नारी पर विचार सराहनीय है

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  5. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !

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