उड़ती  धूप -`गॅ पार्टी ।`
लघु  वार्ता(वि)लाप..!!


"उम्र की उड़ती  धूप, तुम्हें  छू कर निकल  गई  क्या?
 अब सुखाते  रहना तुम, ओस की गीली आवाज़  को..!!


* उम्र के  सारे  पड़ाव, इन्सान  को  जब  उड़ती  धूप  के समान लगने लगते  हैं तब, उसे यह  बात  समझ  में  आती  है  कि, ज़िंदगी  में  अनुभव की  कमी  की  वजह  से, नादान  ओस  की  मासूम  नमी  भरे  तानें (कटाक्ष)  सुखाते  समय, कभी कभार  ऐसी  आवाज़ें, इन्सान  को  विनाश  की  राह  पर  भी  ले  जा  सकती  हैं । (बच  के  रहना, रे...बा..बा..!!)  

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" माँ, यह  उड़ती  हुई  धूप  मुझे  तो  बहुत  अच्छी लगती है..!! देखो..ना..!! सुबह  यहाँ, दोपहर  मेरे सिर पर और  शाम  को? शाम  को  इस  तरफ..!! माँ, आख़िर  यह  धूप  कैसे  उड़ती  होगी..!!

" क्या बात है  बेटे..!! मेरा बेटा बड़ा हो कर, बहुत बड़ा साहित्यकार बनेगा क्या, अभी से इतनी बड़ी-बड़ी बातें सोचने लगा है?"

" नहीं माँ, मैं तो बड़ा हो कर हैं..ना..!! ह...अ..म्‍....बता दूँ..!! मैं तो है ना...!! मैं  पुलिसवाला बनुंगा और फिर जो कोई भी इस उड़ती धूप के साथ नहीं भागेगा उनको,  पकड़-पकड़ कर  मैं,  जेलख़ाने  में  बंद  कर  दूँगा..!! बहुत मज़ा आयेगा ।"

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" सर, आज  कोई  नया  कैदी  आया  है, कहाँ  डालूँ?"

"कित्ते  साल  का  है? क्या  चार्ज  लगाया  है?"

" साहब, किसी फार्म हाउस पर, गॅ पार्टी  में  हाथापाई  का  कुछ  लफ़ड़ा  कियेला  है  और  उम्र तो  सिर्फ  अट्ठारह साल  की  लगती है..!!"

"ठीक  है, डाल  दे  उसे  चार नंबर में, उन  दो  बुड्ढों  के  साथ ..?"

" सा`ब, चार नंबर में? वह   मासूम  लड़की  पर बलात्कार  करने  वाले, दो  बदमाश  बुड्ढों  के  साथ?"

" अरे, हाँ..हाँ  वही..!! सा...ले, इसे  देख कर  जलते रहेंगे  और  हाँ  जल्दी  करना, अदालत  का  वक़्त  हो गया  है, वहाँ  भी  तो  टाईम  पर  पहूँचना  है..!!"

"ठीक  है  सा`ब । अभी  आया  मैं..!! चल  अबे, यहाँ-वहाँ  क्या  देखता है, अपने  अब्बु  की  बारात  में  आया  है  क्या?" 

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" अरे  या..र, तु  दिखता  तो  है  सिर्फ  इतना  सा..!! अब  बता, बाहर  क्या  गुल  खिला  कर  अंदर आ..या..है..इ..इ..!!"

" क..अ..क..अ..क..अ..कुछ  न..हीं..!!"

" अ..बे, सीधी  तरह  बताता है  कि, दूँ  एक  उल्टे  हाथ  की..!! ब..ता  सा..ले? बोलता  है  की  नहीं..बता?"

" मैंने  कुछ  नहीं  किया..!! मैं तो पहली बार गॅ पार्टी में गया और सब मेरे से  ज़बरदस्ती करने  लगे  तो,  मेरा  हाथ  उठ  गया, मैं बिलकुल  निर्दोष  हूँ..!!"

" क्या..बे..हमको ऐड़ा समझता है क्या? अच्छा, तु  तो  गॅ पार्टी वाला है ना? अरे यार..!! ये तो वही च ना, जिस में एक मर्द..दूसरे मर्द के सा..थ..? आ..ई..ला, ही...ही..ही..ही..आ..ई..ला, ही...ही..ही..!! चल, हम  भी आज तेरे साथ, गॅ पार्टी-गॅ पार्टी  खेलेंगे ।"

"क्या..आ..आ? न..हीं..ई..ई..ई..!!"

" चल बे मजनू,  देख  क्या  रहा  है? कस  के  पकड़  साले  को, आज मासूम  लड़की  नहीं  तो, लड़का ही  स..ही..!!"

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" माँ तुम कहाँ हो? देख, तुम मेरी फ़िक्र  मत करना..!! उड़ती धूप का साया, अब ढलने को है और अब तो मुझे कोई दर्द भी महसूस नहीं होता..!!"
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प्यारे दोस्तों, क्या आप को दर्द महसूस  हो   रहा  है?

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१५-१२-२०११.

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