बहुत दिनों से सोंच रहा था कि धर्म पर कुछ लिखूं. धर्म पर लिखने का मतलब मैं किसी विशेष धर्म के बारे में नहीं लिखना चाहता बल्कि आज धर्म को एक बहाने के रूप में बदल जाने पे लिखना चाहता हूँ... मुझे धर्म का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है. अपनी सोंच और समझ से सिर्फ कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करना चाहता हूँ... कोई त्रुटी हो या मेरी बात से किसी को कोई ठेष लगे तो माफ़ी चाहूँगा...

आज धर्म क्या है? कोई खुद को हिन्दू कहता है, कोई मुसलमान, कोई यहाँ इसाई है तो कोई सिख... एक तो पहले इंसानों को कई धर्मों में बाँट डाला... उससे अपने स्वार्थ की पूर्ति नहीं हुई तो उसमें भी विभाजन कर के जाति बना दी गयी... वो भी जब कम पड़ने लगा तो और खंड-खंड कर के उपजाति बना दी गयी. मेरे नजर में धर्म का पहला रूप है इंसानों को इंसानों से ही अलग करना, दो इंसानों के बीच जाति-उपजाति के नाम पे फुट डालना...

हर कोई धर्म से, भगवान से डरने की बात करता है... धर्म का अपने - अपने रूप से व्याख्यान करता है पर खुद धर्म और भगवान के सही अर्थ को नहीं जानता है.... जहाँ तक मैं समझता हूँ हर धर्म एक दुसरे के साथ सौहाद्र, प्यार, इमानदारी और भाई-चारा सिखाता है. किसी भी धर्म में शायद ही लिखा हो कि ये सब छोड़ के सिर्फ भगान की भक्ति ही करनी चाहिए?... गीता का उपदेश है कर्म करना, ईसा और सांई सेवा को धर्म मानते है, अल्लाह ने भी कर्म पर ही जोर दिया है और गुरु साहिब भी देश-भक्ति और इंसान सेवा को पहले मानते थे... पर आज ये सब धर्म मानने वाले इन उपदेशों को कहाँ मानते है....

आज कोई बड़े घर का बच्चा अगर किसी गरीब से दोस्ती कर ले या फिर अगर प्रेम में पड़ जाए तो माँ-बाप कितनी ही समझाईस देने लगते है... कृष्ण की सुदामा के साथ दोस्ती और राधा के साथ प्रेम हर कोई भूल गया.... 

कोई धर्म हमें मांसाहार से दूर होने की सलाह देता है (फिर भले ही उसी धर्म के नाम पे निर्दोष जानवरों की बलि चढ़ा दी जाये)...तो किसी धर्म में मांसाहार को अनुचित नहीं माना गया है... किसी धर्म में मदिरा का सेवन वर्जित है तो किसी में इसे शामिल किया जाता है और हिन्दू धर्म में तो ख़ास कर कई जगह शराब प्रसाद का रूप दे कर चढ़ाया जाता है. फिर कोई किसी को गलत किसी को सही कैसे साबित कर सकता है?

धर्म और भगवान की पूजा के नाम पे अरबों-खरबों की संपत्ति लुटा दी जाती है, पर इंसानों के हित के लिए किसी के पास से कुछ नहीं निकलता. धर्म के नाम पे कोई भी आयोजन हो बेकार युवकों की फ़ौज सड़क पे नजर आने लगेगी पर जनहित के नाम पे लोग व्यस्त हो जाते है. सांई, जिन्होंने जीवन भर सिर्फ दूसरों की सेवा में अपना जीवन गुजार दिया और सारी जिंदगी ऐशो-आराम से दूर रहे उन्ही सांई के तथा-कथित वारिस और संस्था आज पैसों के ढेर अपने नीचे दबाये पड़े है... ऐसे कई संस्थाएं है जो अपने-आप को संत कहने वाले लोगों ने शुरू किये पर अपने संत-मार्ग को छोड़ के सिर्फ धन-जमा करने में ही प्रथम भूमिका निभाए है... 

लोगों ने बड़े-बड़े मंदिर मस्जिद बनवा दिए पर गरीबों के हित के लिए न किसी के कोई स्कूल बनता है और न ही अस्पताल.... दंगे हो जाते है इन धर्मों के नाम पर... कहीं हिन्दू लड़ रहे है मुस्लिम से तो कहीं यहूदी ईसाईयों से लड़ते रहे है... कौन से धार्मिक लोग है ये जो अपने ही धर्मों के उपदेश को भूल गए?

सोंचने और कहने के लिए बहुत कुछ है... पर जितना कहता जाऊँगा उतना कम पड़ता जाएगा... हिन्दू धर्म में जन्म लेने से ज्यादा ज्ञान इसी धर्म का है... मैं इस धर्म को मानता भी हूँ... पर इस धर्म के आडम्बरों को नहीं... मंदिर जा के पूजा करने से बेहतर मैं वो समय किसी इंसान के साथ बिताना ज्यादा पसंद करता हूँ जिस कारण लोग मुझे नास्तिक तक कहते है... पर यकीन मानिए मैं नास्तिक नहीं हूँ और न ही खुद को बहुत बड़ा धार्मिक मानता हूँ... मैं बस वो करता हूँ जिसके लिए शायद उपरवाले ने मुझे भेजा है... अपने समय और अपने क्षमता के हिसाब से समाज में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करता हूँ...

हिन्दू धर्म के बारे में ज्यादा और दुसरे धर्मों के बारे में कम ज्ञान के बारे में अपनी बात यहीं ख़त्म कर रहा हूँ... क्योंकि अगर मैं अपनी बात रखने लगा तो शायद हिन्दू धर्म पर ही लिखता चला जाऊँगा और लोग फिर मुझे धर्म-विरोधी और न जाने क्या-क्या कहने लगेंगे...

मैं किसी धर्म के खिलाफ नहीं हूँ बल्कि मैं खिलाफ हूँ आज धर्म के बदल चुके रूप के कारण... लोगों ने अपने अपने हिसाब से धर्म के पुरे व्याख्यान को बदल डाला है... मेरी सोंच के हिसाब से तो धर्म आज सिर्फ एक बहाना बन कर रह गया है... जब किसी के पास तर्क ख़त्म हो जाते है तो धर्म की ढाल उसके सामने है... बाकी मेरे मन की बात आप तक पहुँच गयी होगी इसकी उम्मीद करता हूँ... एक बार फिर किसी गलती के लिए माफ़ी चाहूँगा.... 

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