यात्रा कितनी भी लम्बी हो .... कोई न हो साथ तो अकेलापन अवश्य होता है साथ- करता रहता है रिवाइंड घटित घटनाओं को, एहसासों की अशेष कड़ियों से जोड़ता जाता है और ये सारे दृश्य,परिदृश्य और कड़ियाँ शब्दों के परिधान से खुद को संवार लेते हैं हमें माध्यम बना .... शब्दों के इन्द्रधनुषी परिधानों के मेले में ले चलती हूँ आपको - आइये ,

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हमें जाना है सुदूर....
इस महीतल के भीतर..
अतल-वितल गहराइयों तक.

हमें जाना है भीतर अपने
मन के दसों द्वार भेद कर
अंतिम गवाक्ष तक.
अन्नमय कोश से ....
आनंदमय कोश तक.

छू लेना है ऊंचाइयों के
उस उच्चतम शिखर को,
जिसके बारे में कहा जाता है -
वहीँ निवास है, आवास है
इस सृष्टि के नियामक
पोषक और संचालक का.

पूछना है - कुछ 'प्रश्न' उनसे,
मन को 'नचिकेता' बना कर.
पाना है - 'वरदान' उनसे
तन को 'सावित्री' बनाकर.
और करना है- 'शास्त्रार्थ' उनसे,
"गार्गी' और 'भारती' बन कर.

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कब तक चुप रहूँ(निलेश माथुर)


देखता हूँ अन्याय
और सहता हूँ जुल्म
गूंगा नहीं हूँ
फिर भी चुप रहता हूँ,

हर तरफ कोहराम है
चौराहे पर बिक रहा ईमान है
अंधा नहीं हूँ
फिर भी आँखें बंद रखता हूँ,


दर्द से चीख रहे हैं
परिंदे, पर्वत, पेड़-पौधे
सुन रहा हूँ चित्कार
फिर भी बहरा बना रहता हूँ।

नफरत के सौदागर
कत्ल करने पर आमाद हैं
इंसानियत का
फिर भी अनजान बना रहता हूँ, 

लुट रही है आबरू किसी की
तो बिक रहे हैं जिस्म कहीं
कहने को इंसान हूँ
फिर भी तमाशबीन बना रहता हूँ,

कब तक चुप रहूँ
कब तक सहूँ
पशुओं की तरह जीता रहूँ 
या अब इंसान बनूँ।

तिमिर-रश्मिकुछ और कुछ और(डॉ विजय कुमार शुक्ल)

मन में कुछ और है मुँह में है कुछ और।
या रब वे कहें कुछ और मैं सुनू कुछ और।।

My Photoपीना तो गुनाह बेलज़्जत है अगर साक़ी,
नाज़ो अदा से न पूछे कुछ और कुछ और।

ज़िन्दगी में हसरतें जितनी थी पूरी कर ली,
पर ज़ईफ़ी में भी मन कहता है कुछ और कुछ और।

क़र्ज़ तो जो भी था हम पर अदा कर डाला,
फ़र्ज़ फिर भी करे इसरार कुछ और कुछ और।

आये जो पीरो-पैग़म्बर सब सुपुर्देख़ाक़ हुए,
इस ख़ाक़ से सदा आती है अभी आएंगे कुछ और कुछ और।

जेब में दम हो तो बीबी कहे कुछ और कुछ और,
पेट में ख़म हो तो माँ कहे कुछ और कुछ और।।

जानती हूं तेरे महफिल के काबिल नही हूं।
तो क्या जीना छोड़ दूं?
या बंद कर लूं, खूद को ऐसे अंधेरे में।
जहां तेरे महफिल की रोशनी की झलक भी ना आए।
ना वो झंकार सुनाई दे मेरे कानो में।
ना तेरी आवाज ज़हन को चीर जाए
ना वो प्यास जगे होठों पर
ना वो तड़प तुझ तक जाए….
पर इस कदर जी भी तो नहीं सकती
माना कि,
मेरे अक्स मे इतना दम नहीं
जिसमे जगमगा सके तेरा महफिल
पर एक वजुद तो मेरा भी है…
कैसे मिटा दूं इस हस्ती को?
या फिर वो हक तुझे दे दूं!
जिसके लिए मेरा होना,
किसी शाप से कम नहीं।
इसलिए
तुझे तेरे महफिल की सारी रंगीनियां मुबारक
मैं, मेरे वजुद को समेटे
एक अलग दुनिया बना लूंगी।
इस खुशफहमी में मत जीना कि
लौट कर आऊंगी मैं कभी
कि मेरे पग लड़खड़ायेंगे 
या थरथरा जाएगी मेरी जुबान
या मेरी दुनिया का अंधेरा मुझे 
तेरी रोशनी में लौटने पर विवश कर देंगे।
तेरी नजर में जो मेरी यह अंधेरी दुनिया है
वो तेरे महफिल से बेहतर होगी
क्योंकि यह मेरे अपने जीने की वजह होगी…


जन्म से ही 
My Photoअकेलेपन से बचता इंसान  
रिश्तो में पड़ता है.
बंधनों में जकड़ता है.

कुछ रिश्ते धरोहर से मिलते  
कुछ को  अपनी ख़ुशी के लिए
खुद बनाता है 

कुछ दोस्त  बनाता है
उम्मीदें  बढाता है
कि वो अपनत्व पा सके 
अकेलेपन से पीछा छुड़ा सके.

लेकिन जब उम्मीदें 
टूटती हैं 
शिकायतों का 
व्यापार चलता है 
फिर द्वेष घर बनाता है

हर रिश्ता चरमराता है
दुख और पीड़ा  से 
इंसान छटपटाता है.

तब एक वक़्त ऐसा आता है
हर जिरह से इन्सान हार जाता है.
संवाद मौन धारण कर 
गुत्थियों को उलझाता है 

बंधन मुक्त हो इंसान 
अकेला पन चाहता है.
विरक्ति की ओर अग्रसर हो
शून्य में चला जाता है 

तब .....

तब न तेरी न मेरी
सब ओर फैली हो 
मानो शांत, श्वेत 
धवल चांदनी सी
बस ...
बस वही पल 
जो शीतलता दे जाता है
वही जीना साकार 
हो  जाता है 

अंत में तो 
इंसान अकेला ही रह जाता है
कोई दोस्त, कोई साथी 
काम न आता  है.
फिर क्यों न अकेलेपन को ही 
अपनाता है

अब मैं लेती हूँ मध्यांतर, किन्तु आप वटवृक्ष का अवलोकन करना न भूलें जहां शेफाली पाण्डेय बता रही हैं कि कैसे उगता है पैसों का पेंड । इस अत्यंत मनोरंजक प्रस्तुति के लिए यहाँ किलिक करें । 

10 comments:

  1. अंत में तो
    इंसान अकेला ही रह जाता है
    कोई दोस्त, कोई साथी
    काम न आता है.
    फिर क्यों न अकेलेपन को ही
    अपनाता है
    अकेलेपन को ही अपनाता है ....

    जवाब देंहटाएं

  2. कुछ रिश्ते धरोहर से मिलते
    कुछ को अपनी ख़ुशी के लिए
    खुद बनाता है
    ...
    कुछ रिश्‍ते
    गुल्‍लक होते हैं
    जिनमें हर रोज़ डालना होता है
    कुछ अंश स्‍नेह का !
    सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक इस उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिये आभार आपका

    सादर

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  3. शानदा्र रचनायें संजोयी है।ं

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है

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  5. सभी रचनाएँ बहुत उत्कृष्ट...

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  6. mujhe sabhi rachnayen ek se badh kar ek lagi. shukl ji, garima ji,mathur ji, tiwari ji sabka lekhan bahut hi utkrish hai aur bulandiyon par hai.
    sab ki lekhni ko naman.

    meri rachna ko yahan samman dene k liye aabhari hun.

    जवाब देंहटाएं
  7. sarthak huaa aana ,sbhi rachnaon mein kho gai man ki baaton ka sunhara sanklan

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  8. प्रभावी ... मन को छूती हैं सभी रचनाएं ... लाजवाब संकलन ...

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आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
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