तुम वही मैं वही 
प्यार की ख़ामोशी वही 
बंदिशों की इंटों में 
उखड़ी साँसें भी वही ....  


वो मुझसे पूछ रहा है, कहो ग़ज़ल क्या है...
बीज को क्या बताऊं मैं कि ये फसल क्या है...

सूद तन्हाइयों का इस कदर चढ़ा मुझ पर...
मैं भूल सा गया हूँ इश्क़ का असल क्या है....

तवायफो की गली मे भजन सुना तो लगा...
आज मैं जान गया खिल रहा कमल क्या है...

मैं कह गया नशा रगों में, दिल मे वहशत सी....
कोई था पूछ रहा आज की नसल क्या है...

थे काग़ज़ों पे बन रहे वो बड़े शेर मगर...
जो आया वक़्त तो पूछा तेरी पहल क्या है...

हवा उड़ा के लाई बादलों को दिल्ली से...
वो बाढ़ देके सोचते हैं इसका हल क्या है...

वो झोपड़ी, जहाँ रिश्तों के दिए जलते हों... 
उसकी चौखट ही जानती है कि महल क्या है...

लिखते लिखते, किसी ख़्याल मे वो फिर आए...
पूछने हमसे लगे फिर नयी ग़ज़ल क्या है..
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आरजू-ए-शफक तो है मगर आसमां से नहीं,
तलाश-ए-गुल भी है मगर गुलिस्ताँ से नही

मुद्दत से आँखों में समाये हुए हैं दरिया,
उमड़ता ही सैलाब-ए-अश्क पर मिशगाँ से नही

मस्लेहतों  ने छीन लिया जो कुछ भी था हासिल,
इस वक्त से मैं पस्त हूँ मगर इम्तेहां से नही

राहबर ही लूटते हैं इस जहान में ,
लगता है कारवां से डर बयाबाँ से नही


आज फ़िर मंथन हुवा है, ज़हर है छिटका हुवा 
आज शिव ने कंठ मैं फ़िर गरल है गटका हुवा

देखने हैं और कितने महा-समर आज भी 
है त्रिशंकू आज भी इस भंवर में भटका हुवा 

पोंछना है दर्द तो दिल के करीब जाओ तुम 
दूर से क्यूँ देखते हो दिल मेरा चटका हुवा 

राह सूनी, आँख रीति, जोड़ कर तिनके सभी 
मुद्दतों से शाख पर है घोंसला लटका हुवा 

इक समय था जब समय मुट्ठी मैं मेरी कैद था 
अब समय है, मैं समय के चक्र में अटका हुवा

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बहा ले जाएगा एक दिन हमें भी वक़्त का दरिया 
किसी के छोड़ जाने से कभी दुनिया नहीं रूकती ! 

"सभी जो हौंसला रक्खें तो फिर हो रास्ते आसाँ "
कहा जो था ये तुम ने तो भला मैं क्यूँ कहीं रूकती !

सवाले हस्ती पे यूँ चौंकना लाज़िम था अपना भी
निशाँ -ए- नूर- ए- मौला जब जहाँ मिलता वहीँ रूकती?

मशहूर पाक गजल गायक उस्ताद गुलाम अली खां साहब  कहते हैं कि गजल वही है जो दिल में बैठ जाए। जिसे सुनकर दिल को सुकून मिले और जो बिगाड़ी ना जा सके। यानी कि जैसी है उसी अंदाज में कायम रहे। देर तलक सुनने को मजबूर कर दे। कहा भी गया है कि -
जब गजल की बात छिड़ती है तो दिल में खुलूस और जुवान  पे मिठास आ ही जाती है ....
तो आइये मध्यांतर से पूर्व गजल के इस कारवां को ले चलते हैं परिकल्पना ब्लागोत्सव के मंच तक जहां ग़ज़लकर ओम प्रकाश यति उपस्थित हैं अपनी दो खूबसूरत गज़लों के साथ ...यहाँ किलिक करें 


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