आज मैं यानि सदा की कलम से (http://sadalikhna.blogspot.in/) कुछ जाने-माने व्यक्तित्व की कुछ ख़ास झलक से आपको मिलवाती हूँ  .... सदा की नज़र-सदा की कलम । शुरुआत करती हूँ परिकल्पना उत्सव से ।  तो चलिये जिसने की इस उत्सव की परिकल्पना और महज तीन उत्सव के माध्यम से जिसने ब्लॉग जगत को कर दिया आंदोलित । आइए शुरुआत पहले उनके व्यक्तित्व से ही करती हूँ, क्योंकि परिकल्पना उत्सव की बात हो और चर्चा रवीन्द्र प्रभात जी की न हो तो सबकुछ बेमानी सा लगता है।  
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Ravindra Prabhatपरिकल्‍पना उत्‍सव 2012 अपनी अनुपम छटा एवं नये रंग से हमें एक बार पुन: अपने रंग में रंग रहा हैऐसे में मेरी नज़र सबसे पहले उस व्‍यक्तित्‍व पर आकर ठहर जाती है जिन्‍होंने इसकी नींव रखी अपनी सोच को एक दिशा दी तो आइये करते हैं एक मुलाकात रवीन्‍द्र जी के साथ आपके जीवन परिचय से - इनका जन्म साढ़े चार दशक पूर्व 05 अप्रैल को सीतामढ़ी (बिहार) के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ इनका मूल नाम रवीन्द्र कुमार चौबे हैइनकी आरंभिक शिक्षा सीतामढ़ी में हुईबाद में जीवन और जीविका के बीच तारतम्य स्थापित करने के क्रम में इन्होने अध्यापन का कार्य भी कियापत्रकारिता भी की,वर्त्तमान में ये एक बड़े व्यावसायिक समूह में प्रशासनिक पद पर कार्य करते हुये आजकल लखनऊ में हैं। 

लखनऊ जो नज़ाकतनफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून का जीवंत शहर हैअच्छा लगता है इन्हें इस शहर के आगोश में शाम गुज़ारते हुए ग़ज़ल कहनाकविताएँ लिखनानज़्म गुनगुनाना या फिर किसी उदास चेहरे को हँसाना ... पिछले लगभग दो दशक से हिन्‍दी में निरंतर लेखन करते हुए इनके अब तक दो  उपन्यास, एक काव्य संग्रह, दो गजल संग्रह, दो संपादित पुस्तक और एक ब्लॉगिंग का इतिहास प्रकाशित हो चुकी हैं आप सिर्फ कुशल रचनाकार ही नहीं बल्कि ब्‍लॉगजगत के प्रति आपका योगदान सराहनीय व सम्‍माननीय भी है आपने अथक परिश्रम से एक मिसाल भी क़ायम की है एक प्रसिद्ध ब्‍लॉग विश्‍लेषक के रूप में, यह मैं ही नहीं आप सब भी जानते हैं इतना आसान काम नहीं है विश्‍लेषण करना यदि एक या दो व्‍यक्ति होते अथवा होती गिनती की कोई सीमा पर यहां तो अनगिनत ब्‍लॉगर मेरे जैसे व्‍यक्ति का एक नज़रिया कह रही हूँ (वर्तमान समय में तो हिन्‍दी ब्‍लॉग का आंकड़ा 22000) की संख्‍या को पार कर चुका है इस संख्‍या की गणना करने के साथ इन आंकड़ों से परिचित कराने में भी आदरणीय रवीन्‍द्र जी का ही योगदान है, आपके पास कलम और दिमाग की पैनी धार तो है ही परन्‍तु आपकी दूरदृष्टि एवं विलक्षण सोच ने आज हमें भागीदार बनाया परिकल्‍पना महोत्‍सव का ... 
एक सहज़ एवं मृदुभाषी व्‍यक्तित्‍व रवीन्‍द्र जी जिन्‍होंने  सदैव एक-एक ब्‍लॉग पर अपनी पैनी दृष्टि रखी कोई छूटने ना पाये का भाव संजोये चलते रहे सबको साथ लेकर हर एक ब्‍लॉग का परिचय उनकी रचनाओं का चयन करते-करते उन्‍हें सम्‍मानित करने का प्रयास शुरू किया आपने .... वर्ष 2007 में ब्‍लॉगिंग में एक नया प्रयोग प्रारम्‍भ किया और ब्‍लॉग विश्‍लेषण’ के द्वारा ब्‍लॉग जगत में बिखरे अनमोल मोतियों से पाठकों को परिचित करने का बीड़ा उठाया। 2007 में पद्यात्‍मक रूप में प्रारम्‍भ हुई यह कड़ी 2008 में गद्यात्‍मक हो चली और 11 खण्‍डों के रूप में सामने आई। वर्ष 2009 में उन्‍होंने इस विश्‍लेषण को और ज्‍यादा व्‍यापक रूप प्रदान किया और विभिन्‍न प्रकार के वर्गीकरणों के द्वारा 25 खण्‍डों में एक वर्ष के दौरान लिखे जाने वाले प्रमुख ब्‍लॉगों का लेखा-जोखा प्रस्‍तुत किया। इसी प्रकार वर्ष 2010 में भी यह अनुष्‍ठान उन्‍होंने पूरी निष्‍ठा के साथ सम्‍पन्‍न किया और 21 कडियों में ब्‍लॉग जगत की वार्षिक रिपोर्ट को प्रस्‍तुत करके एक तरह से ब्‍लॉग इतिहास लेखन का सूत्रपात किया। ब्‍लॉग जगत की सकारात्‍मक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने के उद्देश्‍य से अभी तक जितने भी प्रयास किये गये हैंउनमेंब्‍लॉगोत्‍सव’ एक अहम प्रयोग है। अपनी मौलिक सोच के द्वारा रवीन्‍द्र जी ने इस आयोजन के माध्‍यम से पहली बार ब्‍लॉग जगत के लगभग सभी प्रमुख रचनाकारों को एक मंच पर प्रस्‍तुत किया और गैर ब्‍लॉगर रचनाकारों को भी इससे जोड़कर समाज में एक सकारात्‍मक संदेश का प्रसार किया वहीं स्‍थापित किया वटवृक्ष (त्रैमासिक पत्रिका) को भी जो कि अंतरजाल पर सक्रीय लेखकों को प्रिंट की मुख्‍यधारा में लाने का जो कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को साहित्‍य से जोड़ने में अपना अद्भुत योगदान दे रही है।

इस सकारात्‍मकता का भाव संजोने का सुखद परिणाम यह रहा है कि आप सम्‍मानित हुये हमारी आपकी नज़रों के साथ ही इन सम्‍मानों से भी ... संवाद सम्मान-2009, सृजनश्री सम्मान-2011, हिन्दी साहित्यश्री सम्मान-2011, बाबा नागार्जुन जन्मशती कथा सम्मान-2012, प्रबलेस चिट्ठाकारिता शिखर सम्मान-2012 आदि आपका यह ज़ज्‍बा यूँ ही क़ायम रहे इन्‍‍हीं शुभकामनाओं के साथ आप सभी से इजाजत लेती हूँ ।

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उड़नतश्तरी ! का होना ही हमें मिलाता है उनसे ... उनके ब्‍लॉग पर उनसे प्रथम परिचय .. समीर लाल की उड़न तश्तरी...जबलपुर से कनाडा तक...सरर्रर्रर्र.. मार्च 2006 को आपका ब्‍लॉगजगत से जुड़ना हुआ जहां आप कहते हैं ... कई ब्लाग हिंदी मे देख कर मन किया कि मेरा भी एक ब्लाग होना चाहिये. अब लिखूँ क्या...सोचा जहाँ तक मन की उडान जायेगीवहाँ तक लिखता जाऊँगा और नाम रखा उडन तश्तरी. आदरणीय समीर लाल जीउनके बारे में कुछ कहना ऐसा ही प्रतीत होता है जैसे सूर्य को दीपक दिखानाऔर उनसे अंजान होने का मतलब परिवार के मुखिया से अनभिज्ञ होनाउनकी सह्रदयता एवं खासियत यही है कि कोई भी नया ब्‍लॉगर हो उसके ब्‍लॉग पर आपके प्रोत्‍साहित करते शब्‍द अवश्‍य ही स्‍नेहपूर्वक मिलेगे बेहतरीन अथवा उम्‍दा जो निश्चित रूप से किसी नये ब्‍लॉगर के लिये मानसिक तौर पर ऐसा संबल बनते हैं कि वो चाहते न चाहते हुये भी उनके बारे में उनकी अज़ीम शख्सि़यत से स्‍वयं ही रू-ब-रू हो जाता हैजिनका दिल विदेश की धरती पर रहते हुये भी हिन्‍दुस्‍तान के लिये धड़कता है उनकी रचनाओं को पढ़कर जानना यह सहज़ ही संभव है ...

उनका प्रथम काव्‍य संग्रह बिखरे मोती ... जिसे उन्‍होंने अपनी माँ की पुण्य स्मृति को समर्पित किया है -और इस समर्पण में भी एकवेदना ही छुपी है -बिन माँ के उस घर में कैसे रह पाउँगा ? मन भीग जाता है इस पंक्ति के साथ ही जहांवहीं उनके संस्‍कारों कीओजस्विता इस बात में झलकती है जब इस काव्‍य संग्रह का श्रेय अपने पिता जी को देते हैंहकीकत तो ये है कि बिखरे मोती’ हमारे बचपन से अब तक की जी हुई जिन्दगी के अनमोल लम्हात हैजिनको सफल प्रयासों से समीर जी ने एक वजूद प्रदान किया है.
आप के बारे में अधिक जानना हो कुछ इस तरह से भी ...  आप एक ब्लॉगर हैंकवि हैंकथाकार हैंव्यंग्य लेखक हैं,उपन्यासकार हैंसंस्मरणकार हैंयात्रा वृत्तांत लेखक हैं और अब एक उपन्यासिका लेखक- देख लूँ तो चलूँ.” जिसकी भाषाबिलकुल बातचीत वाली. लगता ही नहीं कि कोई दुरूह साहित्य पढ़ रहा है कोई! कहीं कहीं पर आध्यात्म और दर्शन का पुट भी देखने को मिलता है जब वो ओशो की तरह जीने की कला छोड़कर कहने लगते हैं कि मैं मृत्यु सिखाता हूँ. उपन्यासिका के कुछ अंश दिल को छू जाते हैंकुछ व्यथित करते हैंकुछ गुदगुदाते हैंकुछ सोचने पर मजबूर करते हैं. एक हाईवे की ड्राईव के बहाने इन्होंने पूरा भारत दर्शन और भारतीय महात्म्य समझाया है.पर हम सभी समय के साथ बंधे हुये हैं समय के साथ चलना जरूरी होता है जैसे वैसे ही यह भी ध्‍यान रखना जरूरी हो जाता है कि अपनी बात कहते-कहते आपका समय हमने ज्‍यादा तो नहीं ले लिया ... इसी के साथ आप सभी से इजाजत लेती हूँ समीर जी के ही शब्‍दों में जो उनका हिन्‍दी भाषा के प्रति एक सम्‍मान ... व योगदान है  इस तरह से, आप हिन्दी में लिखते हैं. आप हिन्दी पढ़ते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैंइस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ेंपुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है. एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।





अभी कहीं जयिएगा मत, क्योंकि मध्यांतर से पूर्व मैं आपको ले चलती हूँ वटवृक्ष पर जहां मीनाक्षी मिश्रा उपस्थित हैं अपनी कविता "मन दर्पण": "नाटक-नींद और मेरा रोज़" लेकर ....यहाँ किलिक करें 

18 comments:

  1. सीमा जी की कलम से दोनों शख़्सियतों के बारे में जानकार अच्छा लगा, निश्चित रूप से उम्दा है आपकी प्रस्तुति ।

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  2. बहुत बढ़िया, यूं ही बढ़ता रहे परिकल्पना उत्सव का यह कारवां ।

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  3. बहुत सुंदर और सारगर्भित प्रस्तुति।

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  6. रविन्द्र जी का प्रयास निश्चित रूप से क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है |
    दोनों ही बड़ी शख्सियतें और दोनों का संतुलित परिचय |

    सादर

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  7. ब्लॉग जगत के दो महान शख्शियत को आपकी कलम से जानना अच्छा लगा सीमा जी !!

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  8. रवीन्द्र प्रभात जी तथा समीर जी जैसे विशिष्ट व्यक्तियों का परिचय आपकी कलम के द्वारा पढ़ कर बड़ी आनंदानुभूति हुई ! ब्लॉगजगत में नये-नये प्रवेश करने वाले लेखकों को इनका कितना सहयोग और प्रोत्साहन मिलता यह सर्वविदित है ! आप सभी को मेरी अनंत शुभकामनाएं एवं आभार !

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  9. सदा जी बहतरीन परिचय रवीद्र प्रभात जी का एवं समीर जी का .....शुभकामनायें ।

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  10. ब्लॉग जगत से जुडी हुयी महान शख्सियतों का परिचय करवाने का अच्छा प्रयास इसके लिए आपको धन्यवाद !!

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आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
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