प्रभु खुद 
कभी समस्याओं से मुक्त नहीं होते
तो समझना होगा 
कि समस्याएं हमारी विरासत हैं 
हम प्रभु के वारिस !
समस्या है  
तो मकसद है  
उसे दूर करने का 
कुछ सही रास्ते बनाने का ...
प्रभु की विशेष कृपा जब होती है 
तो ही समस्याएं आती हैं !

प्रभु ने हमें सुविधाएँ दीं 
पर हम क्रमशः स्वार्थी होते गए 
अपने घर के लिए 
वृक्षों पर बने कई बसेरों को उजाड़ दिया 
कितने थके राहगीरों से छाँव छीन ली 
पहाड़ों की बुनियाद हिलाकर रख दी ...
भूल गए कि जो इतनी सहजता से 
इतना कुछ दे सकता है
वह उतनी ही सुगमता से छीन सकता है !

प्राकृतिक,पारिवारिक,सामाजिक तांडव तो देव की है 
'बचाओ'की गुहार लगाने से पूर्व
क्षणांश को रुकना होगा 
सोचना होगा  - 
क्या हमने ऐसी किसी गुहार पर ध्यान दिया ?
चिड़ियों की व्याकुलता में 
घर टूटने का दुःख जाना ?
...........
भाषा की अनभिज्ञता मत दिखाओ
फिर तो प्रभु भी हमारी भाषा से अनभिज्ञ है 
और उसकी अनभिज्ञता यानि सर्वनाश !
सूखा,सुनामी,प्राकृतिक विस्फोट....
प्रभु को हमने लाचार कर दिया 
और उसे यह देना पड़ा !
धरती जब हिलती है 
तो हम अपनी जान के आगे कहते हैं-
अब ये प्रभु को क्या सूझी !
प्रभु की सूझ को समझना आसान होता 
तो हम भी सृष्टि की रचना करते 
न कि प्राकृतिक विपदाओं की वजहें बनाते ...

............... हम प्रशंसा कम करते हैं, आलोचना हमारी जिह्वा पर विराजमान रहती है - कारण,परिस्थिति,परिणाम .... सबसे परे !!! पर कुछ रिश्ते,कुछ लम्हे,कुछ अनकहे लफ्ज़ नफरत नहीं होते ....
विस्मृति की चौखट से दूर यादों के शहद भरे छत्ते होते हैं = 
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कुछ मेरा सा - एक थी सोन चिरैया = (वंदना के एल ग्रोवर)

वो कुछ कुछ मेरा सा है
कुछ अपना सा
तमाम नफरतें नहीं खींच पायी
एक लकीर मेरे दिल पर

वो खारे पहाड़
वो लदे हुए ऊंटों  की कतार
इत्र के दीवाने
मेले के ख्वाहिशमंद,रौबीले
काबिल और हुनरमंद
पतलून में सलवट को लेकर
फिक्रमंद राजकंवर को
इकलौती कुर्सी पर सहेजे
मल्लाह की पतवार के इशारों पर
दरिया के सीने पर सवार
वो कश्तियाँ
वो ऊंचे द्वार
दूर दूर तक फैला
विशाल घर-आँगन
कतार-बद्ध कर-बद्ध हुजूम


वो सलोनी सी
पढ़ती थी ,गुनती थी
धीमा सा हंसती और सब कह देती
अपनी ही दुनिया में मगन
मुस्कान से जगमगा देती  सब
जो नहीं कर पाता था
माँ के जिस्म पर लदा
एक किलो सोना भी
और उस दिन
सकुचा गई अन्दर तक
जब राजकंवर ने पूछा ,
'ऐ लड़की ,तुझे उर्दू आती है ?

उसे उर्दू आती  थी
और फिर पढ़ते रहे
दोनों ताउम्र
किताबें, रिसालें
और ज़िन्दगी ..
साथ साथ

एक अतृप्त सी तलाश ले जाती है
अंधेरों से गुज़रती
जड़ों की ओर
लौटती है नाकाम
बंद आँखों में बनती-बिगडती
एक तस्वीर
खुद की पहचान खोजती
सहलाती है
रूह पर लिपटी उदासी को
दिखाती है हक़ीकी आईना

कुछ साए हैं
फ़ैल जाते हैं शाम ढले
एक छोर से दूसरे  छोर तक
ढक लेते हैं स्मृतियों को
सायों के भयावह नर्तन में
धब्बे हैं खून के
चिपके  हैं आत्मा पर
एक पूरा ख़ूनी  इतिहास लिखे जाने के बाद

बहता खून
दरक चुके रिश्ते
तमाम दांव-पेंच
नहीं खींच पाए मेरे दिल पर
एक लकीर
जो गिरी थी गाज की तरह सरहद पर
क्यों कि  दूर कहीं है
जिस्म से कटा एक हिस्सा
जिला मियाँ वाली
और है
एक 'काला बाग़'
एक 'माड़ी'

वो ठिकाना था
सपनों का
मेरे अपनों का ...

और अब आपसे विदा लूँ , उससे पहले गजल की चंद पंक्तियाँ  रवीन्द्र प्रभात जी की, जिसे प्रकाशित किया है आज हरिभूमि ने, वर्तमान सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर : 
लिंक : http://74.127.61.178/haribhumi/Details.aspx?id=5166&boxid=161582004


इसी के साथ मुझे अनुमति दीजिये .....मगर आप अभी थोड़ा रुककर जाईएगा, क्योंकि परिकल्पना ब्लोगोत्सव के दूसरे दिन आहा ज़िंदगी के फीचर संपादक और वर्ष के श्रेष्ठ कथाकार के रूप में विगत वर्ष परिकल्पना सम्मान से सम्मानित चंडी दत्त शुक्ल आपको मिलवाने जा रहे हैं  हिन्दी की वरिष्ठ महिला साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा से । मैत्रेयी कह रही हैं कि "मेरी नायिकाएँ सेक्स की तलाश मे नहीं रहती। .... और क्या-क्या कह रही हैं , जानने के लिए ......यहाँ किलिक करें । 

 मैं रश्मि प्रभा कल फिर सुबह 10 बजे उपस्थित हो रही हूँ परिकल्पना उत्सव मे एक नया रंग भरने हेतु !

7 comments:

  1. प्रभु खुद
    कभी समस्याओं से मुक्त नहीं होते
    तो समझना होगा
    कि समस्याएं हमारी विरासत हैं
    हम प्रभु के वारिस !
    समस्या है
    तो मकसद है
    वाह ... बहुत सही कहा है आपने इन पंक्तियों ... आभार उत्‍तम चयन एवं प्रस्‍तुति के लिये

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. रश्मि जी, खूबसूरत और सार्थक रचना !
    और स्मृतियों का सफ़र... दिल को छू गया...
    रवीन्द्र जी की ग़ज़ल भी बढ़िया और सही...
    ~सादर !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. दोनों सुन्दर रचनाओं में विषय का बहुत विस्तार से वर्णन | और दोनों ही रचनाओं में एक खास समानता कि दोनों की शुरुआत के बाद अचानक उनके विषय का दायरा फैला है |

    सादर

    जवाब देंहटाएं

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