कल्पना की कोई सीमा नहीं ......
मन सिर्फ सपनाता ही नहीं,
ना ही विरोध करता है - 
प्रेम, मृत्यु, विकृति, श्रृंगार, अध्यात्म
बात एक ही होती है 
पर कई अलग से ख्यालों से 
गुजरता है शक्स ! ... .







पढ़ते हुए आप समझते हैं - लिखना आसान है
चंद शब्द जमा कर लो इधर-उधर से
शब्दकोश से
और ले लो जाने-माने लोगों की पंक्तियों के भाव ...
स्मरण रहे –
ऐसा कुछ भी सही लेखन, पठन के आगे
दम तोड़ देते हैं
............ सही कलम के आगे -
घटनाएँ, शब्द, अतीत, भविष्य की चिंता,
वर्तमान से आँखें चुराना
ह्रदय को बेधते हैं
करवटों के मध्य आँखों से कुछ टपकता है
अन्दर में रिसता है
तब घबड़ाकर लेखक कुछ लिखता है !
दर्द किसी टिप्पणी का मोहताज नहीं होता
संवेदित आहट कितने भी हल्के हों
छू जाते हैं ...
आप ऊपर ऊपर कहते हो - ये क्या है भाई !
पर चक्रवात में जिसकी आँखें धूल से भरी है
वो क्या समझाए
किसे समझाए
और क्यूँ ??????????
सूक्तियों से चुभे कांच नहीं निकलते
दर्द की अनुभूतियों  के संग निकालो
तो अनकहा भी अपना होता है
और वही कठिनाईयों से कुछ पल चुराकर लिखता है
मरने से पहले जीने का सबब बना लेता है ........

रश्मि प्रभा
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यूँ ही बैठे-बैठे जब पलटे
अपनी डायरी के पन्ने
जाना तब मेरे दिल ने की
कुछ अनकहा सा
कुछ अछूता सा
ना जाने मेरी कविता
में क्या रह जाता है
प्यार और दर्द मे डूबा मनवा
ना जाने कितने गीत
रोज़ लिख जाता है
पर क्यूं लगता है फिर भी
सब कुछ अधूरा सा
कुछ कहने की ललक लिए दिल हर बार
कुछ का कुछ कह जाता है

दिल ने मेरे तब कहा मुझसे मुस्कारा के
कि जो दिल में है उमड़ रहा
वो दिल की बात लिखो
कुछ नयेपन से आज
एक नया गीत रचो
लिखो वही जो दिल सच मानता है
एक आग वो जिस में यह दिल
दिन रात सुलगता है ..

कहा उसने ------
लिखो कुछ ऐसा
जैसे फूलो की ख़ुश्बू से
महक उठती है फ़िज़ा सारी
दूर कहीं पर्वत पर जमी हुई बर्फ़ को
चमका देती है सूरज की
पहली किरण कुवारीं
या फिर पत्तो पर चमक उठती है
सुबह की ओस की बूँद कोई
आँखो में भर देती है ताज़गी हमारी
या फिर तपती दोपहर में दे के छाया
कोई पेड़ राही की थकन उतारे सारी
लिखो पहली बारिश से लहलहा के फ़सल
दिल में उमंग भर देती है उजायरी
महकने लगती है मिट्टी उस पहली बारिश से
सोँधी -सोँधी उसकी ख़ुश्बू
जगाए दिल में प्रीत न्यारी
लिखो कुछ ऐसे जैसे "हीर "भी तुम
और "रांझा भी तुम में ही है" समाया हुआ
प्यार की पहली छुअन की सिरहन
जैसे दिल के तारो को जगा दे हमारी
या फिर याद करो
अपने जीवन का "सोलवाँ सावन"
जब खिले थे आँखो में सपने तुम्हारे
और महक उठी थी तुम अपनी ही महक से
जैसे कोई नाज़ुक कली हो चटकी हो प्यारी प्यारी

सुन कर  मैं मन ही मन मुस्काई
और एक नयी उमंग से फिर कलम उठाई
रचा दिल ने एक नया गीत सुहाना
कैसा लगा आपको ज़रा हमे बताना ??:)


रंजना भाटिया
http://ranjanabhatia.blogspot.com/
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5 comments:

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