कविता लिखना यूं तो
कवि के लिए आसान होता है
पर जो नहीं होते हैं कवि
वे भी लिख लेते हैं कविता
अच्छी  खासी बे-तराशी
सुनने वाले खासी को
पढ़ते हैं खांसी
और खो खो करके
खी खी करके लगते हैं हंसने
जैसे हंस रहे हैं आप।

बे-तराशी उन्‍हें याद दिला देती है बरबस
जेबतराशी की
जेबतराशी का जिक्र सुनकर
जेबतराश सहम जाते हैं
जैसे सहम गए हैं आप
पर दर्जी खूब खिलखिलाते हैं
उनकी जेबतराशी अपराध नहीं है
और वे नहीं हैं अपराधी
जबकि वे रोज तराशते हैं
अनेक जेब, जेबें और
गले भी साथ में
पर धारदार कैंची से।

खूब नाम हो जाता है कवि का
तब वह सोचता है रोजाना एक बार
कि उस कविता को भी लूं तराश
पर आ जाती है तभी खराश
क्‍योंकि गले में उठ आती है प्‍यास
फिर टल जाता है उसका
कविता तराश कार्यक्रम
और वे नए शब्‍दों के साथ
टहलने लगते हैं
जैसे फेसबुक पर
टहल बहल रहे हैं आप।

पुराने प्रयोग किए गए शब्‍द
अपने प्राण बचने पर
मनाने लगते हैं जश्‍न
जैसे मना रहे हैं आप
कविता पढ़कर जश्‍न।

जिनका नाम हो जाता है उनकी
कविता बे-तराशी दौड़ने लगती है
मुझे लगता है कि कवि नहीं
पर कविता कर रही थी

इसी दिन का इंतजार। 

5 comments:

  1. आजकल बे तराशी वालियों का ही मौसम है

    जवाब देंहटाएं
  2. जिनका नाम हो जाता है उनकी
    कविता बे-तराशी दौड़ने लगती है
    मुझे लगता है कि कवि नहीं
    पर कविता कर रही थी
    इसी दिन का इंतजार।
    सुन्दर चित्रण !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. बधाई है !!
    चंडीदत्त शुक्ल और मुकेश कुमार सिन्हा को !!

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top