दिल में मेरे पल रही है यह तमन्ना आज भी, इक समन्दर पी चुकूँ और तिश्नगी बाक़ी रहे  … इन भावनाओं की अनबुझी प्यास के संग आज हमारे साथ हैं
  नील परमार 



निष्कासन. विस्थापन.

अयोध्या से निष्कासित हुए थे राम
और मुहम्मद मक्का से
विस्थापित हैं कश्मीरी पंडित कश्मीर से
और लामा तिब्बत से
मेरी कविता से निष्कासित है प्रेम
मेरी कविता से निष्कासित है एक स्त्री

शहर घुस आया हैं मेरी कविता मे
जिसमे विस्थापित हूँ मैं

एक दिन झुक जाता हैं मक्का
मुहम्मद के सामने
और शुरू होती हैं इक धर्म की गौरव गाथा
एक दिन सजती हैं अयोध्या
चौदह सालो के विरह के बाद
आज तक जलते हैं उसके दीप

हर निष्कासन का एक सुखद अंत होता हैं.

लेकिन
यहाँ
जम सा गया हैं समय किसी कोने मे
स्मृति की शीत-दिशा में बहते-बहते.

सपनो में उन्हें
अब भी दिख जाते हैं
चिनार के पेड़.
सूखती आँखों में कभी-कभी उतर आता हैं
चिनाब का पानी

"बुद्धं शरणम् गच्छामि"
"संघम शरणम् गच्छामि"
"धम्मम् शरणम् गच्छामि" 
के उद्घोष के बीच
अचानक आने लगता हैं एक अशांत मंत्र
"तिब्बत 
 तिब्बत
 तिब्बत"

निष्कासन से नहीं
भय मुझे विस्थापन से हैं

जिसमें होता है
शून्य को ताकता
एक अंतहीन सा इंतज़ार

कभी ना ख़त्म होने वाला इंतज़ार |


सुविधा, सच, समझ - तीन छोटी कवितायें


मेरी स्मृति
गहरे में मेरा चयन हैं. 

हर चयन
एक सुविधा हैं.

हर सुविधा
सुविधाजनक नही होती.

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शोर और शब्द के मेल से बनी इस भाषा में
निःशब्द होना आया मेरे हिस्से

प्रश्न और उत्तर की शैली में बात करते करते
भूल गए हम
कि हर प्रश्न का दायरा 
तय कर देता हैं उत्तर की सीमा

सीमा के भीतर रहने के लिए
एक सच टूटकर
कई टुकड़े झूठ बनता हैं.

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मेरी खिड़की से दिखने वाले नक्षत्र
तुम्हारे तारो से अलग है
यह हमारे आकाश का नही
खिड़कियो का भेद हैं.

अभी हमारा ये समझना बाकी हैं.



रिश्तो का गणित


दो में से एक घटाने पर क्या बचता हैं ?
यह गणित का सबसे कठिन सवाल हैं. 

घटाए हुए एक
और बच कर आये एक
का पीछा करती हैं दो की छाया

भविष्य पर इतिहास की छाया
भौतिकी के नियमो से परे
मिथकों के सत्य
और डर को समेटे 
सबसे भयानक ग्रहण हैं 

एक कहानी में पढ़ा था मैंने
अपनी परछाई से डरने वाले
आदमी के बारे में
(जिसे पागल कहते थे सब !!)

वो कहानी अब अक्सर मुझे याद आती हैं. 

पेस्सोया सही कहते हो तुम
हम सब कहानी सुनाती हुयी कहानियां ही तो हैं.

3 comments:

  1. हर निष्कासन का एक सुखद अंत होता हैं.
    निष्कासन से नहीं
    भय मुझे विस्थापन से हैं
    शोर और शब्द के मेल से बनी इस भाषा में
    निःशब्द होना आया मेरे हिस्से
    दो में से एक घटाने पर क्या बचता हैं ?
    यह गणित का सबसे कठिन सवाल हैं.

    घटाए हुए एक
    और बच कर आये एक
    का पीछा करती हैं दो की छाया
    एक कहानी में पढ़ा था मैंने
    !!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह … बहुत सुन्दर रचनाएँ … शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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