अकेलेपन का मित्र कोई व्यक्तिविशेष हो - ज़रूरी नहीं 
प्रकृति,ख़ामोशी,घड़ी की टिक टिक … भी हो सकते हैं
रोने से पहले दिल की सुनो 
भीड़ में वह कितना चुप सा था 
पंछी कितने उदास थे  - सोचो 
सुनो -  .... 
और जानो - अकेलेपन को एकांत दो 
एकांत में ही आध्यात्म की रौशनी प्रखर होती है 

           रश्मि प्रभा 


अकेलापन

कभी-कभी हम ज़िन्दगी के ऐसे दोराहे पर खड़े होते हैं, जहां एक ओर हमें सामाजिक मर्यादाओं का ख़्याल रखना पड़ता है तो दूसरी तरफ़ अपने कर्तव्यों को भी अंजाम देना पड़ता है। ऐसे में हमारे दिल और दिमाग़ की रस्शाकशी चल रहा होता है और उस रस्साकशी में हमारा ख़ुद का दम घुट रहा होता है। ऐसे में अपने विवेक का सहारा लेकर किसी निष्कर्ष तक पहुंचना एक तनी रस्सी पर चलने के समान होता है, जिसके एक तरफ़ खाई होती है तो दूसरी तरह कुंआ और हम होते हैं तन्हा। ऐसे तन्हा यानी अकेले लोगों के लिए जहां एक तरफ़ हिंदी की लोकोक्ति होती है, “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता” वहीं दूसरी तरफ़ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर का संदेश होता है, -

जोदि तोर डाक शुने केउ ना आसे
तबे एकला चलो रे,
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे।


इन दो विचारधाराओं के बीच, गहराती रात को नींद नहीं आ रही होती है, तब बिस्तर से उठ बारामदे में टहलते हुए सामने के वृक्ष की शाखाओं के ऊपर नज़र जाती है। देखता हूं एक चिड़ियां दुबकी पड़ी है। उसका अकेलापन मुझे आकर्षित करता है। उसे इस तरह अकेले देख मेरे मन में ख़लील ज़िब्रान की पंक्तियां कौंधती हैं –

“हे रात्रि! तू प्रेमियों की सखी, एकान्तवासियों की सुखदात्री और असहायों का आतिथ्य करने वाली है।”

इस चिड़ियां में अंतिम (आतिथ्य) वाला गुण तो मुझे नहीं लगा, हां पहले दो कारण हो सकते हैं। साथी से बिछुड़ा यह पाखी है या ठुकरा दिया गया, कहना मुश्किल है। हम अपने आसपास भी पाते हैं कि कई बार आपस में तकरार बढ़ जाने पर कुछ लोग अपने जीवन साथी से अलग रहने लगते हैं। इसी लिए कहा गया है – “व्यर्थ बोलने की अपेक्षा मौन रहना ज़्यादा अच्छा है”। कई लोगों को रूठने की आदत-सी होती है। ऐसे लोग रूठते हैं और अलग रहने लगते हैं ... और मन को भरमाने के लिए कहते हैं – मैं अकेलापन एन्ज्वाय कर रहा हूं। अरे! यह रूठना भी कोई रूठना है लल्लू!

रूठने का लुत्फ़ यह है, रूठिए, मान जाइए
रूठते हैं आप, लेकिन रूठना आता नहीं।

हमारे एक रिश्तेदार दम्पत्ति एक-दूसरे से रूठे और पिछले दो सालों से अलग रह हैं। कौन पहल करे की फांस लग गई है दोनों में। ऐसे लोगों के लिए राजस्थान की यह कहावत काफ़ी मायने रखती है – “मित्र इतना ही मान करो जितना आटे में नमक होता है। बार-बार रूठने पर आख़िर तुझे मनाता कौन रहेगा?”

आज वे बेचारे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे हैं। किसी के साथ रिश्ते का महत्व यह नहीं है कि कोई उसके साथ होने से कितनी खुशी महसूस करता है बल्कि उसके नहीं रहने से कितना ख़ालीपन महसूस करता है, कितना अकेलापन महसूस करता है। मैंने पूछा ऐसी नौबत क्यों आई? बोले “वो बात-बात में मेरी ग़लती निकालती रहती है।” मैंने कहा “तो क्या हुआ? एक बात जान लो - इस संसार में ग़लतियां तो हर कोई करता है, पर सिर्फ़ बीवी और बॉस को हक़ है कि वे उन्हें ढूंढ़ निकालें, याद रखें और समय-समय पर उसके बारे में बताते रहें।”

इस तरह के अकेलेपन का मुख्य कारण वाद से उत्पन्न विवाद है। इस लिए कहा गया है कि कम ही बोलो। वैसे भी “न्यून वाणी मूर्खों की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विग्न करता है।” इसलिए कोशिश यही हो कि प्रिय वचन बोला जाए। “प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अतः प्रिय ही बोलना चाहिए। वचन में क्या दरिद्रता।”

जाते-जाते शेख़ सादी की बात आपके सामने रखता जाऊं – “दो चीज़ें बुद्धि की लज्जा हैं – बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना।” आख़िर –

कुछ न कहना भी किसी के सामने

इक तरह का इन्किशाफ़े-राज़1 है। 1= रहस्य का उद्घाटन

अब मेरे पास कहने के लिए और कुछ नहीं है। इसलिए विराम देता हूं क्योंकि चार्ल्स कैलब काल्टन ने कहा है – “Whenyou have nothing to say, say nothing.’’

और अब एक कविता ...

रैन बसेरा ...!


पाखी ! यहां न कोई तेरा !
तरु- तरु लिपट रहीं वल्लरियां,
भंवरों से चुम्बित मधु कलियां,
और अकेला खड़ा विजन में,
नित देखे तू सांझ – सवेरा ।
पाखी ! यहां न कोई तेरा !
सरसिज पर क्रीड़ा मराल की,
लहरें चूमें तृषा डाल की।
तेरे भी कुछ सपने होंगे
चिर-स्नेही हो कोई मेरा।
पाखी ! यहां न कोई तेरा !
सबके साथी अपने-अपने,
देख रहे सब सौ-सौ सपने
तुमको मिला न कोई साथी,
करे यहां जो रैन बसेरा ...! ! ।
पाखी ! यहां न कोई तेरा 

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मनोज कुमार






अब समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद......



6 comments:

  1. एकांत ही खुद से मिलन का सबसे उपयुक्त स्थल हो सकता है

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  2. अकेलापन भी एक सोच ही है
    जैसे किसी का साथ होना सोचना
    बहुत उम्दा !

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  3. बहुत बढ़ि‍या लगा...जीवन का सत्‍य और पाखी की बात

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  4. एकांत बहुत कुछ सिखा जाता है जीवन में....

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  5. अकेलेपन का दर्द जितना गहरा उतना ही आनन्द है एकांतवास में... आज के वक्त का चित्र दिखाता लेख सोचने पर विवश करता है.... "पाखी ! यहां न कोई तेरा !" हमारा कड़वा सच है...अकेले आए हैं और अकेले ही जाना है इस दुनिया से.... कविता भी मन को छूती है...

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  6. sach hai kabhi akelapan mehsoos hota hai tho pakhi say bahut kuch sikhne ko milta hai.....

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