जादुई सपने देखना आसान तो नहीं 
पर मैं रोज देखती हूँ 
पूरे 24 घंटे  … …     

          रश्मि प्रभा 

मन कभी कुछ कभी कुछ कहता तो है 
पर  ……सुनना छोड़ दिया है 
लेकिन -


विशेष क्षणों में अजीत गुप्ता कहती हैं, 

कई बार मन उदास हो जाता है। जीवन में अघटित सा होने लगता है। ऐसे ही क्षणों में कुछ शब्‍द आकर कहते हैं कि जीवन में सपने मत देखो, इनके अन्‍दर सत्‍य, सत्‍य में दर्द छिपा है।

जीवन की परते मत खोलो
इनके अंदर घाव
घावों में दर्द छिपा है।
जीवन में सपने मत देखो
इनके अंदर सत्य
सत्य में दर्द छिपा है।

जीवन का क्या है नाम
संघर्ष, सफलता, खोना, पाना,
महल बनाना दौलत का
या परिवार बनाना अपनों का
सच तो यह है
महलों से ही अपने बनते हैं
अपने कब दिल में रहते हैं?
अपनों की बाते मत सोचो
इनके अंदर प्रश्न
प्रश्नों में मौन छिपा है।

जीवन तो कठपुतली है
परदे के आगे नचती है
किसकी अंगुली किसका धागा
किसने जाना किसने देखा
अंगुली की बाते मत सोचो
इसके अंदर भाग्य
भाग्य में राज छिपा है।

जीवन के तीन हैं खण्ड
सबके सांचें, सबकी परतें
एक दूजे से गुथी हुई पर
फिर भी हैं अनजान
बचपन का सांचा कैसा था
यौवन की परते कहाँ बनी
और अंत समय में 
किस सांचे में ढलने की तैयारी की
जीवन के खण्डों को मत देखो
इनके अंदर आग
आग से जीवन जलता है।

कहाँ स्वतंत्र तू, कहाँ रिहा
तेरा तो हर पल, कण कण
नियति के हाथों बिका हुआ
लगता है जीवन अंधा कुँआ है
बस हाथ मारते बढ़ना है
चारो ओर अंधेरा है
कब कौन वार करेगा पीछे से
इसका भी हर बार अंदेशा है
सम्बल के सपने मत देखो
इनके अंदर द्वेष
द्वेष में घात छिपा है।

बस जीना है तो कुछ भी मत सोचो
ना सपने देखो ना परते खोलो
किस अंगुली पर हम नाच रहे
किस धागे से हम जुड़े हुए
बस कठपुतली बनकर
तुमको तो हंसना है, खुश ही दिखना है
आंखों के आँसू मत देखो
इनके अंदर दर्द
दर्द में मन का भेद छिपा है।




अजित गुप्‍ता: 







सपने गढ़े जाते हैं

सपने सच होते  नहीं  
सपने गढ़े जाते हैं
 कुम्हार की मिट्टी की तरह ।
    अनगढ़ मिट्टी में
 सपनों के बीज नहीं  बोए जाते । 
 जैसे कुम्हार पहले मिट्टी को
 तैयार करता  है 
तब कल्पना का चक्र घुमाता है
 फिर उस पर मिट्टी का लोंदा रखकर
 हाथों की उंगलियों से
 मनचाहा रूप गढ़ता है
 सुखाता है और फिर आंवा लगाता है
 हर बर्तन को सलीके से उसमें रखता है
निश्चित समय और ताप में पकाता है
 और जब निकालता है
तब सभी बर्तन सही सलामत
नहीं निकलते
उसमें कुछ चटक जाते हैं 
कुछ टूट जाते हैं
सपने भी ऐसे ही होते हैं
हक़ीकत की कठोर ज़मीन से
जब टकराते हैं
तब कुछ चटक जाते हैं
और कुछ टूटकर बिखर जाते हैं
बुद्धिमान वही है जो 
मनचाहा परिणाम न मिलने पर
धैर्य नहीं खोता
निराश नहीं होता
और बार-बार कोशिश करता है
क्योंकि निर्माण का कार्य
बहुत कठिन जो होता है ।  




डा.रमा द्विवेदी





समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद.....

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