एक ब्लॉग को ज्योंहि खोला 
आवाज आई -
"आइये कभी महफ़िल जमाते हैं
एक दूसरे को जानते हैं.."
मैंने भी कहा - हाथ कंगन को आरसी क्या  …"
उत्सवी माहौल है 
चाहनेवालों की भीड़ है 
और माशाल्लाह प्रतीक जी ने लिखा कमाल का है 
कुछ हटके  .... 

रश्मि प्रभा 




कुत्ता गोष्ठी

कुत्तों की गोष्ठी हो रही थी और आस पास वाले मोहल्लों से भी सहभागी इस गोष्ठी में शामिल हुए थे। गोष्ठी का कोई खास उद्देश्य तो नहीं था। बस अपनी-उसकी सफलताओं का अंधबखान, तालियाँ, भौंकालिया इत्यादी। गोष्ठी एक छप्पर के नीचे जमी हुई है जो कुछ साल पहले किसी भिखारी की हुआ करती थी। इसमें बस एक छप्पर है और कुछ नहीं। थोड़ी बहुत रौशनी सड़क पे लगे लैम्प से आती है और वो तब जब उसमें खुद विद्युत घुसे।
street dogs
अब चूँकि ये गली के कुत्ते हैं तो इनके कारनामे भी वही छोटे-मोटे नेताओं जैसे। जैसे लोकल नेता अपने चार-पांच चमचों को ले कर गुंडागर्दी करके अपने आपको तीसमारखां समझते हैं, ठीक वैसे ही ये गली के कुत्ते भौंकाली झाड़ रहे हैं।
एक कहता है, "कुत्ते भाईयों, अभी ४ दिन पहले की ही बात है, एक मरियल मोबाइल पर खिसियाता हुआ जा रहा था। इधर मैंने बंटी और चंटी को इशारा किया तो दोनों भी सतर्क हो कर इसके पीछे हो लिए। आगे वाले कचरा डब्बे के बाजू में जो नाला है ना, ठीक उसी के पास पहुँचते ही हमने यात्री को भौंका कर चौंका दिया। बेचारे का मोबाइल छपाक से नाले में। बाऊहाहाहा, हम कुत्तों की तो घिग्घी बंध गयी। बिन मोबाइल के बकरे की हालत देखने की थी।
इतने में चौथा कुत्ता भौंकलाया और बोला, "वाह कुत्ते भाई, उसके बाद की कहानी भी तो बताओ। जो उसने तीन पत्थर उठा कर तुम तीनों पर बरसाए थे तो कैसे मिमियाते हुए भागे थे उलटे चारों पैर? कम्मकल तुम्हारे कारण मुझे भी वहाँ से कटना पड़ा था। अच्छा भला मैं बासी ब्रेड-मक्खन खा रहा था। वो करमजली मेमसाहब ने ऊपर से फेंका था। मैंने देखा, बिल्ली ले गयी ब्रेड मेरे निकलते ही"
पहला कुत्ता थोड़ा हड़बड़ाता हुआ बोला, "अब यार थोड़ा रिक्स तो उठाना पड़ता है ना। कभी-कभी कुछ तूफानी करते हैं और उसमें भी तुमको नुक्स दिख रहा है। हः!"
इतने में दूसरे मोहल्ले से आये २-३ कुत्ते अपनी कथा बघारने लगे। बोले "अमा तुम तो बस नालों में ही ऐश करो। हम ३ ने तो कल एक ऑटो वाले को जो दौड़ाया है, बेचारा ऑटो को ट्रक की तरह उड़ा ले गया। वो तो हमने अगले कट पर उसको छोड़ दिया। कुत्ता-बॉर्डर आ गया था ना, नहीं तो उसके ऑटो को पलटा कर ही छोड़ते। अरे हमने इतने साइकिल, ऑटो, अल्टो, नैनो, बाईक्स को पछाड़ा है कि तुम्हारी बिसात ही क्या। तुम कुत्ते गन्दी नाली के टुच्चे आदमी...."
'आदमी' बोलना था कि दोनों गुटों में घमासान छिड़ गया। कुत्ता वार हो गया और पूरा मोहल्ला हिल गया। तभी एक दरबान ये लंबा डंडा ले कर आया तो दोनों ओर के कुत्ते पिलपिलाते हुए भगे और अपने-अपने बिलों में घुस गए।
कुछ दिनों बाद एक और कुत्ता गोष्ठी हुई पर इस बार रईस इलाके के कुत्तों की। वहाँ की तो शान भी देखते बनती थी। चारों ओर हड्डियां अलग-अलग आकारों में सजी हुई, इलाके के सामुदायिक केन्द्र की मखमली घास पर हलकी-हलकी रौशनी आते हुए, कुत्ते विदेशी मार्का वाले पट्टे पहने हुए, कुछ तो ऊनी मफलर ओढ़े हुए, लगता था मानों रईसों की ही कोई मीटिंग हो। कोई ज़्यादा भौंकना-गुर्राना नहीं, तहजीबों की महफ़िल थी।
इसको कुत्तों की किटी पार्टी कह सकते हैं। ये भी हफ्ते में एक बार मिलते हैं। अपनी रईसी दिखाते हैं और अपनी-अपनी महंगी कारों में बैठ कर चले जाते हैं।
rich_dogs
एक जनाब-ए-कुत्ते ने फरमाया, "हे गाईज़, आप लोग को पता है कल मैंने कौन सी गाड़ी को खदेड़ा?" सब भौंकचक्के से उसको देखते हैं और वो अपनी भारी गुर्राहट में कहता है "मर्सिडीज़ बेंज" और सबकी आवाज़ स्तब्धता के कारण 'कुकुरी गुर्राहट' से 'मानवी आह' में बदल जाती। उस कुत्ते के लिए सबके मन में एक इज्ज़त पैदा हो जाती है।
पर तभी दूसरे कोने में खड़े कुत्ते ने अपना जबड़ा खोला और भौंका, "इसमें क्या शाही बात है? मैंने तो कल ही एक लैम्बौरग के आगे वाले पहिये पर अपनी छपाक छाप छोड़ी" अब सारी आह मुड़कर इस नये महाशय पर आ टिकती है।
इसी तरह ये कुकुरी-किट्टी बड़े ही अदब और शालीनता से चलती रहती है। यहाँ पर बातें केवल गद्देदार गिद्दों की, आरामदायक गाड़ियों की, ममतामयी मालकिनों की और लज़्ज़तदार खाने की होती है।
सब एक से बढ़कर एक रईसकुत्जादे हैं और इनकी दुनिया हमारे गली के बाहर नाले किनारे कचरों में धंसे कुत्तों से बिलकुल भिन्न है। इन्हें उस दुनिया के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं है और ना ही उन्हें इनकी दुनिया के बारे में। कुत्तों की जिन्दगी में अभी टीवी और फेसबुक जो नहीं आया है..


थूकन कला

"थूकना", यह एक ऐसा शब्द है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हर भारतीय बहुत ही परिचित और बहुत ही अनजान है। परिचित इसलिए क्योंकि वो इस क्रिया को दिन में कई बार करता है और अनजान क्योंकि वह यह प्रक्रिया अनायास ही करता रहता है। जिस कुशलता से हम सांस लेते हैं, उसी दक्षता से हम थूकते भी हैं। यह तो हम भारतीयों की कला ही मानिए कि ऐसे कार्य को भी बेझिझक कर जाते हैं और उससे भी ज्यादा अचंभित करने वाली बात यह है कि जो दर्शक-दीर्घा वाले लोग हैं, उन्हें भी इस बात का ज्ञान नहीं होता कि सामने वाला आदमी यह कर गया। हम इस थूकन प्रक्रिया के इतने आदि हो चुके हैं कि अब यह हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन चुका है।

बचपन से ही हम अपने आस पास लोगों को यह अनोखी कला के धनी बने पाते हैं। कोई दीवार पे थूक रहा है, कोई सड़क के किनारे, कोई सड़क के बीच तो कोई चलती बस में से राहगीर पर। 


जनाब भारत में तो ऐसे कई गली कूचे हैं कि अगर कोई इंसान किसी अनजान गली से गुजार रहा है तो उसके ऊपर टपाक से "गीली तीर" लगती है और इससे पहले कि वो समझ सके कि यह किस घर से आया, वो उन तंग गलियों की चहचाहट और घरों की बनावट से ही डर के तेज़ी से निकल जाता है। पर वहाँ के रहने वाले बाशिंदों को यह कला की पूरी पहचान है और वो बड़ी चतुराई से इन तीरों से बच निकलते हैं, हर बार!

तो हम बचपन से ही इस कला को आम मानते हैं और कई बार तो दोस्तों के बीच यह शर्त और लग जाती है कि कौन कितनी दूर थूक सकता है। और जब हम ज्यादा दूर नहीं पहुँच पाते हैं तो निराश हो जाते हैं कि यह अद्भुत कला हम न सीख पाए। पर अगर बड़े हो कर विदेशों में यह कला प्रदर्शन करते हैं तो जुर्माना देते हुए पाए जाते हैं (और सोचते हैं कि यहाँ तो इस कला कि कोई कद्र ही नहीं!)

मेरा तो यह मानना है कि थूकन कला की प्रतियोगिताएं आयोजित होनी चाहिए क्योंकि हमारे देश में एक से एक धुरंधर इस कला में महारत हासिल कर के बैठे हैं। अपने दूकान के गल्ले पर बैठे-बैठे यों थूकते हैं कि सीधा दूसरी तरफ बह रहे नाले में छपाक! राह चलते लोग हैरत और इज्ज़त से सलाम ठोक कर जाते हैं। जनाब, अगर इस कला को भुनाना है तो इसकी प्रतियोगिताएँ स्कूल, कॉलेज, जिला, शहर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक करवाए जाएँ और फ़िर अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने के लिए पाकिस्तान, बंगलादेश, इत्यादि जैसे देश तो हैं ही जहाँ यह कला लोग इसी देश से सीख कर गए हैं। मैं तो कहता हूँ कि धीरे-धीरे सही मार्केटिंग द्वारा इसको और देशों में फैलाया जाये और फ़िर देखिये भारत का बोल बाला। अकेले इस खेल में ही इतने पदक जीत जाएँगे कि चीनी और अमरीकी दाँतों तले थूक निगल लेंगे!

"ज्यादा दूर तक थूकना", "थूक कर निशाना लगाना", "सीमित समय में सबसे ज्यादा और सबसे दूर थूक पाना" जैसे विविधता के साथ इसकी शुरुआत की जा सकती है। बाकी तो आजकल सब मार्केटिंग का खेल है। सही से किया जाये तो कचरा भी सोने के भाव बिक ही रहा है।

मेरे खयाल में थूकना भारतीयों के जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है तभी तो इतने मुहावरे भी थूकने पर भारत में बहुत प्रचिलित हुए हैं जैसे:

1.) थूक कर चाटना (कितने ही भारतीय नेता इस मुहावरे को चरितार्थ करते हैं। पहले अपने बेहूदे बयान थूकते हैं और फ़िर बड़ी बेशर्मी और सफाई से चाट भी जाते हैं)

2.) मुँह पर थूकना (अब इस श्रेणी में तो हर रोज कई लोग आते हैं। बेईज्ज़ती करने में तो कईयों को इतना मज़ा आता है कि फ़िर वो यही कहते पाए जाते हैं कि "फलां के मुँह पर थूक आया", "फलां के मुँह पर ऐसा थूका कि रोने लगा", इत्यादि। और फ़िर कई लोग तो ऐसे हैं जो इस मुहावरे को कुछ ज्यादा ही गंभीर मान लेते हैं और वाकई में थूक आते हैं किसी के मुँह पर!)

3.) थू-थू होना (यह श्रेणी भी कई नेताओं के लिए बहुत सटीक बैठती है। जहाँ जाते हैं, थू थू करवा आते हैं। और आजकल तो सोशल मीडिया पर भी यह करना बहुत आसान हो गया है। एक बयान दो और हज़ारों की थू-थू मुफ्त पाओ!)

ऐसे ही और कई मुहावरे हैं जिनका विश्लेषण हम भारतीयों पर सौ दम फिट बैठता है।

और फ़िर जहाँ लोग गुटखा तम्बाकू में लिप्त हैं वहाँ थूकना न हो तो कहाँ हो? थूक थूक कर रंगीन दीवार बनाने की कला तो कोई हमसे ही सीखे। और यह तो खासकर सरकारी दफ्तरों की सीढ़ियों में बेहद आसानी से पाए जाने वाली कलाकृतियों में से है।

चित्र: गूगल बाबा की देन है

और आजकल जिस तरह के "मॉडर्न आर्ट्स" चल/बिक रहे हैं, अगर कुछ थुक्कड़ को एक चार्ट पर थूक कर अपनी कला उजागर करने को कहा जाए तो करोड़ों में वो पेंटिंग "मॉडर्न आर्ट्" के नाम पर विदेशों में बिकेगी। मैं तो कहता हूँ कि कई निठल्ले रातों-रात अमीर हो जाएँगे और देश का नाम रौशन करेंगे!

अंत में तो यही कहना चाहूँगा कि भगवान का दिया इस देश में सब कुछ है। बस ज़रूरत है एक पारखी कि उसको पहचानने की। फ़िर देखिये कि यह "थूकन कला" भारत को कहाँ का कहाँ ले जाती है!

इसी आशा के साथ कि अब हम सब मिलकर इस "वाट एन आईडिया सर जी!" पर चिंतन और कार्य शुरू करेंगे, तब तक "ताकते रहिये, रुकते रहिये, थूकते रहिये, चूकते रहिये और जो ना चुके, तो लुकते रहिये!"

मेरा फोटो
प्रतीक माहेश्वरी
http://bitspratik.blogspot.in/







अब समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद.... 

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