ग्रहण एक क्रिया है - जिस तरह मौसम अपने समय से बदलते हैं, ठीक उसी प्रकार ग्रहण भी समय की परिक्रमा है  . 
ग्रहण को लेकर कई अंधविश्वास हैं - खाना उस वक़्त न खाएँ, बाहर न जाएँ, इत्यादि  … 
 प्रश्न है - क्या देश भर में वाहनें रुक जाती हैं ?
मॉल, पिक्चर हॉल बंद हो जाते हैं ?
देश की सेना कार्य रोक देती है ? 
…………………………………… नहीं न ? 
और तब ऐसा क्या बुरा हो जाता है उनके साथ 
जो ग्रहण को पूरे रीति - रिवाज से निभाते हैं उनके साथ नहीं होता ?
मन का डर होता है 
पर अंधविश्वास की लकीर गहरी बनाने का कोई औचित्य नहीं !

   रश्मि प्रभा 


आस्‍था तो अच्‍छी चीज है ... पर ये कैसे कैसे अंधविश्‍वास ( पहला भाग) ??


हिंदी ब्‍लॉगरों के काम को कम नहीं आंका जाना चाहिए , शनै: शनै: ही सही , हर महत्‍वपूर्ण विंदुओं पर वे अपनी कलम चला ही रहे हैं , देश में अंधविश्‍वास कितना हद तक फैला हुआ है , वो इनकी नजर से देखा जा सकता है। मैने तीन पोस्‍टों में इसे समेटने की कोशिश की है ...
सबसे पहले तो बात करें आज कि जिसमें  खुशदीप सहगल जी भी शंकर जी के मंदिर में आते नाग की पिक्‍चर दिखाकर पूछ रहे हैं ... आपने फोटो देख लिए...
अब मेरे आप सबसे से चंद सवाल... क्या ये वाकई चमत्कार है... क्या ये फोटो वास्तविक हैं...यानि इनसे कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है... जब कोबरा पिछली बार फोटोग्राफर के वहां रहने पर प्रकट नहीं हुआ तो इस बार भी फोटोग्राफर के वहां पहुचने पर चला क्यों नहीं गया... तमिलनाडु में कहीं ये खबर अंधविश्वास की अति की प्रवृत्ति के चलते अखबार ने अपना सर्कुलेशन बढ़ाने की गरज से तो नहीं छापी... बहरहाल, जो भी है, मुझे ई-मेल से ये फोटो-फीचर मिला तो आप के साथ बांटने की इच्छा हुई...अब आप विश्वास रखते हों या इसे अंधविश्वास मानते हो, आप अपने मत के लिए स्वतंत्र हैं...मेरा अनुरोध बस यही है कि इस पोस्ट को बस दिलचस्प ख़बर की तरह लीजिएगा...

कुछ दिन पूर्व मैने भी एक पोस्‍ट लिखा था कि समाज से अंधविश्‍वास हटा पाना बहुत ही कठिन है ....
मैं दस बारह वर्ष पूर्व की एक सच्‍ची और महत्‍वपूर्ण घटना का उल्‍लेख करने जा रही हूं। बोकारो रांची मुख्‍य सडक के लगभग मध्‍य में एक छोटा सा गांव है , जिसमें एक गरीब परिवार रहा करता था। उस परिवार में दो बेटे थे , बडे बेटे ने गांव के रोगियों के उपचार में प्रयोग आनेवाली कुछ जडी बूटियों की दुकान खोल ली थी। बचपन से ही छोटे बेटे के आंखों के दोनो पलक सटे होने के कारण वह दुनिया नहीं देख पा रहा था। गरीबी की वजह से इनलोगों ने उसे डाक्‍टर को भी नहीं दिखाया था और उसे अंधा ही मान लिया था। पर वह अंधा नहीं था , इसका प्रमाण उन्‍हें तब मिला , जब 16-17 वर्ष की उम्र में किशोरावस्‍था में शरीर में अचानक होनेवाले परिवर्तन से उसकी दोनो पलकें हट गयी और आंखे खुल जाने से एक दिन में ही वह कुछ कुछ देख पाने में समर्थ हुआ। उसके शरीर में अचानक हुए इस परिवर्तन को देखकर परिवार वालों ने इसका फायदा उठाने के लिए रात में एक तरकीब सोंचा। खासकर बडे बेटे ने अपनी जडीबूटियों की दुकान को जमकर चलाने के लिए यह नाटक किया। सुबह होते ही छोटा बेटा पूर्ववत् ही लाठी लिए टटोलते टटोलते गांव के पोखर में पहुंचा और थोडी देर बाद ही हल्‍ला मचाया कि उसकी आंखे वापस आ गयी है । पूरे गांव की भीड वहां जमा हो गया और पाया कि वह वास्‍तव में सबकुछ देख पा रहा है। जब लोगों ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि अभी अभी एक बाबा उधर से गुजर रहे थे , उन्‍होने ही उसपर कृपा की है । उन्‍होने कहा है कि न सिर्फ तुम्‍हारी आंख ठीक हो जाएगी, तुम अब जिनलोगों को आशीर्वाद दे दोगे , वे भी ठीक हो जाएंगे। 

इमरान हैदर जी इस पोस्‍ट में बताते हैं कि बडे बडे लोग भी अपने को बचाने के लिए अंधविश्‍वास की चक्‍कर में आ जाते हैं  भ्रष्ट्राचार के कई मामलों से घिरे जरदारी एक बार फिर अंधविश्वास के चलते मुसीबत में घिरते नज़र आ रहे हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद से जरदारी ने खुद को बुरी नज़र से बचाने के लिए 500 से भी ज्यादा काले बकरों की बलि दे दी है। जरदारी रोज़ सुबह एक काले बकरे की बलि देते है ताकि वे किसी भी तरह की बुरी नज़र और जादू से बच सके। इतना ही नहीं इस अंधविश्वास के चलते जरदारी सिर्फ ऊंट और बकरी का ही दूध पीते हैं। ऐसा नहीं है कि इस अंधविश्वास की चपेट में सिर्फ जरदारी ही शामिल हों पूरी दुनिया में ऐसे कई राजनेता और विश्व प्रसिद्ध हस्तियां हैं जिन्होंने खुद को इस तरह के तमाम अंधविश्वासों में खुद को लपेट रखा है। इन हस्तियों के बारे में जानने से पहले एक नज़र ड़ालते हैं कौन से ऐसे टोटके हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को दहशत की चपेट में ड़ाल रखा है।
बिल्ली के रोने की आवाज- परेशानी आने की सूचना मिलना।
-काम पर जाते समय छींकना- काम न बनना।
- पूजा करते समय दीपक बुझना- अपशगुन होना।
- खाने में बाल आना- किसी परेशानी में आना।
- रोटी का बार-बार मुड़ना- किसी अपने का याद करना।
- छत पर कौवे का बोलना- मेहमान के आने की सूचना।
और भी ना कितने तरह के टोटके हैं जिनसे लोग डरते हैं। पूरी दुनिया में एक नज़र डाले तो तमाम बड़े नाम किसी ना किसी शकुन और अपशकुन के चलते अंध विश्वास की चपेट में रहे हैं।

दृष्टिकोण ने भी लिखा है कि आजकल टी.वी पर एक धारावाहिक के ज़रिए देश के एक सदियों पुराने अंधविश्वास को भुनाकर पैसा कमाने की जुगत चल रही है। पूर्वजन्म की यादों को वापस लाने के निहायत अवैज्ञानिक, झूठे और आडंबरपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिए लोगों में इस बचकाने अंधविश्वास को और गहरे तक पैठाने की कोशिश की जा रही है। यह कहना तो बेहद मूर्खतापूर्ण होगा कि आम जनता में गहराई तक मार करने वाले एक महत्वपूर्ण मीडिया पर ऐसे अवैज्ञानिक कार्यक्रमों को प्रसारित करने की अनुमति आखिर कैसे दे दी जाती है ! यह मामला नियम-कानून, और सांस्कृतिक-सामाजिक नीतियाँ बनाने वालों की मूढ़ता का भी नहीं है। दरअसल यह तो एक सोचे-समझे ब्रेनड्रेन कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसमें षड़यंत्रपूर्वक आम जन साधारण में वैचारिक अंधता पैदा करने, समझदारी और तर्कशक्ति को कुंद कर देने की जनविरोधी कार्यवाही अंजाम दी जाती है, ताकि लोगों का ध्यान देश की मूल समस्याओं की ओर से हटाया जा सके।

लेकिन.... इट हैपेन्स ओनली इन इंडिया। कुछ समय पहले एक रिअलिटी शोआरंभ हुआ है 'राज़..पिछले जन्म का' एनडी टी वी इमेजिन पर जहाँप्रतिभागी बड़े नाटकीय तरीके से अपने पूर्व जन्म में चले जाते हैं (यह समययात्रा से भीआगे की चीज़ है भाई) और उन्हें सब कुछ याद आ जाता है, किउनकी मृत्यु कैसे हुई, पिछले जन्म में कौन माँ बाप थे, आदि आदि। प्रेमाईसये है कि यदि आपको कोई चीज़ बेचैन करती है, किसी प्रकार का भय है, याऐसा ही कुछ तो ज़रूरइसका रिश्ता पूर्व जन्म से है। तो अब आप पूर्व जन्म मेंजाइये, अपनी वर्तमान समस्या का निश्चित कारण 'देखिये'। और वापसआइये आपकी उद्विग्नता समाप्त या कम हो जाएगी। तो जैसे ही सेलिनाजेटली कहती हैं कि उन्हें 'सोल मेट' कि तलाश है, दर्शक समझ जाता है किज़रूर पूर्व जन्म में इनका कोई ब्रेक अप हुआ था। वाह वाह।जबकि उसके ही एक नियम 'Cable Television Network Rules, 1994 (Rule 6-1-j) के तहत अंधविश्वास फैलाना जुर्म है। 

डॉ श्‍याम गुप्‍ता जी भी परेशान है कि समाचार पत्र अंधविश्‍वासों को हवा दे रहे हैं ...
समाचार पत्र व उनके सम्पादक गण जरा सोचें कि उनके पत्र में छपे ये विज्ञापन किस हद तक समाज़ में व्याप्त अन्धविश्वासों जो बढावा देते हैं? जब तक हम, सारा जनसमुदाय, एवं उसके साथ समाज का प्रहरी, जन् तन्त्र का चौथा खम्बा, अपनी व्यवसायी मानसिकता छोडकर,इसे विज्ञापनों, आलेखों (चाहे वे कितने ही आकर्षक व सम्मानित लेखकों के हों), को छापने से इन्कार करने का साहस नहीं जुटायेंगे ये मुहिम तेज व धार दार नहीं हो पायेगी।

प्रज्ञा प्रसाद जी कहती हैं कि अंधविश्‍वास में घिरे मा बाप पर बच्‍चों के कष्‍ट का भी कोई प्रभाव नहीं पडता है , पढिए ...

आपने भी देखा होगा चैनलों पर कि किस तरह कर्नाटक के गुलबर्गा में मासूमों पर जुल्म ढाया जा रहा था... और ये कोई नई बात नहीं है... पिछले साल भी जुलाई में बच्चों को गले तक ज़मीन में गाड़ दिया गया था... उस वक्त भी बहस हुई थी... लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला... इस बार भी बच्चों को गले तक ज़मीन में दबा दिया गया... इन बच्चों में विकलांग बच्चे भी शामिल थे... अंदाज़ा लगाइए कि किस तरह करी साढ़े ३ घंटे इन बच्चों ने रोते-बिलखते, भूखे-प्यासे गुज़ारे होंगे... लोग दोष दे रहे हैं व्यवस्थआ को, प्रशासन को... लेकिन मैं तो कहती हूं कि इसमें सबसे बड़ा दोष करीब ९९ प्रतिशत दोष माता-पिता का है।

अभिषेक प्रसाद जी भी बात लोगों के विश्वास की – अंधविश्वास की देखकर आश्‍चर्य करते हैं ...
अब हुआ यूँ कि मेरी तबियत खराब हुई तो माँ ने अपने इलाज भी शुरू कर दिए. पहुँच गयी एक jewelry shop और बनवा लायी मेरे लिए सोने का हनुमान (अब उसका मूल्य नहीं बताऊंगा, भाई किसी ने अगवा कर लिया मुझे तो?). हाँ तो जैसा कि माँ ने मुझे बताया कि इस लोकेट को पहनने से मेरी सारी तकलीफें दूर हो जाएँगी. हुआ भी कुछ ऐसा ही 3 दिनों के बाद ही मैं क्रिकेट खेलने लायक हो गया. अब देखिये 7 दिनों से doctor uncle की दवा खा रहा था पर ठीक हुआ हनुमान जी की कृपा से. धन्य हो प्रभु, धन्य हो.
अब ये चमत्कार हुआ तो, पर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रहा. कर भी नहीं सकता. जब भगवान नाम की किसी चीज़ पर विश्वास नहीं तो इन सब बातों पर विश्वास का सवाल ही उत्तपन नहीं होता ।

हमारे गांव में एक मकान को भूतहा माना जाता था , जो भी किराएदार वहां रहते , असामान्‍य घटनाओं की चर्चा करते रहते थे। अंत में वह मकान एक पुलिस अफसर को मिला , उन्‍होने कभी भी ऐसी बातें न की , तो गांव के शिक्षितों को महसूस हुआ कि भूत प्रेत वाली बातें बेमानी है , हालांकि बहुत गांववाले यही मानते रहें कि भूत उन्‍हें भी परेशान करता होगा , पर वे अपनी प्रतिष्‍ठा को बनाए रखने के लिए इस बात का खुलासा नहीं कर रहे हैं , पर इस समाचार में देखिए पुलिस भी अंधविश्‍वास में पडी है।

और लोगों की बातें क्‍या की जाए , जब धर्म और मानवता की रक्षा करने वाले  एक पुजारी ने तो काली जी के मंदिर में अपना सर ही काट डाला दो वर्ष पूर्व काली माता को चढ़ाई थी जीभ... जबलपुर,। अंधविश्वास के कारण व्यक्ति अपने अनमोल जीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं। ऐसी ही एक घटना आज सुबह समीपवर्ती कटनी जिले के ग्राम स्लीमनाबाद में घटित हुई जहां काली माता के एक उपासक ने मंदिर के अंदर अपना सिर काट लिया। पुजारी को गंभीर अवस्था में उपचार के लिए जबलपुर स्थित शासकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया है। पुजारी ने लगभग दो वर्ष मां काली को जीभ काटकर समर्पित की थी। कटनी के पुलिस अधीक्षक मनोज शर्मा से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्लीमनाबाद निवासी जय कुमार जायसवाल मां काली के उपासक हैं। लगभग दो वर्ष पूर्व उन्होंने अपनी जीभ काटकर मां काली को समर्पित कर दी थी। आज सुबह लगभग 5 बजे जयकुमार ग्राम स्थित मां काली के मंदिर पहुंचे। पूजा अर्चना के बाद उन्होंने तलवार से अपनी गर्दन काट ली। 

वैज्ञानिक युग में भी लोग अंधविश्वास में किस तरह जकड़े हुए हैं, इसका उदाहरण यहां देखने को मिला। शहर के प्राचीन मंदिर महेश्वरी देवी में एक युवक ने ब्लेड से अपनी जीभ काटकर चढ़ा दी। पुलिस ने युवक को गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भर्ती कराया है।सोमवार दोपहर लगभग 3 बजे कमासिन थानाक्षेत्र के ग्राम लाखीपुर पोस्ट बंथरी निवासी मुकेश कुमार पुत्र रामगुलाम महेश्वरी देवी मंदिर पहुंचा। वहां मौजूद लोग जब तक कुछ समझ पाते उक्त युवक ने जेब से ब्लेड निकाला और जीभ का अगला हिस्सा काटकर मूर्ति की तरफ उछाल दिया। युवक के मुंह से खून का फौव्वारा छूट पड़ा जिससे लोग अवाक रह गये। वहां मौजूद पुजारी दिनेश कुमार ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने खून से लथपथ युवक को जिला अस्पताल में भर्ती कराया, अगली कडी में और बातें भी जानने को मिलेंगी कल इसी वक्‍त।


आस्‍था तो अच्‍छी चीज है ... पर ये कैसे कैसे अंधविश्‍वास ( दूसरा भाग) ??


कल से ही मैं अपने देश में बेवजह फैले अंधविश्‍वास पर हमारे ब्‍लोगरों की निगाह की चर्चा कर रही हूं , इसी की दूसरी कडी आज प्रस्‍तुत है .......

ऋषिकेश खोङके "रुह" जी को सुनने में अजीब सा लग रहा है कि किसी के शरीर में देवी आ गयी है..सुनने मे अजीब लग सकता है की किसी के शरीर मे देवी आ गई
 पर भारत मे ये आम बात है | आप भारत मे इस प्रकार की बातों को अंधविश्वास अथवा कुरितियाँ कह सकते है किन्तु मेरे लिये ये कहना जरा मुश्किल होगा | बात काफी पुरानी है और यादें भी धुंधली सी ही है पर आँखो के समक्ष एक चलचित्र है| अवसर है गौरी पूजन (महालक्ष्मी) का ,आरती चल रही है और धिरे-२ समापन की और है की अचानक काँपते हाथ-पैर , खुले हुवे बाल , झुमता शरीर और गले से निकलती अज्ञात आवाज़ के साथ मेरी माता | मै शायद देख कर डर गय होउन्गा | सहसा आवाज़ आती है "अरे अंगात देवी आली , पाया पडा" अर्थात शरीर मे देवी आयी है पैर पडो | एक - एक कर सभी लौग माँ के पैर पडने लगे | माँ सबको आशीर्वाद देती रही और कुछ आश्वासन भी जैसे "सगळ बर होईल, चिन्ता करु नको" अर्थात सब ठिक हो जायेगा चिन्ता मत करो इत्यादि |

शेफाली पांडे जी बालिका को माता के नाम पर पूजे जाते देखकर कहती हैं इन्हें इंसान ही बने रहने दिया जाए ग्रामीण इलाके में शिक्षण कार्य करने के कारण अक्सर मुझे वह देखने को मिलता है, जिसे देखकर यकीन करना मुश्किल होता है कि यह वही भारत देश है, जो दिन प्रतिदिन आधुनिक तकनीक से लेस होता जा रहा है,जिसकी  प्रतिभा और मेधा का लोहा सारा विश्व मान रहा है, जहाँ की स्त्री शक्ति दिन पर सशक्त होती जा रही है ,  लेकिन इसी  भारत के लाखों ग्रामीण इलाके अभी भी अंधविश्वास की गहरी चपेट में हैं, इन इलाकों से विद्यालय में आने वाली अधिसंख्य लडकियां कुपोषण, उपेक्षा, शारीरिक और मानसिक  प्रताड़ना का शिकार  होती  हैं, क्यूंकि ये एक अदद लड़के के इंतज़ार में जबरन पैदा हो जाती हैं, जिनके  इस दुनिया में आने पर कोई खुश नहीं हुआ था,  और यही  अनचाही लडकियां जब बड़ी हो जाती हैं, तो अक्सर खाली पेट स्कूल आने के कारण शारीरिक रूप   से कमजोरी के चलते   मामूली  सा  चक्कर आने पर यह समझ लेती हैं कि उनके शरीर में देवी आ गयी है, हाथ पैरों के काँपने को वे अवतार आना समझ लेती हैं, मैं बहुत प्रयास करती हूँ कि बच्चों की इस गलतफहमी को दूर करुँ, मैं उन्हें समझाती   हूँ कि ये देवदेवता शहर के कॉन्वेंट या पब्लिक स्कूलों के बच्चों के शरीर में क्यूँ नहीं आते ? 

राजकुमार ग्‍वालानी जी भी पूछते हैं .... है कोई टोनही से मुक्ति दिलाने वाला
छत्तीसगढ़ का प्रचलित ज्यौहार हरेली कल है। इस त्यौहार को जहां किसान फसलों के त्यौहार के रूप में मानते हैं और अपने कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं, वहीं यह भी मान्यता है कि यही वह दिन होता है जब वह शैतानी शक्ति जिसे सब टोनही कहते हैं विचरण करने के लिए निकलती है। इसी के साथ इस दिन को तांत्रिकों के लिए अहम दिन माना जाता है। इस दिन तांत्रिक तंत्र साधना करने का काम करते हैं। भले इसे अंधविश्वास कहा जाता है, लेकिन यह एक कटु सत्य है कि टोनही जैसी चीज का अस्तित्व होता है। ऐसा साफ तौर पर ग्रामीणों का कहना है। इनका कहना है कि अगर किसी को इसे देखना है तो वह छत्तीसगढ़ आ सकता है। वैसे ये देश के हर कोने में हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में इसके बारे में ज्यादा किस्से हैं। एक तरफ ग्रामीण टोनही के होने का दावा करते हैं तो दूसरी तरफ इसको अंध विश्वास बताया जाता है। ग्रामीण इसको अंध विश्वास बताने वालों से कहते हैं कि क्यों नहीं वे उन स्थानों पर जाने की हिम्मत करते हैं जहां पर टोनही के बारे में कहा जाता है कि वह विचरण करती है। अगर है कोई ऐसा बंदा जो टोनही से मुक्ति दिला सकता है तो वहां जाए और बताए कि टोनही हकीकत नहीं बल्कि महज अंधविश्वास है।


अंकुर जी लिखते हैं कि झारखंड के देवधर जिले के पालाजोरी इलाके में पत्थरघट्टी गांव में पांच महिलाओं को डायन बताकर सरेआम बेआबरू किया गया और उनकी निर्मम पिटाई की गई। मुस्लिम समुदाय की इन पांचों महिलाओं को न सिर्फ पीटा गया बल्कि निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया और बाद उन्हें मैला खाने को मजबूर किया गया। संथाल परगना प्रमंडल के पुलिस उप महानिरीक्षक मुरारीलाल मीना ने बताया कि यह पूरी करतूत किसी बाबा की है जिसका प्रभाव पूरे इलाके में है। उनके मुताबिक पत्थरघट्टी गांव की ही पांच महिलाओं के बारे में यह अंधविश्वास है कि उन पर किसी मुवक्किल साहब का साया है और जब साया आता है तो ये महिलाएं उन लोगों की निशानदेही करती हैं जो डायन हों।

सुधा अरोडा जी का एक आलेख कविता वाचक्‍न्‍वी जी ने भी पोस्‍ट किया है, जिसमें ग्रामीण महिलाओं को डायन बताकर उनके अधिकारों से वंचित करने की बात की गयी है।.

वर्षा जी संतरे की एक फांक के सहारे हमारे जीवन में फैले अंधविश्‍वास पर लिखती हैं .....
"मम्मी देखो कितनी छोटी फांक है!" वो  संतरा खा रही थी और एक छोटी सी फांक पर उसकी नज़र पड़ी.
"बेटा उसे फेंक दे."
"क्यों मम्मी?"
"क्योंकि ऐसी फांक खाने से.. तेरे पापा को भगवान् ले जाएगा."
"अरे ऐसा क्यों होगा? कहाँ लिखा है ऐसा? ये भी कोई बात हुई कि छोटी फांक खाने से पापा .."
"अब है तो है..मत खा उसे."
उसने  फांक छोड़ दी. आठ साल की थी वो. अंधविश्वास से बहुत अधिक पाला नहीं पड़ा था, मन नहीं मान रहा था पर जहां पापा कि ज़िन्दगी का सवाल था वहाँ रिस्क लेने की भी हिम्मत नहीं थी.
धीरे धीरे बड़ी हुई. बहुत से ऐसे अंधविश्वासों की उसने  धज्जियां उड़ा दीं. बिल्ली रास्ता काट जाती तो वो और खुश होकर आगे बढती. नाखून काटने की याद उसी दिन आती जिस दिन मंगलवार होता. शनिवार को दुनिया भर की शौपिंग करती (शनिवार को नयी चीज़ें खरीदने से मना किया जाता है खासकर धातु की पर उसकी  समस्या ये थी की पूरे सप्ताह में वही दिन होता था जब थोडा वक

इतना ही नहीं , अंधविश्‍वास के कारण सुबह गांव का नाम ही बदल दिया जाता है .. सिसवन में हर सुबह बसता है एक बेगूसराय सिसवन (सिवान): विज्ञान की तेज गति ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित टोटकों के आगे कभी-कभी धीमी लगती है। सिवान के सिसवन प्रखंड के घुरघाट गांव में ऐसा हीं दिखता है। यहां के लोग सुबह में अपने गांव का नाम नहीं बताते। इसके पीछे यह मान्यता है कि नाम बताने से उस दिन के लिए उनका भाग्य बिगड़ जाएगा। जरूरत पड़ने पर अगर सुबह में गांव का नाम बताना पड़े, तो ग्रामीण 'घुरघाट' के बदले 'बेगूसराय' कह काम चलाते हैं।
गांव में मान्यता है कि अगर प्रात:काल में ग्रामीण इसका नाम लें तो उनका बना काम भी बिगड़ जाएगा। ग्रामीणों के अनुसार इससे व्यवसाय में घाटा, दुर्घटना, मृत्यु या किसी अन्य परेशानी आदि से सामना होता है या इसके समाचार मिलते हैं। गांव के चंद्रिका लाल शर्मा के अनुसार इस कारण वे व्यवसाय में घाटा भोग चुके हैं। ग्रामीण संतोष शर्मा की मानें तो एक सुबह इस गांव का नाम लेने के कारण वे एक झूठे मुकदमें में फंस गए थे। 

जाकिर अली रजनीश जी तो अपने ब्‍लॉग में समाज में फैले अंधविश्‍वास पर गहरी चिंता व्‍यक्‍त करते हैं ......
जी हाँ, यह कोई कल्पना नहीं, शान्ति नगर, कायमगंज, फर्रूखाबाद, उ0प्र0 की सत्य घटना है, जिसमें शान्ति नगर मोहल्ले के निवासी तेजवीर राठौर ने अपने 12 वर्षीय पुत्र को ठीक करने के लिए एक तांत्रिक को सौंप दिया था। वह तांत्रिक बच्चे को ठीक करने के नाम पर बंधक बनाकर चिमटी के उसके शरीर का मांस नोचता था और देवताओं को चढ़ाता था। गत तीन माह से बच्चा इस अत्याचार को सह रहा था। लेकिन एक दिन जैसे ही उसे मौका मिला, वह तात्रिक के घर से भाग निकला। बच्चे ने बताया कि मकान नं0 6, गली नं0 8, मोहल्ला कलवला, फिरोजाबाद, उ0प्र0 का निवासी तांत्रिक नवमी के दिन उसकी बलि चढ़ाने वाला था।

इसके अतिरिक्त लखीमपुर खीरी में एक किसान द्वारा अपनी संतान की भलाई के लिए पड़ोस की लड़की की बलि चढ़ाने का मामला, गाँव पूरे कुर्मिन, मजरे सेमरी रनापुर, थाना ऊंचाहार, रायबरेली, उ0प्र0 में एक तांत्रिक के कहने पर जिन्न उतारने के नाम पर एक युवक द्वारा अपनी सगी भागी को पटक-पटक कर मार डालने की घटनाएं भी अभी हमारे दिमाग में गूँज रही हैं। इसके अलावा इसी सप्ताह में लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील के गौरा गाँव में फैले दिमागी बुखार को ठीक कराने के लिए झाड़ फूँक का सहारा लिये जाने की घटना भी पढ़ने सुनने में आ ही रही हैं, जबकि वहाँ पर दिमागी बुखार के कारण पहले ही दो औरतों की मृत्यु हो चुकी है।

विवेक रस्‍तोगी जी (ये कल्‍पतरू वाले नहीं हैं) चिंतित हैं कि किसी तांत्रिक के सुझाव पर, अमीर बनने के लिए अपनी ही सिर्फ 11 साल की मासूम बेटी से बलात्कार करने, और फिर सालों तक करते रहने की यह खबर कुछ ज्यादा ही विचलित कर देती है अंतस को... सोचकर देखिए, कोई भी बच्चा कैसी भी परेशानी का सामना करते हुए स्वाभाविक रूप से सबसे पहले मां या बाप की गोद में सहारा तलाश करने के लिए भागता है, लेकिन ऐसे मां-बाप हों तो क्या करे वह मासूम...?
एक बेटी के साथ सालों तक यह घिनौना कृत्य होते रहने के बावजूद जब अमीरी ने घर में दस्तक नहीं दी, तो भी उनकी आंखें नहीं खुलीं और दूसरी बेटी के साथ भी वही सब किया गया... और यही नहीं, इस बार मां-बाप ने तांत्रिक को अपनी 15-वर्षीय बेटी की इज़्ज़त से खेलने दिया... इतना अंधविश्वास... तरक्की करते हुए कहां से कहां आ गया हिन्दुस्तान, लेकिन लगता है कि अंधविश्वास की जड़ें मजबूत होती चली जा रही हैं...

अयबज खान जी कहते हैं कि राजस्थान के प्रतापगढ़ में भेरूलाल नाम के एक शख्स को सपना आया, जिसमें उसने एक घोड़ा और उसके पैरों के निशान देखे। सपने में उसके देवता रामदेव ने उसे गांव में मंदिर बनाने का आदेश भी दिया। भेरूलाल ने सुबह उठते ही गांववालों को इस सपने के बारे में ख़बर दी, सपने के मुताबिक उसे गांव में ही एक छोटा सा घोड़ा और उसके पैरों के निशान भी मिल गये।
बस फिर क्या था, भेरूलाल और गांव वाले फटाफट मंदिर बनाने में जुट गये। लेकिन जैसे ही ये ख़बर जंगल में आग की तरह फैली, सरकारी अमला भी गांव में पहुंच गया। लेकिन गांव वाले जिद पर अड़े थे, कि मंदिर तो ज़रूर बनाएंगे, आखिर भगवान खुद उनके द्वार पर जो आये हैं। लेकिन उस भेरुलाल को ये कौन समझाए, कि जिस सपने की बात वो कर रहा है, वो है तो ठेठ देसी, लेकिन उसके तार चाईना से जुड़े हैं। अब इन नासमझो को कौन समझाए, कि भईया ये एक छोटा सा प्लास्टिक का घो़ड़ा है, जो बच्चों के खेलने के काम आता है। और तो और उस घोड़े के पेट पर लिखा भी है मेड इन चाईना.. आगे और भी संग्रह है , जिसे आप अगली कडी में पढ सकेंगे।


आस्‍था तो अच्‍छी चीज है ... पर ये कैसे कैसे अंधविश्‍वास ( तीसरा भाग) ??


पहली और दूसरी कडी के बाद आते हैं , तीसरी कडी पर  हमारे अंधविश्‍वास का फल सदा से निरीह जानवारों को भी भुगतना पडता रहा है , सरिता झाजी लिखती हैं , गाधीमाई के पुजारियों और आयोजकों का कहना है कि इस साल मेले में भी कम से कम 5 लाख पक्षियों और जानवरों सहित तक़रीबन 25,000 भैंसों की बलि दी जाएगी. नेपाल में हर साल धर्म के नाम पर इतनी बड़ी संख्या में जानवरों और पक्षियों को बलि दी जाती है और मरने के बाद उनकी लाशों को या तो जला दिया जाता है या फिर महीनों तक मरे हुए पक्षी और जानवर खुले में पड़े रहते हैं. नेपाल में जानवरों की हत्या के ख़िलाफ़ एक अभियान भी छेड़ा गया है और नेपाल के प्रधानमंत्री को याचिका भी सौंपी गई है जिसमें दो सौ लोगों ने हस्ताक्षर कर इन हत्याओं को बंद करने का निवेदन किया है. इस अभियान में जानवरों के अधिकारों की हिमायती भारतीय सांसद मेनका गांधी भी शामिल हैं.

यही नहीं गैंडे का सींग ही-उसकी जान का दुश्मन बना हुआ है ...
मनुष्य की अज्ञानता और अंधविश्वास ने उसमें कुछ ऐसे शौक पैदा कर दिये हैं, जोकि बरबादी का रास्ता दिखाते हैं। ऐसे ही शौक में एक शौक है-प्रकृति की सुन्दर पैदावार जंगली जानवरों का शिकार। कई जंगली जानवरों के अंग ही मनुष्य के आकर्षण है, जो उनकी मृत्यु का कारण बनते हैं। ऐसे ही एक जंगली जीव है-गैंडा, जिसके नाक पर लगा सख्त सींग ही उसकी मृत्यु है। सदियों से अज्ञानता वश मनुष्य गैंडे का शिकार कर रहा है, क्योंकि उसका अंधविश्वास है कि गैंडे के इस शक्तिशाली सींग में कोई जादुई ताकत है।

गांव में फैले एक अंधविश्‍वास पर डॉ मनोज मिश्रा जी बहुत चिंतित हैं , या तो लोग झूठ बोल रहें हैं या फिर भयवश मर रहें है या चाहे जो भी हो इससे पर्दा उठाना जरूरी है नहीं तो इस नन्हे जीव को लोग बेमौत मर डालेंगे .गाँव में इसको लेकर कई भ्रांतियां हैं,कईकिस्से कहानियाँ हैं ,तरह -तरह की चर्चाएँ है .लोग-बाग़ इसको देखते ही भयवश इसको मार डाल रहें है जल्द ही यदि इसके बारे में लोंगों के भय का निवारण न किया गया तो मुझे भय है कि लोग कहीं इस प्रजाति को विलुप्त ही नकर दें .इस बारे में आपके उत्तर की हमें प्रतीक्षा है .

गुजरात में उल्लू के आँख का प्रयोग लोग भोजन के रूप में करते हैं। ऐसी मान्यता है कि उल्लू की आँखें खाने से आँखों की रौशनी बढ़ती है। इसकी गुर्दा भी ऊँचे दाम पर बिकती है। वहीं उनके पैर और माँस का प्रयोग भोजन के साथ दवा के रूप में किया जाता है। विदेशों में उल्लू के पैर और पंख की काफी माँग है। विशेषज्ञों की राय में उल्लू के माँस और पैर से कोई दवा नहीं बनता बल्कि ये अल्प जानकारी एवं सुनी-सुनाई रूढ़ीवादी बातें हैं, जिससे अल्पसंख्यक उल्लू प्रजाति के पक्षियों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। मध्य प्रदेश में कई जानवरों के चमड़े एवं चर्वी से दवा बनायी जाती है लेकिन इसके विश्लेशण की अभी आवश्यकता है। इन सब भ्रांतियों की वजह से गुजरात एवं मध्यप्रदेश उल्लू के अंगो का बाजार बन गया है, जबकि झारखण्ड और बिहार से उल्लूओं का सफाया हो रहा है। ये वेजुबान एवं संकटापन्न प्राणी, विलुप्प्ति के कगार पर इन अन्धविश्वासों के चलते पहुँच गये हैं।

संताल परगना में अब भी अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं. रविवार को पालोजोरी प्रखंड के पथरघटिया गांव में ऐसा ही कुछ देखने को मिला. आश्चर्य यह कि महिलाएं ही महिलाओं के उत्पीड़न का कारण बनीं. डायन होने के संदेह में गांव की पांच महिलाओं को न केवल बर्बरता से पीटा गया, बल्कि तीन हजार लोगों की भीड़ के सामने खुले मैदान में निर्वस्त्र कर नचाया गया. इन महिलाओं को मैला भी पिलाया गया. भीड़ तमाशबीन रही. हालांकि आगे कुछ और अनर्थ होता, इससे पहले पुलिस और प्रशासनिक पदाधिकारियों ने पीड़ित महिलाओं को बचाया.महिलाएं ढोती हैं मौकिल साहब की सवारी : प्रत्यक्षदर्शियों व पुलिस सूत्रों के अनुसार, गांव की छह महिलाएं सकीना बीबी, सबीना बीबी, समिना बीबी, मैमूल बीबी, अझोला बीबी व खूतेजा बीबी पर कोई मौकिल साहब सवार होते हैं. वही गांव में डायन की पहचान कराते हैं. रविवार को भी यही हुआ.शेष पेज नौ परडायन बता कर .मौकिल साहब की सवारी ढोनेवाली महिलाओं ने गांव की ही विधवा ससीना बीबी, सगिरन बीबी व गुलेनार बीबी और सुशीला पंडित व ससूजन बीबी को डायन बताया. इसके बाद क्या था. अंधविश्वासी लोगों की दरिंदगी जाग उठी. लोगों ने इन महिलाओं को पहले टोले में ही बुरी तरह पीटा.मैदान में नचायाइस बात का प्रचार आसपास के गांवों में भी किया गया.

सूर्यग्रहण खत्म हो गया, लेकिन समाज पर अंधविश्वास का ग्रहण अब भी लगा है. कर्नाटक में गुलबर्गा के 3 इलाकों में 108 बच्चों को ग्रहण के दौरान जमीन में गाड़े रखा गया. मासूमों का कसूर बस इतना था कि ये मानसिक रूप से कमजोर हैं और इन पर जुल्मोसितम इलाज के नाम पर किया गया.
बीमारी दूर करने के लिए बच्‍चों को गाड़ा
गुलबर्गा के इस इलाके में ऐसी मान्यता है कि सूर्यग्रहण के दौरान अगर ऐसे बच्चों को तालाब के पास जमीन में गले तक गाड़ दिया जाए तो उनकी बीमारी ठीक हो जाती है. ऐसा करने से बच्चों में ताकत और बुद्धि आती है. इसे अंधविश्वास या अक्ल पर ग्रहण नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे, दुनिया जब सदी के सबसे बड़ा सूर्यग्रहण का नजारा ले रही थी, गुलबर्गा में कुछ लोग गड्ढा खोदने में लगे थे.
एक भारत आसमान के रहस्यों को खंगाल रहा था, तो दूसरा भारत ज्ञान की जमीन खोदने में लगा था. नगड्ढा खोदा जाता है, बच्चों को उसमें डालकर मिट्टी भरा जाता है. बच्चे रोते-बिलखतेहैं, लेकिन किसी को इन पर रहम नहीं आता. रहम आता भी कैसे? लोगों की आंखों पर अंधविश्वास की चर्बी जो चढ़ी थी.

अरविंद चतुर्वेदी जी कहते हैं कि गये वे ज़माने जब पुरोहित,पंडित ,पुजारी अपने अपने यजमानों को ढूंढने के लिये या तो मन्दिर मे जाकर ठीया जमाते थे या अपने पुश्तैनी यजमानों के घर के चक्कर लगाते थे. अब ज़माना हाई फाई हो गया है तो पंडित-पुरोहित भी कैसे पीछे रहते.अब तो टेलीविज़न चैनल घर बैठे ईश्वर के दर्शन कराने को तैयार हैं और आपके नाम के संकल्प के माध्यम से ओनलाइन पूजा- थाली भी अर्पित कर रहे हैं . अब हवन करते हाथ जलाने की आवश्यकता नहीं और न ही चिंता कि आम की लकडी कहां से लायेंगे और पुरोहित कहां ढूंढेंगे. सब कुछ ओनलाइन उपलब्ध है.
मन्दिरों ,विशेषकर बडे मन्दिरों ,की अपनी अपनी वेबसाइट हैं ,जहां न केवल आप दर्शन कर सकते हैं बल्कि चढ़ावा भी आपके नाम से पंजीकृत हो कर लगाया जा सकता है.

दीपाली पांडे लिखती हैं कि मौनसून की बेरुखी से बिहार-यूपी में किसानों की शामत आई हुई है । बारिश न हुई तो खेती -बाड़ी चौपट ,खाने को अन्न मिलना मुश्किल हो जाएगा । फसल के मौके पर बादलों के देव की नाराजगी से खौफजदा इन किसानों की आंखों में विदर्भ और बुंदेलखंड के दृश्य तैरते रहते हैं । जब इन्सान डरा हुआ हो तो अंधविश्वास की डोर और भी पक्की हो जाती है ।यूपी- बिहार के विभिन्न इलाकों में आए दिन देवराज इन्द्र को मनाने के लिए तरह -तरह के टोटके कर रहे हैं । कहीं मेढक-मेढकी की शादी करवाई जा रही है तो कहीं बैलों की जगह लोग ख़ुद जुए में लग खेत जोत रहे हैं । ऐसे में इस घटना को अंधविश्वास कहें या कुछ भी पर इन ग्रामीण किसानों को पूरा भरोसा है कि इन्द्र को भी शर्म आएगी और वो जलवृष्टि अवश्य करेंगे 

पड़ोसी देश नेपाल में किसी कमउम्र बच्ची को जीवित देवी के रूप में पूजने की परंपरा शताब्दियों से चली आ रही है। स्थानीय शाक्य समुदाय से चुनी जाने वाली इस लड़की को अपना बचपन एक छोटे महलनुमा मंदिर में बिताना पड़ता है। पुजारियों के अनुसार कुमारी बनने के लिए लड़की का शरीर विशिष्ट गुणसंपन्न होना चाहिए। इसके साथ ही उसको अपनी बहादुरी साबित करने के लिए एक कमरे में अकेले बैठकर भैंसे की बलि का दृश्य बिना रोये देखना पड़ता है। सिर्फ त्योहारों के अवसर पर ही कुमारी को राजधानी काठमांडू में भक्तों के दर्शनार्थ बाहर घुमाया जाता है। 

अंधविश्‍वास से न जाने कितने ठगे जा रहे हैं , धर्म रिपोर्टर की ये खबर  ठगी का शिकार हुए सांसी समाज के मुताबिक खुद को मां शकोतरा माता का भक्त बता कर अशोक जाडेजा नें सांसी समाज के लोगों को पहले तो धर्म और आस्था के नाम पर विश्वास मे लिया फिर उसने अपनी पत्नी के साथ मिलकर इस महाघोटाले को अंजाम दिया।
पाखंडी बाबा अशोक जाडेजा ने इस ठग विद्या की शुरुआत अपने ससुराल जोधपुर से की जहां उसने पहले तो लोगों के बीच में खुद को बाबा के रूप में प्रसिद्ध किया। फिर जनता का विश्वास इस कदर उसने जीता कि लोग उस देखते ही उसके पैरों पर पैसों की बरसात करने लगते थे। इसी अंधविश्वास का सहारा लेकर आखिर कार उसने एक लंबी प्लानिंग कर डाली, ऐसी प्लानिंग की जिसमें उसने आम भोली भाली जनता को अपना शिकार बनाया खास तौर पर उसके चंगुल में सांसी समाज के लोग ज्यादा फंसे। जाडेजा ने लोगों को तीन महींनें में अपनी रकम तिगुना करने का लालच देकर तकरीबन 1800 करोंड़ ऐंठ लिए।
यह तो मान्यताएँ हैं, लेकिन यहाँ के पानी की तासीर कुछ अलग है। अभी इसकी पूरी वैज्ञानिक जाँच होनी बाकी है, क्योंकि यहाँ की बावड़ी ही नहीं, बल्कि आसपास के कुओं के पानी में भी कुछ खास है। गर्मियों में जब बावड़ी का पानी सूख जाता है, तब आसपास के कुओं से बावड़ी में पानी डाला जाता है। इस पानी का भी रोगियों पर सकारात्मक असर होता है।

पर इस न्‍यूज को हम आस्‍था भी कह सकते हैं, इससे पता चलता है कि यहाँ के पानी में ही कुछ खास है। हमने अपनी खोजबीन में महसूस किया कि यहाँ आने वाले कई लोग दावा कर रहे थे कि यहाँ आने के बाद उनका लकवा ठीक हुआ है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ता है। यहाँ के लोगों का कहना है, हम सभी माँ की औलाद हैं। यदि हम उन पर जननी की तरह विश्वास रखकर तकलीफ दूर करने की विनती करेंगे तो वे हमारी मुराद जरूर पूरी करेंगी। अब आप इसे आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन यह सच है कि यहाँ स्नान करने वाले कई लकवा रोगी ठीक हो जाने का दावा करते हैं। 

अंधविश्वास को बढावा देकर माल अंटी करना क्या उचित है ??
दोपहर, देर रात और सुबह सवेरे अगर आपने अपना बुद्धू बाक्स खोलें तो आपको स्वयंभू भविष्य वक्ता अंक ज्योतिषी और ना ना प्रकार के रत्न, गण्डे, तावीज बेचने वाले विज्ञापनों की दुकानें साफ दिख जाएंगी। यह सच है कि हर कोई अनिष्ट से घबराता है। मानव स्वभाव है कि वह किसी अनहोनी के न घटने के लिए हर जतन करने को तत्पर रहता है। इसी का फायदा अंधविश्वास का व्यापार करने वाले बडे ही करीने से उठाते हैं। विडम्बना यह है कि इस अंधविश्वास की मार्केटिंग में ``न्यूज चेनल्स`` द्वारा अपने आदशोZं पर लालच को भारी पडने दिया जा रहा है।

डॉक्‍टरी के कॉलेज में दाखिले के लिए कोचिंग देने वाली संस्‍थाएं भी अंधविश्‍वास से नहीं बच पा रही हैं ... कमाल कानपुर की रिपोर्ट देखिए न्यू का बड़ा नाम है काकादेव की कोचिंग मंडी में न्यू की तलाश में दिखे कुछ कोचिंग्स के बोर्ड खुद कह देते हैं पूरी कहानी
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विदेशों की ओर मुंह ताकते रहनेवाले भी अब निराश हो सकते हैं , क्‍यूंकि वैज्ञानिक शोध भी अब अंधविश्‍वास फैला रहे हैं , ये देखिए ...
Detriot( America ) के Wayne state university मनोवैज्ञानिको ने दावा किया है कि बच्चो का नाम यदि अंग्रेजी के अक्षर "A" से शुरू हो तो उनकी आयु दस साल तक बढ़ सकती है, जबकि "D" से नाम शुरू होने पर बच्चो का जीवनकाल घट जाता है। नाम के "E" से "Z" के बीच किसी भी अक्षर से शुरू होने पर आयु में कोई विशेष अंतर नहीं आता है। शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष १०,००० हज़ार से अधिक खिलाडियो, चिकित्सकों व वकीलों के जीवनकाल का अध्ययन करने के बाद निकाला। A से नाम शुरू होने वाले लोगो कि औसत आयु ७३.४ वर्ष, "D" से नाम शुरू होने वाले लोगो कि ६९.२ वर्ष व "E" से "Z" के बीच किसी भी अक्षर से नाम शुरू होने वाले लोगो की ७१.३ वर्ष होती है, ऐसा इस शोध का कहना है। शोधकर्ताओ ने कहा की "D" grade पढ़ाई में पिछड़ने की निशानी है, इसी कारण "D" अक्षर से नाम शुरू होने वाले लोगो का आत्मविश्वास कम होता है, जिसका असर उनकी प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है।

रविकांत प्रसाद लिखते हैं‍ कि अंधविश्‍वास के कारण मृत्‍यु के बाद भी चैन नहीं , मुर्दों को भी चाहिए पैसे कहते हैं कि मरने के बाद व्यक्ति खाली हाथ ही जाता है। सत्य है, पर शास्त्र बताते हैं कि मरनेवाले की आत्मा को तबतक शांति नहीं मिलती, जबतक उसका क्रियाक्रम ठीक ढंग से न किया जाए। बस, इसी का फायदा उठाते हैं डोम और पंडित। पंडित जी मरनेवाले परिवार से हजारों तो डोम भी सैकड़ों रुपए वसूल लेते हैं। अपनों के मरने के गम में सराबोर अनगिनत लोगों को इस आडम्बर को पूरा करने में जेवर व जमीन तक बेच देनी पड़ती है। 21वीं सदी में भी डोम श्मशान घाट का राजा बना हुआ है। बिहार की बात करें तो यहां कोई ऐसा श्मशान घाट नहीं है, जहां डोम मनमानी और रंगदारी न करते हों। यदि जेबें भरी न हों तो मृतक का शव जलाना मुश्किल नहीं असंभव है। अर्थात, मरने के बाद भी चाहिए हजारों-हजार रुपए, यानी शव...श्मशान...डोम...रुपए भी सत्य है। 
[sangita.jpg]मनुष्य जीवन भर किसी व्यक्ति को चाहे कितना कष्ट क्यों न पहुंचाए परंतु उसके मरने के बाद धूमधाम से दाह संस्कार जरूर करता है। उसे डर रहता है कि कहीं उसकी आत्मा उसे तंग करना न शुरू कर दे। इस अंधविश्वास में लगभग सभी मनुष्य रहते हैं, जीते हैं। इसी का फायदा उठाते हैं डोम और पंडित। दाह-संस्कार के क्रम में पंडित जी बार-बार यह कहना नहीं भूलते कि दान में कमी होने पर मृतक की आत्मा भटकती रहेगी।


संगीता पुरी

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