सिम्पैथी कविता बहुतों ने पढ़ी होगी पढ़ने के दरम्यान 
उत्सवी माहौल में इस रचना को याद करते हुए इसका हिंदी अनुवाद पढ़ने का आनंद उठाते हैं  … 

 रश्मि प्रभा


Sympathy
BY PAUL LAURENCE DUNBAR

I know what the caged bird feels, alas!
    When the sun is bright on the upland slopes;   
When the wind stirs soft through the springing grass,   
And the river flows like a stream of glass;
    When the first bird sings and the first bud opes,   
And the faint perfume from its chalice steals—
I know what the caged bird feels!
I know why the caged bird beats his wing
    Till its blood is red on the cruel bars;   
For he must fly back to his perch and cling   
When he fain would be on the bough a-swing;
    And a pain still throbs in the old, old scars   
And they pulse again with a keener sting—
I know why he beats his wing!
I know why the caged bird sings, ah me,
    When his wing is bruised and his bosom sore,—
When he beats his bars and he would be free;
It is not a carol of joy or glee,
    But a prayer that he sends from his heart’s deep core,   
But a plea, that upward to Heaven he flings—
I know why the caged bird sings!

संवेदना
(हिन्दी में अनूदित)

आह! खूब जानता हूं पिंजड़े के पंछी का मन
सूर्य होता है जब प्रखर ऊँचे तटों पर
हवा जब वासंती घास से सरसराती ग़ुज़र जाती है
और नदी एक काँच की धारा सी बहती है
जब दिन का पहला पक्षी गाता है..चटकती है पहली कली
और उसकी शीशी से भीनी सुगंध उड़ा लेती है
खूब जानता हूँ तब कैसा हो उठता है पिंजड़े के पंछी का मन
जानता हूँ क्यों फड़फड़ाता है अपने डैने वो
क्रूर सलाखों पर रक्तिम लाल होने तक
उसे लौटना है अपनी ठांव पर उड़कर.. जकड़ लेना है
जीते रहना है वो भुलावा.. मानो बैठा हो झूमती एक डाल पर
उन बूढ़े, पुराने निशानों में धड़कता है एक दर्द अब भीओ
धड़कता है वो हर बार और तीखी एक चुभन से
जानता हूँ क्यों फड़फड़ाता है डैनेई अपने
जानता हूँ क्यों गाता है पिंजड़े का पंछी
तब भी जब छिलें हैं पंख.. सीना है टीसता हुआ
जब वो पीटता है सलाखें मुक्त हो जाने भर को
वह गीत आनंद या मौज का नहीं
एक प्रार्थना है जिसे वो रोज़ भेजता है अपने गहरे अंतःमन से
एक अर्जी जिसे उछालता है ऊपर.. स्वर्ग की ओर
जानता  हूँ क्यों गाता है पिंजड़े का पंछी..
मैं जानता हूँ



अनुवाद - अपर्णा अनेकवर्णा 



समय है एक विराम का, मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद.....

7 comments:

  1. अपर्णा अनेकवरना, बेहतरीन कवियात्रियों मे से एक :) शुभकामनायें :

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  2. बहुत खूब अपर्णा..इससे बेहतर और कुछ नहीं ! शानदार अनुवाद, पढ़कर जी खुश हो गया !

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  3. एक प्रार्थना है जिसे वो रोज़ भेजता है अपने गहरे अंतःमन से
    एक अर्जी जिसे उछालता है ऊपर.. स्वर्ग की ओर
    जानता हूँ क्यों गाता है
    ...... बेहद गहन भाव
    अनुपम प्रस्‍तुति

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