सवालों के एकलव्य बाण 
मेरे पास हमेशा रहे 
 ....
असभ्य सवालिया शब्द बाणों के मुँह 
मेरे एकलव्य बाण सील सकते थे 
पर याद रही मुझे गुरु द्रोण की प्रतिष्ठा 
और अपने अँगूठे की कीमत ! … 
रश्मि प्रभा 




कर्ण और एकलब्य कि बलि लेकर बनता है अर्जुन महारथी

रंजन कुमार 

महान धनुर्धर अर्जुन 
जब कुरुक्षेत्र के मैदान में
गांडीव हाथ में लिए 
अपनी श्रेष्ठता पर 
कभी इठलाता रहा होगा,
उसकी नजरों के सामने 
एकलब्य का कटा अँगूठा 
उसकी सफलताओं को 
अंगूठा दिखाते हुए
उसकी खुशिओं पर 
मुस्कुराता भी तो रहा होगा !

दूर खड़ा एकलब्य
चुनौती न होते हुए भी
अर्जुन की राह में
अँगूठे का दान देकर
ऐसी चुनौती है ,
जिसके आगे अर्जुन का
हर पुरुषार्थ बौना रहेगा
युगों युगों तक !
एकलब्य और कर्ण पैदा होते हैं
नैसर्गिक प्रतिभा लिए
पर अर्जुन गढ़ा जाता है
कर्ण और एकलब्यों कि कीमत पर !

इतिहास पुरुष तो
इतिहासकार शिखण्डी को भी
बना देते हैं ,और अर्जुन को भी !
एकलब्य इतिहास के
पन्नों पर
अर्जुन से कहीं आगे खड़ा है ,
अर्जुन समकक्ष है शिखण्डी के
और शिखण्डी
मुस्कुराता है अर्जुन को देखकर !
कर्ण और एकलब्य
कि बलि लेकर बनता है अर्जुन महारथी !!


सर्वश्रेष्ठ गुरुभक्त एकलव्य

अरुण बंछोर
[*]

एक भील बालक जिसका नाम एकलव्य था। उसे धनुष-बाण चलाना बहुत प्रिय था। वह धनुर्विद्या सीखना चाहता था। इसीलिए वह गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंचा। परंतु जब द्रोणाचार्य को मालूम हुआ कि यह बालक भील है तब उन्होंने उसे शिक्षा देने से इंकार कर दिया।
एकलव्य निराश होकर वहां से लौट आया परंतु उसने हार नहीं मानी और गुरु द्रोण की मूर्ति बनाई और उसके आगे अभ्यास करने लगा।
एक दिन गुरु द्रोण और पांडव जंगल से गुजर रहे थे। उनके साथ उनका एक कुत्ता भी था। कुत्ता भौंकते हुए आगे-आगे चल रहा था। कुत्ता भौंकते हुए थोड़ी आगे चला गया और जब वह वापस आया तो उसका मुंह बाणों से भरा हुआ था। यह देखकर गुरु आश्चर्यचकित रह गए कि बाण इतनी कुशलता से मारे गए थे कि कुत्ते मुंह से रक्त की बूंद भी नहीं निकली।
द्रोणाचार्य ने सभी शिष्यों को उस कुशल धनुर्धर की खोज करने की आज्ञा दी। जल्द ही उस धनुर्धर को खोज लिया गया। धनुर्धर वही भील बालक एकलव्य था, उसने बताया कि गुरु द्रोणाचार्य द्वारा धनुर्विद्या सीखाने से इंकार करने के बाद मैंने इनकी मूर्ति बनाकर उसी से प्रेरणा पाई है। द्रोणाचार्य चूंकि अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे, इसलिए अर्जुन को भी पीछे छोडऩे वाले एकलव्य से उन्होंने गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया। एकलव्य ने बिना विचार किए अपने गुरु को गुरुदक्षिणा में अंगूठा काटकर दे दिया।
आज भी एकलव्य की गुरुभक्ति से बढ़कर ओर कोई उदाहरण दिखाई नहीं देता।

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