बच्चा ईश्वर का दिया एक सपना है 
इस सपने को हकीकत बनाने तक 
माँ-पिता, 
साथ रह रहे परिवार के सदस्यों को 
अपने व्यवहार, अपनी बोली 
अपनी सोच, 
अपनी चाह पर संतुलन बनाके रखना होता है  … 
रट्टू तोते की तरह सिर्फ अभिमन्यु की कहानी दुहराने से कुछ नहीं होता 
आस-पास कई अभिमन्यु,कर्ण,सीता,द्रौपदी  .... होते हैं 
मानसिक स्थिति, परिवेश, खानपान का प्रभाव कम-अधिक पड़ता ही पड़ता है। 
किसी के गलत व्यवहार पर हम जब दुखी होते हैं तो उसके साथ कुछ गलत हो तो अकस्मात हम कहते हैं -'अच्छा हुआ'  !
जो होता है वह अदृश्य शक्ति का फैसला है ! निःसंदेह, एक बार मन अनर्गल सोच जाता है, परन्तु वाणी पर नियंत्रण ज़रूरी है - सारे खेल वाणी के होते हैं जो कब,कहाँ वार करेंगे, कोई नहीं जानता। 


चक्रव्यूह में अभिमन्यु
हर्ष कुमार
मेरा फोटो

अतीत और भविष्य के बीच फँसा
आदमी रहता है त्रिशंकु सा
जानता नहीं किसे पकड़े-
अतीत को या भविष्य को?

अतीत बीत गया है
वापस नहीं आयेगा।
चला गया है हमेशा- हमेशा के लिये।
अब है तो केवल एक स्वप्न सा
आँख बन्द हो तो सामने है
आँख खुले तो अदृष्य, गायब ।

भविष्य भी अदृष्य है ।
पता नहीं क्या है आने वाले समय में।
उसे खोजना, उसके पीछे भागना व्यर्थ है
जैसे मरीचिका के पीछे भगना।
आँख बन्द हो तो दिखता है कल्पना में
आँख खुले तो गायब।

वर्तमान भी कम नहीं
बस भागता रहता है हर पल
एक दरिया सा बहता है निरंतर
थमता नहीं कि उसे देख सकें
परख कर सकें, पकड़ सकें उसे।
रोक पायें अपने दायरे में।

इन्हीं समस्याओं की त्रिविधा में फँसा आदमी
रह जाता है त्रिशंकु सा,
असमर्थ, निसहाय, अकेला।
जानता नहीं कि क्या करे?
किसे पकड़े? किसे रोक कर रखे?
कैसे निकल पायेगा इस चक्रव्यूह से ?

इस चक्रव्यूह से निकल पाता है
बस वही, जो जानता हो
कि निकलना नहीं है कभी
बस यहीं रहना है।
चक्रव्यूह में अभिमन्यु के समान
अपने मर्यादा चक्र में बंधे
अपना कार्म करते हुए
मोक्ष प्राप्त करना है।
बस यहीं रहना है
चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह।

नियति
सरस दरबारी 

मेरे हिस्से की धूप

[410791_3218637703597_1196022002_3461044_805005520_o.jpg]
  

नियति के विस्तृत सागर में
कब कौन कहाँ तर पाया है -
जिसको चाहा , रौंदा उसने
और पार किसीको लगाया है .
पेशानी पर जो लिखा है -
बस पेश उसीको आना है
कितना भी तुम लड़ लो भिड़ लो
उसका ही सच अपनाना है .
क्या देव और यह दानव क्या-
कोई भी बच न पाया है -
फिर तुम तो केवल इंसान हो -
सब पर नियति का साया है                                                                                                                                                 
होता न ऐसा तो पांडव
क्यों दर दर भटके भेशों में -
महारानी द्रौपदी क्यों बन गयी-
सैरंध्री कीचक के देश में .
क्यों राम ने छोड़ा देस अपना -
और भटके जंगल जंगल में
था राज तिलक होना जिस दिन
वे निकले वन्य प्रदेश में.
 बस नियति ही करता धर्ता
उसके आगे सब बेबस हैं
फिर कौन गलत और कौन सही -
सब परिस्थितियों के फेर हैं .

1 comments:

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

 
Top