tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post106906333336161267..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: मेरे घर की औरतेंरवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-11051904608082927592013-01-09T12:34:50.523+05:302013-01-09T12:34:50.523+05:30har rishte me naari kaa dard ... kitna kuch keh ga...har rishte me naari kaa dard ... kitna kuch keh gayi ye rachnaaye...डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-84107952920721341712013-01-08T15:03:45.096+05:302013-01-08T15:03:45.096+05:30हर रूप में बस दर्द ...हर रूप में बस दर्द ...Archana Chaojihttps://www.blogger.com/profile/16725177194204665316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-17998178889383952952013-01-07T22:28:05.475+05:302013-01-07T22:28:05.475+05:30सुधार घर से ही शुरु हो..सच है..सुधार घर से ही शुरु हो..सच है..Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-32445863388675023462013-01-07T19:10:45.014+05:302013-01-07T19:10:45.014+05:30रश्मि जी ...आज एक-एक रचना पढ़ी ..बहुत ध्यान से ......रश्मि जी ...आज एक-एक रचना पढ़ी ..बहुत ध्यान से ... भटकने ही नहीं दिया आपने..ऐसा लगा मनो सबकी कहानी आँखों के आगे घूम रही है... बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना!shalini rastogihttps://www.blogger.com/profile/07268565664101777300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-15002073800634856352013-01-07T18:37:51.270+05:302013-01-07T18:37:51.270+05:30"लड़कियाँ क्या इसलिए पैदा हों
ताकि उन्हें पैद..."लड़कियाँ क्या इसलिए पैदा हों<br />ताकि उन्हें पैदा होने के दुख<br />उठाने पडें<br />इस तरह"<br />ये बहुत कडुवा सच है | माना मेरी बेटी/बहन मेरे घर में सुखी है लेकिन क्या जिस घर में वो जा रही है उस घर में भी वही माहौल है , माना कि उस घर में भी वही माहौल है , वहाँ भी वो सुखी है लेकिन जहां वो उठती-बैठती है आती-जाती है वहाँ भी वही मानसिकता है जैसी हम कल्पना करते हैं , मानसिकता बदलनी ही होगी |<br /><br />सादर<br />Akash Mishrahttps://www.blogger.com/profile/00550689302666626580noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-86913511792159011942013-01-07T16:13:05.127+05:302013-01-07T16:13:05.127+05:30नारी के हर रूप के पीड़ा के कारण समाज में चली आ रही...नारी के हर रूप के पीड़ा के कारण समाज में चली आ रही कुरीतियाँ और उसके रक्षक है दबंग लोग,रस्मी प्रभा जी के शब्द <br />" अपने कदम बढ़ाइए <br />इसकी बेटी उसकी बेटी की कहानी बंद कीजिये <br />सिर्फ खुद को देखिये - कहाँ कमी है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!"<br /> को अपनाने से ही समाज आगे बाद सकता है .कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-87921409258043872082013-01-07T14:42:17.494+05:302013-01-07T14:42:17.494+05:30बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-51341619626376944212013-01-07T14:31:13.693+05:302013-01-07T14:31:13.693+05:30बेहतरीन रचनाएँ। बेहतरीन रचनाएँ। nilesh mathurhttps://www.blogger.com/profile/15049539649156739254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-2357893936336030292013-01-07T12:35:09.883+05:302013-01-07T12:35:09.883+05:30इन सभी रचनाओं को पढ़कर यह अहसास हुआ की एक अकेली और...इन सभी रचनाओं को पढ़कर यह अहसास हुआ की एक अकेली औरत का जीवन एक अभिशाप है ...लेकिन क्यों ...इतने सालों बाद भी हम क्यों नहीं कुरीतियाँ त्याग देते ...क्यों आज भी उसका एक सिरा हर घर के आँगन तक पहुंचा मिलता है ......वह जो हर एक की ख़ुशी का ख़याल रखती है ...क्या उसकी ख़ुशी ....किसी की ज़िम्मेदारी नहीं ......बहुत सुन्दर रचनायें ...हर रचना गहरे उतरती हुई Sarashttps://www.blogger.com/profile/04867240453217171166noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-3794517403827935222013-01-07T12:16:55.933+05:302013-01-07T12:16:55.933+05:30आस पास कितनी ही मिल जाती हैं ये व्यथित औरतें...घर ...आस पास कितनी ही मिल जाती हैं ये व्यथित औरतें...घर से सुधार की शुरुआत ही समाज को सुधारेगी|ऋता शेखर 'मधु'https://www.blogger.com/profile/00472342261746574536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-54134888231223340802013-01-07T11:58:23.067+05:302013-01-07T11:58:23.067+05:30 चीखते रहो - इंकलाब .....
अरे इंकलाब अपने आँगन के ... चीखते रहो - इंकलाब .....<br />अरे इंकलाब अपने आँगन के परिवर्तन से होता है <br />अपनी दृढ़ता <br />किसी एक का हौसला बन पाती है <br />नि:शब्द करते रचना के भाव ... बेहद सशक्त लेखन <br />सादर<br />सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-17404622905157008742013-01-07T11:29:19.135+05:302013-01-07T11:29:19.135+05:30इन सभी रचनाओं को पढ़कर यह अहसास हुआ की एक अकेली और...इन सभी रचनाओं को पढ़कर यह अहसास हुआ की एक अकेली औरत का जीवन एक अभिशाप है ...लेकिन क्यों ...इतने सालों बाद भी हम क्यों नहीं कुरीतियाँ त्याग देते ...क्यों आज भी उसका एक सिरा हर घर के आँगन तक पहुंचा मिलता है ......वह जो हर एक की ख़ुशी का ख़याल रखती है ...क्या उसकी ख़ुशी ....किसी की ज़िम्मेदारी नहीं ......बहुत सुन्दर रचनायें ...हर रचना गहरे उतरती हुई Sarashttps://www.blogger.com/profile/04867240453217171166noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-20117532053681236712013-01-07T11:23:35.392+05:302013-01-07T11:23:35.392+05:30दिल झकझोर कर रख दिया !
जाने कितने घरों का सच होगा ...दिल झकझोर कर रख दिया !<br />जाने कितने घरों का सच होगा ये... :(<br />हमारे यहाँ हर बार स्त्री ही क्यों सलीब पर चढ़ती है.....~यही सवाल आजकल दिमाग़ में घूमता रहता है...<br />~सादर!!!Anita Lalit (अनिता ललित ) https://www.blogger.com/profile/01035920064342894452noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-76426581743697743972013-01-07T11:10:34.906+05:302013-01-07T11:10:34.906+05:30नारी के हर रूप में छिपी पीड़ा का सूक्ष्म अवलोकन और...नारी के हर रूप में छिपी पीड़ा का सूक्ष्म अवलोकन और अभिव्यक्ति ...भावुक करती रचना .....स्वातिhttps://www.blogger.com/profile/15401454238866410073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-45114555635831647042013-01-07T11:07:06.104+05:302013-01-07T11:07:06.104+05:30नारी के हर रूप में छिपी पीड़ा का सूक्ष्म अवलोकन और...नारी के हर रूप में छिपी पीड़ा का सूक्ष्म अवलोकन और अभिव्यक्ति ...भावुक करती रचना .....स्वातिhttps://www.blogger.com/profile/15401454238866410073noreply@blogger.com