tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post1855125888957467691..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: झूठों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,जय बोलो बेईमान की !रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-91860614378601669102010-05-05T19:50:23.864+05:302010-05-05T19:50:23.864+05:30बहुत बढ़ियाबहुत बढ़ियाmalahttps://www.blogger.com/profile/09493715792470271562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-86711188968822851702010-05-05T14:40:05.702+05:302010-05-05T14:40:05.702+05:30वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश,
छहसौ पर दस्तखत क...वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश,<br />छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस।<br />मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की,<br />जय बोलो बईमान की !<br /><br />हा बहोत कडवा सत्य है ये..पर हम भी तो ये सब कायर बनके देखते रहेते है न..करोड़ रुपैये का जो मजदुर फ्लेट बनाता है उसके पास जिन्दगी भर खुद का छपरा नहीं होता है किसी बिल्डुर ने अभी तक किसी मजदुर को एक कमरा नहीं दिया इतने पत्थर दिल इन्सान हो गए है..<br /><br />सुबह से लेकर रात तक भागता रहता है इंसान, और देर रात जब थक कर इंटो की चाहरदीवारी(घर तो रहा ही नहीं अब) के भीतर पहुँचता है, तो उसके पास स्वयं तक के लिए समय नहीं बचा होता..<br /><br />बात सही है पर इंसान खुद ही ये रास्ता चुनता है क्योकि उसे सब कुछ चाहिए ..man na vicharohttps://www.blogger.com/profile/01043064459405093604noreply@blogger.com