tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post7035171082143835397..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: क्या स्त्री और पुरुष के बीच मित्रता संभव नहीं है? ललित कुमार रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-7348535106783804042013-03-16T23:18:12.202+05:302013-03-16T23:18:12.202+05:30isa prashna ko uthane vale log hamare beech men ra...isa prashna ko uthane vale log hamare beech men rahane vale hi log hain aur unake isa daave se unaki manasikta aur soch ujagar hoti hai. mitrata ek aisa bhav hai jo ling se judi nahin hoti hai . main khud apane bare men janati hoon ki bahut adhik to nahin lekin mere purush mitra hai jinake sath ham apani baton ko sheyar karte hain. jinake dukh aur sukh men unake haal lete rahate hain. vahan main kisi sambodhan ko nahin rakhati . han ek mitra mere hain jinhen main bandhu kahati hoon shesh sabhi ke naam se hi bat karti hoon. usa men koi svarth bhi nahin hai aur na hi kisi ko aapatti. phir prabuddh log kaise isa bat ko sankeernta ke sath prastut karte hain. <br /> ye prashn hamari soch par hi prashna chihna lagata hai. रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-61647231870034980892013-03-16T18:52:23.927+05:302013-03-16T18:52:23.927+05:30ललित जी ने गूढ़ बातों को अत्यंत सरलता के साथ समझा ...ललित जी ने गूढ़ बातों को अत्यंत सरलता के साथ समझा दिया..मैं उनके तर्कों से सहमत हूँ..जरूरत हमें अपनी सोच बदलने की ही है......... <br />वह स्त्री देह से डरता है। किसी अनजान स्त्री (जो ना माँ-बहन हो और ना पत्नी-प्रेमिका) के छू जाने भर से उन्हें लगता है कि वे फिसल सकते हैं। इसीलिए वे स्त्री के सम्मुख एक इंसान के तौर पर आने से डरते हैं और संबंधों और रीति-रिवाजों की आड़ में रहना पसंद करते हैं।.....इन पंक्तियों में मुझे एक नया चिंतन मिला ..हार्दिक बढ़ायी के साथ Dr.Ashutosh Mishra "Ashu"https://www.blogger.com/profile/06488429624376922144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-45995734419829794102013-03-16T17:21:29.380+05:302013-03-16T17:21:29.380+05:30नैतिक बल और प्राकृतिक आकर्षण की इस खींच-तान में कई...नैतिक बल और प्राकृतिक आकर्षण की इस खींच-तान में कई बार प्राकृतिक आकर्षण भी जीत जाता है लेकिन यह कहना कि प्राकृतिक आकर्षण ही हमेशा जीतता है –सरासर ग़लत है।bilkul sahi bat .......depend karta hai paristhitiyon par ......par mitrata to sambhav hai .....Dr.NISHA MAHARANAhttps://www.blogger.com/profile/16006676794344187761noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-84559336050196707562013-03-16T15:45:03.085+05:302013-03-16T15:45:03.085+05:30प्रत्येक मानवीय संबध की अपनी मर्यादा होती है । जब ...प्रत्येक मानवीय संबध की अपनी मर्यादा होती है । जब कोई संबध<br />मर्यादा लांघता है तो उसकी परिभाषा एवं अर्थ स्वत: ही परिवर्तित हो जाते हैं,<br />कोई व्यक्ति 'बंधु' तभी तक है जब तक वह बंधुत्व के बंधन से बंधा हो <br />अन्यथा लोग उसका निबन्ध बना देते हैं..... <br />Neetu Singhalhttps://www.blogger.com/profile/14843330374912315760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-19895067925749780022013-03-16T15:13:49.572+05:302013-03-16T15:13:49.572+05:30आज, जब कि मूल्यों में परिवर्तन बड़ी तीव्रता से हो र...आज, जब कि मूल्यों में परिवर्तन बड़ी तीव्रता से हो रहे हैं, हमें स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर गम्भीरता से चिंतन करना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में चिंतनीय बिन्दु हैं- <br />1- जब ये वर्जनायें बनी होंगी तब सामाजिक स्थितियाँ कैसी थीं। हिज़ाब पूरी दुनिया के सभी समाजों में क्यों नहीं लागू किया गया? <br />2- भारतीय समाज में कृष्ण-द्रौपदी जैसे उदाहरणों की इतनी कमी क्यों है? <br />3- विपरीत लिंगियों की मित्रता की वर्जना के पीछे मूल कारण क्या है -दैहिक आकर्षण की प्राकृतिक संभावनाओं को नियंत्रित करने वाली नैतिक शक्ति का अभाव या आकर्षण की प्रबलता की संभावनाधिक्यता? दैहिक संबंधों के प्रति हमारे दृष्टिकोण में क्या कोई पक्षपात नहीं है? यहाँ जरा ठहर कर एक विचार यह भी करना होगा कि सदा से ही समान लिंगियों के मध्य भी दैहिक संबन्धों की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। तब मित्रता और दैहिक संबन्धों के कारण बने रिश्तों को पृथक करना होगा। <br />4- पश्चिमी देशों में सभी रिश्तों की अवधारणायें, उनकी प्रगाढ़ता, और उनकी सामाजिक मान्यताओं के विपरीत भारत में सब कुछ भिन्न है। हमें यह तय करना होगा कि हम मित्रता को किन सन्दर्भों में लेना चाहते हैं भारतीय या पश्चिमी? <br />5- हमें उन ख़तरों के बारे में भी सोचना होगा जो मित्रता टूटने की स्थिति में पारस्परिक चारित्रिक दोषारोपणों से निर्मित होते हैं। <br />6- मैं समझता हूँ कि ऐसा कोई सर्वमान्य नियम नहीं बनाया जा सकता कि विपरीत लिंगियों की मित्रता नहीं होनी चाहिये या कि ऐसी मित्रता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। मित्रता मनुष्य का वह स्वाभिक गुण है जिसमें स्वार्थों से उठकर मित्र के कल्याण के लिये स्व के त्याग के लिये व्यक्ति प्रसन्नतापूर्वक तैयार रहता है। फिर वह पुरुष हो या स्त्री। <br />7- यद्यपि काम एक स्वाभाविक फ़िज़ियोलॉजिकल घटना है किंतु इसे लेकर हमारी अति संवेदनशीलता ने इसे बहुत जटिल कर दिया है। विपरीत लिंगियों को एक साथ देखते ही हमारे मन में सबसे पहले काम का सन्देह होने लगना भारतीय समाज की बहुत बड़ी नैतिक दुर्बलता है। क्या हम काम से परे कुछ और नहीं सोच सकते? हमें स्त्री-पुरुष की दैहिक सीमाओं से हटकर भी सोचने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिये। यदि हम ऐसा कर सके तो स्त्री-पुरुष मित्रता की सारी वर्जनायें समाप्त हो जायेंगी। बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-32592653348759104362013-03-16T14:50:04.432+05:302013-03-16T14:50:04.432+05:30is naitik bal ka sabak bachpan se hi sikhaya jaana...is naitik bal ka sabak bachpan se hi sikhaya jaana jaroori hai varna hamara samaj kabhi 16 vi sadi ko paar nahi kar payega ...kavita vermahttps://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-76742476643220551062013-03-16T05:23:33.057+05:302013-03-16T05:23:33.057+05:30जिन बातों के लिए स्वीकार्यता नहीं बन पाती उनके लि...जिन बातों के लिए स्वीकार्यता नहीं बन पाती उनके लिए नकारात्मकता आ ही जाती है ..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-71372126256868439662013-03-15T20:06:49.979+05:302013-03-15T20:06:49.979+05:30stri purush mitrta sochne kee aavshyakta hi nahi v...stri purush mitrta sochne kee aavshyakta hi nahi vah to hai .jahan soch me koi vasna nahi ,dwesh nahi vahan stri purush ek doosre ke nirantar sahyogi hain.Shalini kaushikhttps://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-68007515041744463742013-03-15T18:26:40.831+05:302013-03-15T18:26:40.831+05:30पुरुष और स्त्री में मित्रता हो सकती है
JAB TAK ST...पुरुष और स्त्री में मित्रता हो सकती है<br />JAB TAK STRIYON AUR PURUSHON KE MDHY SAMMANJANAK MITRATA NAHI HOGI TAB TAK IS SAMAAJ KA VIKASH NAHI HO SAKTA<br /> खोरेन्द्र https://www.blogger.com/profile/16964838805138081044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-79905036782389735052013-03-15T18:24:19.176+05:302013-03-15T18:24:19.176+05:30ये सिर्फ हमारे ही समाज में है कि किसी स्त्री पुरुष...ये सिर्फ हमारे ही समाज में है कि किसी स्त्री पुरुष को साथ देखा नहीं कि कयास लगना शुरू. स्त्री और पुरुष जरूर मित्र हो सकते हैं और बेहतरीन मित्र हो सकते हैं.बात सिर्फ मानसिकता की है.<br />सच कहा ललित जी ने बात यह है कि अपनी नैतिकता पर हमें भरोसा नहीं.अपने मन को नियंत्रित करना हम भूल गए हैं.<br />अपने बड़ों से हम अपनी इन्द्रियों को वश में करने की बात सुनते आये हैं, जो आज लोगों में नदारद है. और अपनी इसी कमजोरी को छुपाने के लिए वही लोग स्त्रियों के पहनावे या रहन सहन का बहाना बनाते हैं.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-27282250569800063642013-03-15T18:22:50.852+05:302013-03-15T18:22:50.852+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है. खोरेन्द्र https://www.blogger.com/profile/16964838805138081044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-22467822415917803442013-03-15T17:43:01.421+05:302013-03-15T17:43:01.421+05:30पुरुष और स्त्री में केवल मित्रता हो सकती है यह अ...पुरुष और स्त्री में केवल मित्रता हो सकती है यह असंभव नहीं है.प्राकृतिक आकर्षण को वशीभूत करके मित्र बन सकते है, परन्तु यह समाज उन्हें मित्र रहने देते ?नहीं.उन पर अवांछित लांछन लगाकर उन्हें मजबूर कर देते है कि वे अपनी दोस्ती को कोई नया नाम दे , प्रेमी -प्रेमिका या भाई बहन,इसके लिए वे दोषी नहीं ,दोषी है समाज -समाज के ठेकेदार . कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-32959757619394051642013-03-15T16:13:44.304+05:302013-03-15T16:13:44.304+05:30ये लोग स्त्री पुरुष को दो अस्तित्व स्वीकार करेंगे...ये लोग स्त्री पुरुष को दो अस्तित्व स्वीकार करेंगे तब तो ...जहाँ तक मन फिसलने की बात है , यदि अपने पर भरोसा नहीं हो तो कभी भी ,कही भी फिसल सकता है . रिश्तों की आड़ में क्या नहीं होता देखा गया ही इसी समाज में ! दो इंसानों के बीच मित्रता सबसे खूबसूरत रिश्ता है , जैसा द्रौपदी और कृष्ण के मध्य था !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-46175270282652078392013-03-15T16:02:58.503+05:302013-03-15T16:02:58.503+05:30आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (16-3-2013) के ...आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (16-3-2013) के <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow">चर्चा मंच</a> पर भी है ।<br />सूचनार्थ! vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-90459253386246387442013-03-15T15:44:03.252+05:302013-03-15T15:44:03.252+05:30ललित जी ने बहुत ही सुन्दर उदाहरणों से अपनी बात समझ...ललित जी ने बहुत ही सुन्दर उदाहरणों से अपनी बात समझाई....वाकई यह मानसिकता है जिससे हमें लड़ना है ....किसी एक वर्ग विशेष से नहीं ...और जब तक यह मानसिकता जड़ से नहीं उखड़ेगी...यह समस्या इस समाज में बनी रहेगी .....और समाज का कमज़ोर वर्ग इन मानसिकताओं की भेंट चड़ता रहेगा ...... Sarashttps://www.blogger.com/profile/04867240453217171166noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-32815972805480673812013-03-15T14:33:58.421+05:302013-03-15T14:33:58.421+05:30आधुनिक लिबास से आधुनिक विचार नहीं हो जाते ... और स...आधुनिक लिबास से आधुनिक विचार नहीं हो जाते ... और समाज ? उसे तो दूसरों पर ऊँगली उठाने का शौक है रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-79083371020446846602013-03-15T14:28:42.820+05:302013-03-15T14:28:42.820+05:30स्त्री और पुरुष के बीच मित्रता बिलकुल संभव है!...ल...स्त्री और पुरुष के बीच मित्रता बिलकुल संभव है!...लेकिन मित्रता एक ऐसी चीज है,जो किसी वाजबी कारण या किसी गैर वाजबी कारण को ले कर समाप्त भी हो सकती है!...दो स्त्रियों की आपसी मित्रता या दो पुरुषों की आपसी मित्रता टूटती हुई हमारे समाज में आसानी से देखी जा सकती है..लेकिन इससे समाज को कोई लेना देना होता नहीं है!<br />...पर एक स्त्री और एक पुरुष की मित्रता जब टूटती है तब यातो स्त्री अपने पुरुष मित्र पर बुरा होने का लांछन लगाती है...यातो पुरुष अपनी स्त्री मित्र पर बुरी होने का लांछन लगाता है...तब समाज जरुर दखल अंदाजी करता है और परिणाम तया आखिर में कैरेक्टर को ले कर बुराई स्त्री के ही सिर पर मढ दी जाती है!...ऐसे में स्त्री पुरुष के बीच मित्रता के क्या मायने रह जाते है? Aruna Kapoorhttps://www.blogger.com/profile/02372110186827074269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-89751650959670052092013-03-15T14:26:45.851+05:302013-03-15T14:26:45.851+05:30कुछ लोग कितने भी आधुनिक बनने का नाटक करें लेकिन उन...कुछ लोग कितने भी आधुनिक बनने का नाटक करें लेकिन उनकी सोच अभी भी मध्ययुगीन हैं. इनके विचारों को बदलना आसान नहीं है. लेकिन यह एक सत्य है कि स्त्री पुरुष में सम्बन्ध केवल भाई बहन या प्रेमी प्रेमिका का ही नहीं होता, वे बिना किसी शारीरिक आकर्षण के एक दूसरे के अच्छे मित्र भी हो सकते हैं. यह केवल एक दिवा स्वप्न नहीं बल्कि वास्तविकता है. जो व्यक्ति शारीरिक आकर्षण से ऊपर नहीं उठ सकता वह स्त्री पुरुष की मित्रता का अर्थ कभी नहीं समझ सकता. आवश्यकता है मानसिकता और सोच बदलने की.Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-42425062054322924982013-03-15T13:57:37.861+05:302013-03-15T13:57:37.861+05:30स्त्री पुरुष मित्रता
स्वस्थ मित्रता - लोग रहने नह...स्त्री पुरुष मित्रता <br />स्वस्थ मित्रता - लोग रहने नहीं देते <br />गुनाहगार सी शक्ल बना देते हैं बोल बोलकर <br />अजीबोगरीब बातों से मित्रता बाधित होती है <br />विपरीत संरचना आड़े आती है !<br />बातों को दरकिनार कर यदि आप बढ़ भी गए <br />तो फुसफुसाहटें तीव्र हो जाती हैं <br />लांछन तो लग ही जाता स्त्री के चरित्र पर <br />स्त्री ने चरित्र को दागदार ना होने दिया <br />तो दोस्त बना पुरुष - क्या क्या कहानियाँ बनाएगा <br />आप सोच भी नहीं सकते <br />हर शब्द के दो मायने <br />म्यान से निकले तलवार की धार से होते हैं <br />और दुनिया - शब्द के दूसरे मायने को ही लेती है !<br />रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.com