tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post8915156407901834134..comments2024-03-27T23:49:38.899+05:30Comments on परिकल्पना: ब्लॉगोत्सव-२०१४, कहने को ,सुनाने को और था, लेकिन .... २ (समापन)रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-90556279169867406952014-07-05T15:32:52.456+05:302014-07-05T15:32:52.456+05:30पर्वत सा विशाल पापा का विश्वास है,
मै उनके सपनो क...पर्वत सा विशाल पापा का विश्वास है, <br />मै उनके सपनो की रौशनी हूँ <br />कितनी काबिल हूँ दिखला दूंगी, <br />माँ के चमन में जो खिली हूँ<br />मै एक छोटी सी लड़की हूँ<br />बहुत सुंदर विभा रानी श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/01333560127111489111noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-507131588328031600.post-39241302726323706772014-07-05T11:15:27.070+05:302014-07-05T11:15:27.070+05:30समापन की जगह विराम होता तो ज्यादा अच्छा लगता उतस्व...समापन की जगह विराम होता तो ज्यादा अच्छा लगता उतस्व समाप्त कहाँ होते हैं :) <br />अगले उत्सव तक बस ठहर जाते हैं । बहुत सुंदर अभिव्यक्तियाँ ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.com