ईश्वर ने हमें प्राकृतिक सौंदर्य दिया,सौंदर्य में छुपे अमृत घट का अधिकारी बनाया - पेड़ पौधे पहाड़ नदियाँ .......... हम उसके उत्तराधिकारी बन खुद को संचालक समझने लगे .... प्रकृति का कोना कोना सहम उठा - हे मानव ! तुमने ये क्या किया !

क्या याद आता है?
प्रकृति शब्द सुनते ही?
बाग बगीचे, रंग बिखेरते फूल और फल,
झरने और बहती नदियाँ कल कल,
चेह्चाहते पक्षी, गुनगुनाती कोयल,
पर कभी खुद को इसका हिस्सा नहीं देखा हमने,
देखा तो बस इन्हें प्यार और अचरज से देखते हुए,
हमारा विवेक भी सच जनता है,

और क्या देखते हैं हम,
पर्यावरण सोचने पर?
प्रदूषण, कल कारखाने,
विलुप्त पक्षी, मरती मछलियाँ,
चारो तरफ गाडियां और धुआं,
और ये सब करते हम,

प्रकृति और पर्यावरण अलग कब हुए,
कैसे रह गया कोई पीछे,
और कैसे दुसरे का ये हाल हुआ,
एक रह गया हमारा सुन्दर सपना
और दूसरा बन गया काला और कड़वा सच,

बारिश से अब हम डरते हैं,
बाढ़ लाती थी उपजाऊ मिटटी
पर अब सब बहा ले जाती है,
और बस दहशत छोड़ जाती है,
हवा, पानी, धरती 
सब का रंग कहीं खो गया है,
कुछ और ही हो गया है,
साल में ६ ऋतुएं हुआ करती थी,
अब बसंत, पतझड़ कहीं खो गया है,

आज प्रकृति का सपना
और पर्यावरण का सच दूर रह गया,
हम तो आगे बढ़ गए,
पर हमारा मूल कहीं छूट गया,

जब भी कोई पर्यावरण की रिपोर्ट आती है,
हम चौकाने हो जाते हैं,
जैसे हमारे पापों का बहीखाता हो इस रिपोर्ट में,
फिर शुरू होती है माथापच्ची,
प्रकृति को साथ लेकर चलने की कसमें,
या मानते हैं हम पर्यावरण दिवस,
 ओजोन परत संरक्षण दिवस
कुछ देर बहस करते हैं, 
विचार विमर्श करते हैं
और फिर भूल जाते हैं सब कुछ,
अगली बार के लिए,
अगले पर्यावरण दिवस के लिए,
अगली संगोष्ठी के लिए,
या जब हम फिर से प्रकृति को याद करेंगे,
और हमारे बच्चे हमसे पूछेगे कि वो क्या होती है



प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता बहुत पुराना है यह रिश्ता दोनों का एक दुसरे से जोड़ने का है कभी इनमे बहुत दोस्ती हुआ करती थी वे एक दुसरे की सेहत का ख्याल रखते थे यही कारण है की प्राकृतिक सम्पदा का हमारे यहाँ अनुकूल भंडार है ।

कालांतर में व्यावसायिकता के दौर में प्रकृति मनुष्य के लिए सिर्फ दोहन का स्रोत बनकर रह गई प्रकृति की तेज रफ़्तार के लिए हमने मन चाहे ढंग से धरती की इस अमूल्य सौन्दर्य और सम्पदा को लगभग उजाड़ने का प्रयास किया हमने प्रकृति से बहुत कुछ लिया पर उसे कुछ नहीं दिया ।

प्रकृति शोषण से हमारा पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया खतरनाक परिणाम भी दिखलाई पड़ने लगे और आज हम मौसम के बिगड़ने मिजाज निरंतर नीचे जा रहे है भू-जल स्तर के कारण व्याप्त जल संकट सहित अनेक क्षेत्रों में प्रकृति का प्रकोप झेल रहे है इसकी सुध लेने की आज बहुत जरुरत थी प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता और मधुर हो वह आपसी विनिमय का एक ऐसा नाता बने जिसमे लेने से %याजा देने की भावना प्रजल हो यह अच्छी बात है की पौधे रोपण और हरियाली के प्रति जनचेतना बढ़ी है नागरिक अपने स्तर पर इसके प्रति जागरूक हुए है लेकिन व्यापक लक्ष्य को पाने के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता और सतत जरुरी है अ वर्ष और प्रदूषण को लेकर अक्स़र यह बात उठाई जाती है की पेड़ों की अवैध कटाई से यह समस्या जन्मी और बढ़ी है यदि पेड़ों की उपेक्षा क अनुरूप विकास होगा तो अ वर्ष की आपदा से भी मुक्ति मिलेगी और पर्यावरण में सुधार तो निश्चित रूप से होगा ।

हमारा पर्यावरण: बचपन और पर्यावरण.---कविता वर्मा


 क्या खेले ?क्या खेले?सोचते सोचते आखिर ये तय हुआ नदी पहाड़ ही खेलते है।

तेरी नदी में कपडे धोउं,

तेरी नदी में  रोटी पकाऊ,

चिल्लाते हुए बच्चे निचली जगह  को नदी और  ऊँचे ओटलो को पहाड़ समझ कर  खेल  रहे है ,नदी का  मालिक अपनी नदी  के लिए  इतना सजग है की उसमे कपडे धोने ,बर्तन  धोने से  उसे तकलीफ होती  है। 

गर्मियों की  चांदनी रात ,लाइट नहीं है अब अँधेरे  में क्या करे? एक जगह बैठे तो मच्छर काटते है ,नानी कहती  है ,

अरे ! जाओ धुप छाँव खेलो ,कितनी अच्छी चांदनी रात है,और बच्चे मेरी धूप और मेरी छाँव के मालिक बन जाते है।   

 इत्ता इत्ता पानी गोल गोल रानी हो या अमराई में पत्थर पर गिरी केरीयों की चटनी पीसना ,खेलते हुए किसी कुए, की जगत पर बैठना, प्यास लगे और पानी न हो तो किस पेड़ की पत्तियां चबा लेना ,या रंभाती गाय भैस से बाते करना,इस साल किस आम पर मोर आएगा किस पर नहीं ,गर्मी में नदी सूखेगी या नहीं, टिटहरी जमीन पर अंडे देगी या नहीं ?हमारा बचपन तो ऐसी ही जाने कितनी बातों से भरा पड़ा था। खेल खेल में बच्चे अपने परिवेश से कितने जुड़ जाते थे?कितनी ही बाते खुद -ब -खुद सीख जाते थे ,पता ही नहीं चलता था। हमारे खेल हमारे जीवन से परिवेश से पर्यावरण से इस तरह जुड़े थे की उन्हें कही अलग देखा ही नहीं जा सकता था।

समय बदला नदियाँ सूख गयी, पहाड़ कट कर सड़के या खदाने बन गयी,सड़क की लाइट ने चाँद तारों की रोशनी छीन ली,अब न पेड़ों से मोह रहा न उनकी चिंता, पानी के लिए ट्यूब वेल आ गए या मीलों दूर से पाइप  लाइन ।       


 हमारा प्लेनेट खतरे में है ,अन्तरिक्ष से आयी आफत हम पर टूट पड़ी ,

पोपकोर्न खाते हाथ मुह तक आने से पहले ही रुक गए ,अब आयेंगे हमारे सुपर हीरो .........

ये लो आ गए पृथ्वी,अग्नि, वायु, जल ,आकाश और ये बनी सुपर पॉवर मिस्टर प्लेनेट ,और दुश्मन का हो गया खात्मा ,हमारी पृथ्वी बच गयी ।

एक गहरी सांस लेकर पोपकोर्न खाना फिर शुरू हो गया ,बिस्तेर पर पैर और फ़ैल गए । लीजिये अब चाहे अन्तरिक्ष से कोई आफत आये या ओजोन लयेर में छेद हो ,चाहे कही आग लगे या बाढ़ आ जाये हमारा सुपर हीरो सब ठीक कर देगा ,हम खाते रहेंगे आराम से अपने घर में बिस्तर पर । न्यूज़ पेपर वाले शोर मचाएंगे,टीचेर कोई प्रोजेक्ट देगी ग्लोबल वार्मिंग पर हम नेट से जानकारी जुटा कर ढेर सारे कागजों को इस्तेमाल करके बढ़िया सा प्रोजेक्ट बनायेंगे और १० में से १० नंबर पायेंगे । अब जिस पर्यावरण को कभी महसूस ही नहीं किया जिस की गोद में खेले ही नहीं उसके लिए संवेदनाये लाये कहाँ से ?

    बच्चे पर्यावरण से बस इसी तरह से जुड़े है अब इसमें उनका क्या दोष है ?

जो पर्यावरण हमारे बुजुर्गों ने हमारे लिए सदियों से सहेज कर रखा था ,उसे हमने अपने स्वार्थ के लिए किस तरह तहस नहस कर दिया है,और इसी के साथ छेन लिया है पर्यावरण सा मासूम बचपन .....

पर्यावरण सहेजे ,ताकि बचपन का भोलापण कायम रह पाए...


इसी के साथ आज के कार्यक्रम को संपन्न करने हेतु मुझे अनुमति दें, पर 
आप कहीं मत जाईएगा .....वटवृक्ष पर 
एक और प्रस्तुति आपका इंतज़ार कर रही है ........

तो आइए आपको मैं ले चलती हूँ वटवृक्ष पर जहां अनुपमा त्रिपाठी सुनाने जा 

9 comments:

  1. पर्यावरण पर ... सार्थकता लिये सशक्‍त रचनाएं
    प्रकृति से बहुत कुछ लिया किन्‍तु उसे कुछ दिया नहीं ... बिल्‍कुल सही

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  2. ये एक बहुत सार्थक विषय है , जिसका इस मंच पर आना बहुत जरूरी था |
    ये वो समय चल रहा है जब हम चेतने के बारे में विचार नहीं कर सकते हमें तुरंत चेतना ही होगा |
    समस्याएँ मुह फाड़े खड़ी हो रही हैं और कहीं न कहीं ज्यादातर का संबंद्ध पर्यावरण से ही है |
    .
    आधुनिकता के पक्ष में कहा जाता है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है , मैं सिर्फ इस बात पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि ये देखना भी जरूरी है कि हम जो पा रहे हैं वो ज्यादा कीमती है या हम जो खो रहे हैं |

    सादर

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  3. जागरुकता जरूरी है...सुंदर पोस्ट !!

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