खून के संबंध खट्टे हों या मीठे 
कहते हैं लोग- टूटता नहीं ...
फिर पानी का रिश्ता  ?
जो मरू में भी प्यास बुझाता है 
कैसे टूटेगा ?
क्या सिर्फ इसलिए 
कि वह क़ानूनी कागजों पर नहीं होता !
कानून तो सिर्फ टूटे रिश्तों की भाषा जानता है
तथ्य ढूंढता है,कुछ झूठे गवाह खड़े करता है
सोचने के लिए किताबी वक़्त देता है
आत्मा के रिश्तों से उसका कोई ताल्लुक नहीं होता 
.....
आत्मा दिखती नहीं
और बिना साक्ष्य
आँखों देखे गवाह के बगैर 
कानून बेबस 
मानसिक रूप से विकलांग होता है !
सबूतों की बैसाखियों पर चलते चलते 
वह अपने शरीर की परिधि में 
अपाहिज है ....!
दिमाग है
पर दिमाग को तो साक्ष्य का जामा पहनना होता है 
ऐसी कशमकश में न्याय -
मृत्युपर्यंत फ़ाइल में सड़ता है
या जिसने की जेब गर्म
वह होता है बेक़सूर 
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अपवाद होते हैं 
पर उनकी सुनवाई तारीखों की मोहताज होती है !

आज का बुद्धिजीवी वर्ग 
फल और मेवे के साथ 
बुद्धिमानी की बात करता है 
...... दृष्टिगत - स्वस्थ शरीर 
स्वस्थ बातचीत ...
पर नज़रिया - हास्यास्पद !
हादसे जब तक अपने नहीं होते 
उसके चीथड़े 
बिना किसी विस्फोटक सामग्री के उड़ते हैं !
रिश्ते हों या प्यार
या किसी के साथ चल पड़ने की मजबूरी 
या तथाकथित इज्ज़त का सरेराह लुटना
इसे समझने के लिए मन होना चाहिए
सिर्फ मन !!!
तमाशबीन तो अटकलों के सिवा कुछ नहीं सोचते 
कुछ भी नहीं 
कभी नहीं 
कहीं नहीं ....

रिश्तों के रूप अलग अलग कैनवस पर देखें -

कभी कभी जिंदगी में किसी के साथ एक ऐसा अनजान रिश्ता बन जाता है जिसका कोई नाम नहीं होता, उस रिश्ते में बस दूसरे की ख़ुशी देखी जाती है, हम खुद को मिटा कर भी उसे खुश रखने की कोशिश करते है, उस रिश्ते में न कुछ पाने की चाह होती है और न कुछ हासिल करने की इच्छा, चाहत होती है तो बस इतनी की जिसे हम अपना मानते है वो खुश रहे और थोड़ी तमन्ना ये होती है की जिसकी ख़ुशी के लिए हम कुछ भी करने को तैयार रहते हैं वो हमेशा हमें याद रखे, पर उस वक्त बहुत दुःख होता है जिसके लिए हम इतना करते हैं वो ही हमें नहीं समझता पता या कहो हमें इतना समझने के बाद भी गलत समझ लेता है उस वक्त अपने दिल पर क्या बीतती है ये बात हर कोई नहीं महसूस कर सकता। जब हम किसी को अपना मानते हैं तो उसकी गलतियाँ भी हम अनदेखी कर देते है पर जिसे हम अपना नहीं मानते उसकी वो बात भी बुरी लगती है जो शायद गलत नहीं भी होती। अगर हम किसी के लिए इतना करते है और वो हमें गलत समझ तो कितना दुःख होता है क्यूंकि जिसकी नजर में हम अच्छा बन्ने की कोशिश करते हैं उसकी नजर में ही हम गलत साबित हो जाते है, उस वक्त दिल के अन्दर से सभी के लिए जो फीलिंग होती है वो भी ख़तम हो जाती है, क्यूंकि फिर किसी पर विश्वाश करने का दिल ही नहीं करता ये लगता है की कहीं फिर हमारे साथ वैसा ही सलूक नहीं हो।
मैं अपने आप को बस ये ही बात कह के समझाता हूँ की "एक को उसने खोया है जो उसके लिए कुछ भी कर सकता था, और एक को मैंने खोया है जो मेरे बारे में सोचता तक नहीं था।" अगर मैं गलत नहीं हूँ तो कभी न कभी ये बात वो भी महसूस करेगा। पर वक्त शायद मैं उसके पास नहीं होऊंगा, पर मैं इश्वर से प्रार्थना करूँगा की उसे कभी मेरी जरूरत पड़े ही नहीं। मैं गलत नहीं हूँ इस दुनिया में बहुत से अनजान रिश्ते भी होते हैं और अगर ये प्यार भी है तो क्या गलत है क्या प्यार करना गलत होता है, गलत तो ये होता है की हम उस प्यार को किस नजर से देखते है, और प्यार पर बस भी किसका चलता है। क्या हम खुद को प्यार करने से नहीं रोक सकते तो हम दूसरो को भी नहीं कह सकते की हमें प्यार मत करो और अगर किसी के दिल में किसी के लिए प्यार न हो तो कोई किसी के लिए कर भी नहीं पता यानी किसी के लिए कुछ करने के लिए प्यार का होना बहुत जरूरी है पर कुछ लोग प्यार का बस एक ही मतलब जाने है वो प्यार को कभी समझ ही नहीं पाते। और अगर मैं प्यार कर करता भी हूँ तो ये मेरी प्रॉब्लम है, मैंने कभी ये नहीं चाह की वो भी मुझे प्यार करे।
मेरे दिल में जो दर्द है शायद पूरी उम्र ख़तम नहीं होगा। पर मुझे इस दर्द की भी आदत हो जाएगी।
मुझे आज तक कोई भी ऐसा नहीं मिला जिसे मैं अपने दिल की बात कह सकूँ शायद इसलिए ही मुझे ये ब्लॉग बनाने की जरूरत पड़ी है। इस दुनिया में अच्छा होना सबसे बुरा है क्यूंकि अच्छे वो ही होते हैं जिससे हम प्यार करते हैं और जिससे हम प्यार नहीं करते वो सब बुरे होते है। 
"दर्द में कोई मौसम प्यारा नहीं होता,
दिल हो प्यासा तो पानी से गुजरा नहीं होता।
जरा देखिये तो हमारी बेबसी,
हम सबके हो जाते है, कोई हमारा नहीं होता।"


My Photoरिश्ते... रेशम के धागों से नाज़ुक और रेशम जैसे से ही ख़ूबसूरत, चमकीले और नर्म... बहुत संभाल के रखना पड़ता है इन्हें... ज़िन्दगी की ऊँची-नीची, आढ़ी-तिरछी पगडंडियों पर किसी छोटे से बच्चे की तरह इनका हाथ थाम के चलना पड़ता है... सहारा देना पड़ता है... कभी गिरे तो प्यार से उठाना पड़ता है... मुश्किल हालातों की गर्द झाड़ के... दुलार के, पुचकार के फिर से संवारना पड़ता है... आख़िर हमारे अपने ही तो हैं ये भी... ऐसे कैसे मुश्किल समय में इनका साथ छोड़ दें...

बड़े अनोखे रूप होते हैं इन रिश्तों के... हर किसी से एक अनोखा रिश्ता होता है... प्यार का... विश्वास का... दोस्ती का... सहानुभूति का... तो कभी कभी बस इक मुस्कान का... कितने ख़ूबसूरत होते हैं कभी मोतबर तो कभी मुख़्तसर से ये रिश्ते... कितना कुछ देते हैं ये हमें... प्यार, अपनापन, शान्ति, सुकून, भावात्मक मज़बूती... पर इनका रूप हमेशा ऐसा ख़ूबसूरत रहे ये ज़रूरी नहीं...  कभी कभी वक़्त और हालात इन्हें कुरूप बना देते हैं... समय आपके धैर्य की परीक्षा लेता है... आपको और आपके रिश्ते को हाशिये पे रख के अपनी कसौटी पे परखता है... ऐसे में हमें ही इन रिश्तों को बचाना होता है... वापस इन्हें वो ख़ूबसूरत रूप देना होता है...

रिश्ते के एक छोटे से बीज को एक मज़बूत पेड़ का आकार भी हम ही दे सकते हैं... बस ऐसे नाज़ुक समय में जब हमारे रिश्ते को हमारी ज़रुरत हो उसका साथ कभी मत छोड़िये... अपने अहम को रिश्ते के बीच कभी मत लाइये... चुप मत रहिये... लफ़्जों का पुल टूटने मत दीजिये... पहल करिये... बात करके आपस की ग़लतफहमी को मिटाइये... मत मुरझाने दीजिये अपने रिश्ते को... इस मुख़्तसर सी ज़िन्दगी में चंद रिश्ते भी नहीं कमाये तो क्या कमाया...


रिश्ते कुम्हार की चाक पर पड़ी

नर्म मिट्टी से होते हैं
जैसा चाहो आकार दे दो
जैसे चाहो ढाल लो

कभी ख़ूबसूरत दिये का आकार ले
ज़िन्दगी में उजाला करते हैं
तो कभी शीतल सुराही बन
मन को ठंडक पहुंचाते हैं

कभी कभी हाथों के ज़्यादा दबाव से
ये मिट्टी विकृत रूप ले लेती है
अपेक्षा और उपेक्षा के दबाव से
रिश्ते भी कभी विरूप हो जाते हैं

एक कुशल कुम्हार ही
इस विरूप होती मिट्टी को
फिर से सही आकार दे कर
ख़ूबसूरत बना सकता है

सही आंच में सही समय तक पका कर
उसे मज़बूत बना सकता है
रिश्ते भी हालात और समय की ताप से
मज़बूत बनते हैं
ज़रुरत है बस धैर्य रखने की...

रिश्ते जमीन के---------(ज्योति खरे) http://jyoti-khare.blogspot.in/2012/11/blog-post_1909.html
बिखरे पड़े हैं क़त्ल से 
रिश्ते जमीन के-----
मुखबिर बता रहे हैं 
किस्से यकीन के------
My Photo
चाहतों के मकबरे पर 
शाम से मजमा लगा है 
हाथ में तलवार लेकर 
कोई तो दुश्मन भगा है 

गश्त दहशत की लगी है 
किस तरह होगी सुबह
खून के कतरे मिले हैं 
फिर से कमीन के-------

चाँद भी शामिल वहां था 
सूरज खड़ा था साथ में 
चादर चढ़ाने प्यार की 
ईसा लिये था हाथ में 

जल रहीं अगरबत्तियां 
खुशबू बिखेरकर 
रेशमी धागों ने बांधे 
रिश्ते महीन के-------

रिश्तों की जमीन पे जज्बातों के पेड़(संदीप अग्रवाल)


Sandeep Agrawalरिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं. जितने रूप हम इनके जानते हैं, उससे कहीं ज्यादा रूप होते हैं इनके. परत दर परत खुलती जाती है और जिंदगी में कभी हम इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हो पाते कि हमने किसी रिश्ते को पूरी तरह समझ लिया है. जब हमें ऐसा लगता है, तभी कोई न कोई परत उधड़ जाती है और रिश्ते का एक नया अनदेखा पहलू हमारे सामने उजागर हो जाता है. 

रिश्ते दरअसल उस उपजाऊ जमीन की तरह है, जिस पर जज्बातों के तरह-तरह के पेड़ पौधे पनपते हैं और हर पतझर, हर बहार में रिश्तों को नई रंगत देते हैं. जब ये बहारों में झूमते हैं तो रिश्ते भी खिल उठते हैं और जब पतझर में ये मलिन होते हैं तो रिश्ते भ उदास हो जाते हैं. 

रिश्तों की जमीन पर उगी छोटी सी बगिया का एक पौधा है विश्वास. यूं तो हर पौधे की अपनी एक अहमियत, एक जरूरत है, लेकिन विश्वास नाम का यह पौधा हर रिश्ते के आगाज और पुख्तगी में सबसे ज्यादा मायने रखता है. विश्वास एक ऐसा पौधा है, जो बढ़ता तो  बहुत धीरे-धीरे है, लेकिन उखड़ एकदम जाता है. कैसी अजीब बात है, जो पौधा नाजुक से नाजुक रिश्ते को एक मजबूती देता है, खुद इतना नफीस और नाजुक होता है कि हल्की सी धसक इसे जड़ से उखाड़ फेंकती है. और फिर भले ही उसे कितना ही अच्छे से फिर से रोपा जाए, यह पहले जैसा हरा-भरा नहीं रह पाता. असल में इस पौधे पर उगने वाले फल भी वैसे ही होते हैं, जब तक पेड़ पर लगे हैं, तभी तक स्वादिष्ट और सुंदर प्रतीत होते हैं. एक बार शाख से टूटकर गिरे कि जमीन पर कांच से छितरा जाते हैं...उम्मीद के फल, वफादारी के फल, सहयोग के फल, प्यार के फल, संभाल के फल...

इसके एकदम विपरीत है शक का पौधा. पौधा क्या, विषबेल है. एक बार जड़ जमाने का मौका मिल जाए, तो फिर क्या मजाल कि कोई उखाड़ सके. कितना ही जतन कर लीजिए. कई बार आपको लगेगा भी कि आपने इसे उखाड़ फेंका है. लेकिन, कुछ न कुछ बाकी रह ही जाता है और मौका पाकर बेल फिर से हरी-भरी हो जाती है और धीमे जहर की तरह धीरे-धीरे एक दिन रिश्ते की जान ले ही लेती है. 

वैसे देखा जाए तो हर रिश्ते का अंत उसके आगाज के साथ ही तय हो जाता है, इस पर लगे हर पेड़ को एक दिन मुरझाना ही है. बस कोई जरा जल्दी मुरझा जाता है और कोई सबसे आखिर में. ये जमीन एक निश्चित वक्त तक के लिए ही उपजाऊ बनी रहती है.  फिर तो इसे बंजर हो जाना ही है. इसलिए रिश्तों के मरने का मातम नहीं करना चाहिए, बल्कि जब तक ये हैं, तब तक इनकी खूबसूरती का पूरा आनंद लेना चाहिए. हम किसी रिश्ते को जन्म तो दे सकते हैं, लेकिन अमरत्व नहीं दे सकते. हम जो कर सकते हैं, वह यह है कि उस अवधि को विस्तार देना, जो उस रिश्ते के लिए निर्धारित हुई है. और इसके लिए हमें बस कुछ पौधों को निरंतर खाद-पानी देते जाना है और कुछ बेलों को नियमित रूप से उखाड़ते जाना है. क्या यह बहुत मुश्किल है?
"बड़ी उदास है यह रात, सर्द हैं रिश्ते,
हवाएं हांफती है, खिड़कियाँ भी खौफ में हैं,
सर्द होते जा रहे रिश्तों के रास्ते लम्बे हैं यहाँ,
सत्य का साहस लिए, संताप से सहमा हुआ गुजरता हूँ गुजारिश सा 
घटनाएं भी गुजरती हैं घटाओं की तरह जैसे अनुभव हो मरुथर में भी बारिस का,
यादों के अलावों में सुलगती थी जो याद तेरी अब बुझती जा रही है, --ताप लूं .
कल सुबह हर याद को फिर राख बनना है 
दौर ऐसा है दिया दयनीय है हर याद का
सो भी जाने दो मुझे, दरवाजों पर अब दस्तक न दो 
आस आंसू से बही थी, ओस पंखुड़ियों पे न देख 
अब तो दीपक बुझ रहा है जल चुके विश्वास का." 


दिल का दर्पण: रिश्ते(मोहिन्दर कुमार)

अनकहे  अनसुने भी कुछ करार होते हैं
डूब कर भी तो दरिया पार होते हैं
रिश्ते निभाये जाते हैं आंख मूंद कर
My Photoपरखने से तो रिश्ते तार तार होते हैं ...

इस रिश्ते को क्या नाम दूँ..?                                  
सिर्फ महसूस होता है....
कि हमारा कोई रिश्ता है.....

नज़र नही आता किसी को,
दिखाई देता भी नही है...
सिर्फ हवा के झोकों के साथ,
साँसों को महसूस होता है...
कि हमारा कोई रिश्ता है..

पन्नो पे लिखा जा सकता नही,
शब्दों में बांधा जा सकता नही..
निशब्द सा कोई रिश्ता है हमारा......

ख्वाबों में भी सजाया जा सकता नही,
ख्यालों में भी लाया जा सकता नही...
धडकनों के साथ महसूस होता है...
कि हमारा कोई रिश्ता है....
सवाल कोई करता नही,
ज़वाब भी कोई चाहता नही....
My Photoनिरूत्तर सा है कोई रिश्ता है हमारा....

आगाज़ कोई करता नही,
अंजाम भी कोई चाहता नही,
अनंत सा है कोई रिश्ता है हमारा.....

ना कुछ कहना चाहता है किसी से,
ना ही कुछ सुनना चाहता है किसी से....
ख़ामोशी को बयां करता कोई रिश्ता है हमारा...........

ना किसी सफ़र की चाह है इसको,
ना किसी मंजिल की तलाश है इसको...
मेरी परछाई के साथ-साथ चलता....
कोई रिश्ता है हमारा.........

चलिये आज के कार्यक्रम को संपन्नता की ओर ले जाने के लिए चलते हैं वटवृक्ष पर जहां अमित आनंद उपस्थित हैं लेकर एक अत्यंत सारगर्भित कविता : बीड़ी जला 

आप कविता का आनंद लें और मैं देती हूँ इसी के साथ उत्सव मेन आज के कार्यक्रमों को विराम, मिलती हूँ पुन: कल सुबह 10 बजे परिकल्पना पर । तबतक के लिए शुभ विदा !

8 comments:

  1. खूबसूरत लिंक्स के साथ ....हर रिश्ते के अहसास को लिए हुए ...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (21-12-2012) के चर्चा मंच-११०० (कल हो न हो..) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  3. kis kadar khoobsoorat likha hai ..in posts ko to aaraam se padh kar hi tippni ki ja sakti hai ...

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  4. रिश्तों को खूबसूरती से संजोया गया है |

    सादर

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